चित्र- साभार-nomadmolouges.blogspot.com
हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार की बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार ने अल्पसंख्यकों(सेक्यलुरों के लिए अल्पसंख्यकों का मतलब सिर्फ मुसलमान होता है) के लिए दस प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला किया है. पश्चिम बंगाल सरकार के इस फैसले से कांग्रेस किकर्तव्यविमूढ़ हो गई है. आखिर क्या करे और न करें. दरअसल पश्चिम बंगाल सरकार ने रंगनाथ मिश्रा समिति की रिपोर्ट के आधार पर अल्पसंख्यकों(सिर्फ मुसलमानों) को आरक्षण दिया है. रंगनाथ मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट तीन साल पहले यानी 2007 में ही आई थी, लेकिन केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार इसे संसद में रखने से घबरा रही थी. वो जानती थी कि इसे संसद में रखने पर हंगामा होगा. आखिरकार उसने ये हिम्मत कर दिखाया. रिपोर्ट संसद में पेश की गई. इस पर भाजपा ने बवाल भी मचाया, मगर इसे सांप्रदायिक पार्टी का शोर-शराबा कहकर खारिज कर दिया गया. अभी केंद्र सरकार इस रिपोर्ट पर विचार विमर्श ही कर रही थी कि पश्चिम बंगाल की बुद्धदेब भट्टाचार्य की सरकार ने मुसलमानों को दस प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा कर दी.
पश्चिम बंगाल सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण देने का धर्म निरपेक्षतावादी कदम किन परिस्थितियों में उठाया इसे समझने की जरूरत है. बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार पश्चिम बंगाल में सीपीएम के हाल से परेशान थी. सीपीएम के गढ़ कहे जाने वाले पश्चिम बंगाल और केरल से उसका सफाया हो रहा था. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस के सामने सीपीएम के अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया. स्थानीय निकाय के चुनावों में सीपीएम का मटियामेट हो गया. रही-सही कसर लोकसभा के चुनावों ने निकाल दी. सीपीएम को इससे पहले कभी भी पश्चिम बंगाल में ऐसी बुरी स्थिति का सामना करना नहीं पड़ा था. सिंगूर और नंदीग्राम नरसंहार ने सीपीएम का क्रूर और वीभत्स चेहरा लोगों के सामने ला दिया. छद्म-धर्म-निरपेक्षता का चोला ओढ़ने वाले सीपीए का क्रूर चेहरा सबके सामने था. इन नरसंहारों में ज्यादातर मुसलमानों को ही सीपीएम के कार्यकर्ताओं ने निशाना बनाया. बुद्धदेव भट्टाचार्य के क्रूर नेतृत्व के सामने ममता बनर्जी का कुशल नेतृत्व था. लोगों ने ममता के विराट व्यक्तित्व का साथ दिया और सीपीएम को खारिज कर दिया. सीपीएम अपने ढहते किले से परेशान थी और ऐसे में छद्म धर्मनिरपेक्षता पूर्ण रंगनाथ मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट का उसने सहारा लिया और दे डाला मुसलमानों को दस प्रतिशत आरक्षण.
रंगनाथ मिश्रा कमिटी ने किस आधार पर मुसलमानों को आरक्षण देने की सिफारिश की? केंद्रीय कैबिनेट ने अब तक इस पर कोई फैसला नहीं किया तो आखिर किस आधार पर पश्चिम बंगाल सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण दिया. सवाल उठता है कि आखिर धर्म निरपेक्षता का दंभ भरने वाली सीपीएम सांप्रदायिक क्यों नहीं है?
संविधान में आर्थिक पिछड़ापन के आधार पर किसी को भी आरक्षण देने की व्यवस्था नहीं है. संविधान में आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ उन लोगों के लिए की गई है, जिन्हें सामाजिक भेदभाव, उत्पीड़न और छुआछूत का दंश झेलना पड़ा था. इस श्रेणी ने केवल अनुसूचित जातियां और जनजातियां ही शामिल हैं. लेकिन तथाकथित सेक्यूलरों ने आर्थिक पिछड़ेपन का राग छेड़कर मुसलमानों को भी आरक्षण देने के लिए समिति बनवाकर उससे सिफारिश भी करवा ली (यहां गौर करने वाली बात की, सत्ताधारी पार्टियां अपने इच्छानुसार समितियां और आयोग बनाती है और अपने इच्छानुसार ही रिपोर्ट तैयार करवाती है और सिफारिशें भी करवाती हैं. जैसे लालू ने गोधरा कांड की जांच के लिए यूसी बनर्जी कमिटी बनवाई और “दूध का दूध और पानी का पानी रिपोर्ट” ला दिया और उसका फायदा बिहार विधानसभा चुनाव में उठाने की कोशिश की. ऐसी ही लिब्राहन आयोग और रंगनाथ मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट में कांग्रेस ने सिफारिशें करवाई)
अगर आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर ही आरक्षण देना हो तो जाति-धर्म के ऊपर उठकर गरीबों की पहचान क्यों नहीं की जाती है. क्यों नहीं पता किया जाता है कि इस देश में कितने प्रतिशत लोग गरीब है और उन सभी को आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया जाता. क्यों जाति धर्म के नाम पर विभिन्न समूहों को आरक्षण देने की व्यवस्था की गई है.
पादरियों और मुल्लाओं ने हिंदुओं को प्रलोभन देकर धर्मांतरित करवाया. उन्हें प्रलोभन दिया गया कि “उनसे प्यार करो जो सबसे प्यार करता है” लेकिन धर्मांतरित होने बाद भी न तो अल्लाह न और न ही परमपिता परमात्मा ने इन दलितों से प्रेम किया. उनकी हालत बद से बदतर हो गई. अब ये मुसलमान और ईसाई दलित होकर आरक्षण की मांग कर रहे हैं. आखिर, धर्मांतरण करने वालों से क्यों नहीं पूछा जाए कि इनकी स्थिति क्यों नहीं बदली. और फिर जिन लोगों ने सामाजिक भेदभाव से तंग आकर धर्मांतरण कर लिया उन्हें यह आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिए.
कांग्रेस के युवराज दलितों के घर रात बिताकर, विदेशी मेहमानों के साथ गरीबी का फोटो खिंचवाकर हीरो तो बन जाते हैं लेकिन क्या उनके पास इस बात का जवाब है कि देश में कितने प्रतिशत लोग गरीब हैं. उनको क्या पता होगा. जिस अमेठी के लोगों ने राहुल के मॉ, दादी, चाचा, खुद उनको सांसद बनाया, उसी अमेठी में आजादी के बासठ साल गुजर जाने के बाद भी लोग गरीब क्यों है. क्या राहुल को पता कि अमेठी में कितने लोग गरीब हैं. शायद नहीं. देश में गरीबी है यह जानने के लिए प्राचीन राजा-महराजाओं की तरह राहुल को भी गरीबों के घर रात बिताना पड़ता है. उन्होंने कहना पड़ता है कि केंद्र सरकार द्वारा भेजा गया एक रूपये में से महज पांच पैसा ही गरीबों तक पहुंच पाता है(कुछ ऐसा ही खुलासा इनके पिताजी ने दशकों पहले किया था)
अजी राहुल की बात छोड़ भी दें तो क्या सरकार को पता है कि देश में कितने लोग गरीब हैं. नहीं
हाल ही अनेक समितियों का गठन हुआ. सबने अलग अलग रिपोर्ट दिया. गरीबी के आंकड़े में सबों की रिपोर्ट में जमीन आसमान का अंतर है.
साल 2005 में विभिन्न मंचों से हमारे ईमानदार अफसरशाह प्रधानमंत्री जी घोषणा किया करते थे कि देश में मात्र 26 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा नीचे रह गए हैं(महान उपलब्धि) वे आने वाले पांच सालों में इसे घटाकर दस प्रतिशत पर ला देंगे. लेकिन अभी जो गरीबी के आंकड़े सामने आएं हैं वे चौकाने वाले हैं. भले ही हर समितियों के आंकड़ों मे जमीन आसमान का फर्क है, लेकिन देश में गरीबों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हुई है. हां अमीरों की संख्या में भी कुछ बढ़ोतरी हुई है.
गरीबी के ये आंकड़े-
प्रधानमंत्री के अनुसार(2005)- 26.5 प्रतिशत
योजना आयोग द्वारा गठित तेंदुलकर समिति के अनुसार- 41.8 प्रतिशत
विश्व बैंक रिपोर्ट(2005)- 42 प्रतिशत(सवा डॉलर यानी साठ रुपया प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन के हिसाब से)
योजना आयोग के अनुसार(2005)-27.5 प्रतिशत
ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट- 50 प्रतिशत
अर्जुन सेनगुप्ता समिति की रिपोर्ट-78 प्रतिशत
जब सरकार को गरीबों की संख्या के बारे में ही पता नहीं है तो वो गरीबी को कम करने के लिए प्रयास करेगी तो किस स्तर पर. वो गरीबों को जाति-धर्म के नाम पर आरक्षण के दायरे में बांधकर उन्हें ठगने और गुमराह करने की कोशिश कर रही है.
शनिवार, 20 फ़रवरी 2010
क्या यही सेक्यूलरिज्म है?
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etana saRA AAKTDHO KE SATH LIKHA HAI DIL KA DARD SARKAR KI GARIBI VOTO KI RAJNITY sadhuvad
जवाब देंहटाएंबिल्कुल यही है. हिन्दू अपने अहित के विरुद्ध कुछ बोले तो कम्यूनल और बाकी कम्यूनल होकर भी सेक्यूलर.
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