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शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

हरिद्वार। जगद्गुरु स्वामी रामनरेशाचार्य महाराज ने कहा कि आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने देश में समरसता का मार्ग प्रशस्त किया था। 711 वर्ष पूर्व जन्म लेकर उन्होंने जाति-पाति का भेद मिटाने के लिए विभिन्न जातियों से 12 शिष्य बनाए। देश को आज समरसता की बेहद आवश्यकता है।

जगद्गुरु रामानंदाचार्य रामनरेशाचार्य महाराज ने मंगलवार की शाम टाउन हाल में आयोजित राष्ट्रीय विद्वत संगोष्ठी से पूर्व हरिद्वार के प्रमुख संस्कृत विद्वान वयोवृद्ध मनसाराम शास्त्री को एक लाख रुपयों का जगद्गुरु रामानंदाचार्य पुरस्कार देकर सम्मानित किया। जगद्गुरु ने आचार्य मनसाराम को तिलक दिया तथा उनकी ओर से ब्रह्मचारी ब्रह्मस्वरूप, महंत भगवानदास, महामंडलेश्वर हरिचेतनानंद आदि ने यह राशि उन्हें प्रदान की। इसी के साथ 25 प्रमुख विद्वानों को शॉल ओढ़कर एवं प्रत्येक को 2100 रुपयों की धनराशि प्रदान कर सम्मानित किया गया। सम्मान पाने वालों में उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के उपाध्यक्ष डा. महावीर अग्रवाल, गुरुकुल के आचार्य वेदप्रकाश शास्त्री, डा. भोलानाथ झा, मोहनलाल बाबुलकर, राजाराम वाशिमकर, डा. कमलकांत बुधकर, ओमप्रकाश भट्ट, आचार्य बुद्घिबल्लभ शास्त्री, आचार्य ज्ञानचंद शास्त्री, इंद्रकुमार मिश्रा, डा. सतीश कुमारी, उदयभानु सिंह शामिल थे। अनुपस्थित रहे विद्वानों का सम्मान उनके घर भेजा जाएगा।

भारत वर्ष की सामाजिक एकता और स्वामी रामानंद के भक्ति मार्ग विषयक विद्वत् संगोष्ठी को डा. महावीर अग्रवाल, प्रो. वेदप्रकाश शास्त्री, डा. राजीव रंजन, प्रभुनाथ द्विवेदी आदि ने संबोधित किया। वक्ताओं ने कहा कि जगद्गुरु रामानंदाचार्य ने कबीर, रैदास, तुलसीदास आदि को अपना शिष्यत्व प्रदान कर अनोखा मार्ग प्रशस्त किया। विभिन्न जातियों के संतों को उन्होंने समान रूप से सम्मानित किया।

देश को आज ऐसे महापुरुष की आवश्यकता है। जगद्गुरु रामनरेशाचार्य महाराज ने घोषणा की है कि अब हरिद्वार में हर वर्ष एक विद्वान को रामानंदाचार्य पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। देर शाम तक चले समारोह में हरिद्वार के विभिन्न अखाड़ं और आश्रमों से आए संतगणों ने भाग लिया। इससे पूर्व मंगलवार की सवेरे रामानंद आश्रम में रामचरित मानस के अखंड पाठ का समापन समारोहपूर्वक किया गया। बुधवार को जगद्गुरु की शोभायात्रा रामानंद वाटिका से रामानंद आश्रम तक निकाली जाएगी।

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