हिंदी शोध संसार

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

भेड़-बकरियां ही हैं हम

भेड़ बकरियों से ज्यादा कुछ नहीं हैं हम. फिर शशि थरूर के बयान पर बवाल कैसा? कौन लोग हैं जो शशि थरूर के बयान पर बबाल मचा रहे हैं? इन लोगों में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष मीडिया शामिल है, जो कांग्रेस को महान साबित करने में तन, मन और धन(गैर-वाजिब) जुटी हुई है.

देश किन परिस्थितियों से गुजर रहा है और मीडिया इसके लिए दोषी यूपीए सरकार को हर हाल में बचाने की मुहिम में जुटी हुई है.
सरकारी नौटंकी से एकाएक उसे प्रेम पैदा हो गया है. लालू जब ऐसा करते थे तो उन्हें ना जाने क्या-क्या कहकर संबोधित किया जाता थ. कम्युनिष्ट नेता अपने जन्म के समय से ही सादगी की प्रतिमूर्ति बने रहते हैं पर उनका गुणगान तो कोई नहीं करता. ममता बनर्जी अपनी सादगी के लिए मीडिया की सुर्खियां नहीं बनती. लेकिन राहुल बाबा ट्रेन(जिंदगी में शायद पहलीबार) सफर क्या कर लिए पूरी मीडिया उनके पीछे लग गई. ऐसा लगा कि वो पश्चिम चंपारण के किसानों को अंग्रेजों के शोषण से मुक्त कराने के लिए असहयोग आंदोलन चलाने ट्रेन से पटना पधारे हैं.
मीडिया का ध्यान खींचने के लिए सरकार ने नया नौटंकी शुरू की और पूरी मीडिया उसके पीछे हो गई. ऐसा दिखाने की कोशिश की देश में पहलीबार गरीबी आई है और हमारे नेता अपने खर्च में कटौती कर देश का उद्धार चाहते हैं.
इंदिरा गांधी तो सत्तर के दशक में ही देश से गरीबी हटा चुकी थी. फिर प्रणब मुखर्जी को एकाएक कैसे लग गया है कि देश में गरीबी है. असल में बात ये है कि आर्थिक, सामाजिक, विदेशनीति के स्तर पर असफल हो चुकी सरकार को जनता का ध्यान बंटाने के लिए कुछ चाहिए था और उसने खर्च कटौती का तमाशा शुरू कर दिया.
इसमें नई बात क्या है कि देश में गरीबी है. क्या राहुल के चरणों पर बिछने वाली मीडिया कभी देश की गरीबी को दिखाती है. मीडिया को सरकारी मदद चाहिए. जो मदद देती है वह उसके आगे बिछी रहती है. कांग्रेस ने पिछले पैंतालिस सालों तक उसका साथ दिया, इसलिए वो उसके सामने अक्सर बिछ जाती है और सच्चाई को जनता से दूर रखती है.
सरकार ने ही असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की स्थिति जानने के लिए अर्जुन सेनगुप्ता कमिटि बनाई थी. कमिटि की रिपोर्ट को मीडिया ने कितनी बार दिखाया? कमिटी के मुताबिक, देश के 80 प्रतिशत लोग 20 रुपये से भी कम पर गुजारा करने के लिए मजबूर हैं. बीस रुपये में एक किलो चावल नहीं मिलता है, लेकिन लोग 20 रुपये में घर का खर्च चलाते हैं. क्या ये बात मीडिया और हमारे नेताओं को नहीं मालूम है.
ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट भी यही बात कहती है कि देश के करीब अठहत्तर प्रतिशत लोग गरीब हैं और उन्हें बीस रुपये से कम में गुजर बसर करना पड़ता है. प्रधानमंत्री कई बार झूठ बोल चुके हैं कि देश में मात्र छब्बीस प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं. तथ्य को छुपाने के लिए प्रतिव्यक्ति आय को ज्यादा कर दिखाया गया.
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट कहती है कि नरेगा अपने उद्देश्यों में असफल रहा है. राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश को छोड़कर बाकी किसी राज्य ने नरेगा के धन में से पचास प्रतिशत का भी उपयोग नहीं किया है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है. राज्य सरकारें पैसा खर्च नहीं करना चाहती है या पैसा स्वयं खर्च नहीं होना चाहता है.
दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों को मजदूर नरेगा में काम नहीं करना चाहते हैं. उनकी शिकायत है कि उन्हें नरेगा में इतनी कम मजदूरी मिलती है कि उससे उसका गुजारा नहीं हो सकता. महंगाई दर ऋणात्मक है लेकिन चीजों के दाम आसमान पर हैं. ऐसे में लोगों का क्या होगा. नरेगा से उनका पेट कैसे भरेगा. रही-सही कसर नरेगा में फैले भ्रष्टाचार ने पूरी कर दी है.
लौटते हैं शशि थरूर की बात पर. शशि थरूर ने कांग्रेस संस्कृति की सच्चाई बताई है. सारे पाप करेंगे, लेकिन जनता से वोट लेना है, इसलिए अपने को पाक-साफ भी दिखाएंगे. नौटकी करेंगे. विदेशमंत्री और विदेश राज्यमंत्री तीन-तीन महीने तक पंच सितारा होटल में रहे जिसका रोज का किराया एक लाख और चालीस हजार के करीब है. उन्हें तीन महीने बाद होटल रूम खाली करके सरकारी आवास में रहने कहा जाता है. फरमान है इसलिए खाली करना पड़ता है. अंदर ही अंदर कोहराम मचा हुआ है. लेकिन जब सोनिया मैडम इकोनोमी क्लास में सफर करेगी तो उनकी कतार तोड़ने वाला कौन है. लेकिन इंसान ही हैं, शशि थरूर से बर्दास्त नहीं हुआ और कह दिया भेड़ बकरियों के साथ हम भी गाय बनेंगे. कांग्रेस का पाचन तंत्र उनका मजबूत नहीं है कि वो इस सच्चाई को कबूल कर सके कि हर नेता यही कहना चाहता है कि जनता भेड़ बकरियां होती हैं और उनको भेड़ बकरियां बनाए रखों ताकि बार-बार नरेगा जैसे योजनाएं बनाकर उन्हें चारा डालकर दूहने का मौका मिलता रहे.


जय हिंदी जय भारत

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