हिंदी शोध संसार

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

सफ़ेद हाथी

मीडिया इतना शोर-शराबा मचायेगी तो हमारी अर्थव्यवस्था ताश के पत्तों की तरह ढह जायेगी। हमारी अर्थव्यवस्था अमेरिकी अर्थव्यवस्था की तरह बर्बाद हो जायेगी।
आईटी कंपनी सत्यम के डूबने के बाद कई विशेषज्ञों का मानना था कि सरकार मीडिया की खबरों को सेंसर करे, सरकार उस पर रोक लगाये। किसी ने ठीक ही कहा है कि सरकार तब चैन की नींद सोती है जब मीडिया वाले ख़बरों की जगह राखी सावंत का नाच, राजू श्रीवास्तव के हंसगुल्ले, आमिर की गजनी और शाहरुख़ की रब ने बनाई जोड़ी को चौबीसों घंटे दिखाती है।
जब कभी मीडिया मुंबई हमले के बाद लोगों के आक्रोश को दिखाती है तो सरकारी फरमान आ जाता है कि लोगों को डराना बंद करो नही तो तुम पर कार्रवाई की जायेगी। यानी टीवी वालों का लिंक कट दिया जाएगा। उसकी संपत्ति जब्त कर ली जायेगी।
आखिर क्या करे टीवी वाला।
वह कभी लोगों से सच दिखाने का दावा करता है, कभी सोचने के लिए मजबूर करता है, कभी आपको आगे रखने का दावा करता है। इन्हीं घनचक्कर शब्दों के चक्कर में वह कभी कुछ दिखने की कोशिश करती है तो सरकारी फरमान उसको मजबूर करती है कि तुम रब ने बनाई जोड़ी, गजिनी का प्रमोशन दिखाओ और दिखाते रहो। तुम भी चैन से सो जाओ और हमें भी सोने दो।
टीवी चैनल वालों के लिए भी अच्छा है। न्यूज़ के नाम पर फ़िल्म का प्रमोशन दिखाकर पैसे कमाना उसके लिए उसके लिए आसन हो गया है। विज्ञापन प्रसारण के लिए उसे पैसे भी नही खर्च करना पड़ता है और कमी भी जबरदस्त हो जाती है।
दरअसल सरकार भी यही चाहती है। आज सत्यम कंपनी ने अपने निवेशकों को दिवालिया कर दिया। खुद कितनी दिवालिया हुई वह तो पीछे की बात है। सत्यम में पाँच हज़ार से दस हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले की बात सामने आ रही है। कंपनी ने हाल के दिनों में जो भी लेनदारी-देनदारी, मुनाफा दिखाया वह सब झूठ था सब फरेब था। किसी और का नहीं, ख़ुद कंपनी के करता-धरता रामालिंगम राजू का कहना है। स्थिति यहाँ तक आ पहुँची है राजू की गिरफ्तारी भी हो सकती है।
इतना सब कुछ होने के बाद भी मीडिया अगर कुछ दिखा रही है तो साहेब लोगों का कहना है की सरकार को इस पर रोक लगना चाहिए नहीं तो देश की अर्थव्यवस्था ताश के पत्तों की तरह बिखर जायेगी।
दरअसल पैसे वाले यही चाहते है की मीडिया, लाल-फीताशाही और पेज थ्री की खबरें ही दिखाए। ज्योही उनकी हेरा-फेरी, उनकी बेईमानी, मक्कारी की ख़बर दिखने की बात होती है, उसपर सेंसर की बात कही जाने लगती है। तभी तो देश की अर्थव्यवस्था का हवाला देकर देश के सबसे बड़े कारपोरेट घोटाले की ख़बर को दिखाने पर पाबन्दी की बात कही गई।
देश में किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है। सरकार ने किसानों की हालत सुधारने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। लोकसभा चुनाव को करीब देखते हुए किसानों के हाथ कर्जमाफी का झुनझुना थमा दिया और कहा इसे तब तक बजाते रहो जब तक कोई अगली सरकार हम्हारे कर्जो को माफ़ करने के लिए तैयार न हो जाए। जब तक झुनझुना बाजते रहो ठीक है, अगर सरकार की इस नाकामी को दिखने की कोशिश की तो लिंक काट दिया जाएगा, क्योंकि हम सरकार हैं।

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