हिंदी शोध संसार

शनिवार, 30 अगस्त 2008

क्यों जल रहा है कंधमाल


आठ महीनों बाद कंधमाल एकबार फिर जल उठा है. आठ महीने पहले स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती हमले को लेकर कंधमाल जल उठा है. अब बहाना है उन्हीं स्वामीजी की हत्या का. क्या स्वामी जी की हत्या ही कंधमाल की आग की वजह है या फिर कोई और? स्थानीय लोगों का मानना है कि ये आरक्षण की आग है जिसे हर कोई हर कीमत पर हासिल करना चाहता है. करीब साढ़ छह लाख की आबादी वाले कंधमाल जिले में बाबन प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और सत्रह प्रतिशत अनुसूचित जाति के लोग रहते हैं. एक लाख के करीब यहां ईसाईयों की आबादी है. ईसाईयों की आधा से ज्यादा आबादी धर्मांतरित अनुसूचित जाति यानी एससी की है. धर्मांतरित ईसाई, पना ईसाई कहलाते हैं. पना ईसाई खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल किए जाने की मांग कर रहे हैं. जो कंधमाल में लगे आग की जड़ है. कानून के मुताबिक, जो अनुसूचित जनजाति धर्मांतरित होकर क्रिश्चन बन गए है उन्हें एसटी कोटे में आरक्षण का लाभ मिलता है, लेकिन अनुसूचित जाति के लोग, जिन्होंने अपना धर्म बदल लिया है उन्हें यह फायदा नहीं मिलता है. विश्व हिंदू परिषद पन्ना ईसाईयों को आरक्षण दिए जाने के विरोध में है.

जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं?






इस वक्त जहां नदी बह रही है, वहां कुछ रोज पहले तक सड़क हुआ करती थी. सड़क जो जोड़ती थी दोनों ओर के लोगों को. आज भी दोनों के बीच दूरी बहुत ज्यादा नहीं है, मगर ये फासला कयामत जैसा है. भूख से इधर वाले भी तड़प रहे हैं और उधर वाले भी. दोनों पास होते तो अपनी बदनसीबी पर लगे मिलकर रोते या फिर एक दूसरे का मुंह देखकर जिंदा रहते.

एक सप्ताह हो गए, कुछ बाबू लोग आए थे, बोले, चूड़ा-शक्कर ला रहे हैं, लेकिन वो एकबार गए, फिर लौटकर नहीं आए. सप्ताह भर बीत गया. पेट में न अन्न का न एक दाना उतरा है और न ही हलक नीचे पानी का एक बूंद. ये कहानी अफ्रीका के सूदूर जंगली इलाके में रहने वाली आदिम जनजाति की नहीं है, बल्कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के एक राज्य की है. हम बात कर रहे हैं बिहार की और वहां रहनेवाली बदनसीब जनता की. वही बिहारी जनता जिसे कभी असम से खदेड़ा जाता है तो कभी महाराष्ट्र से. लेकिन आज इन्हें न तो असमियों से शिकायत है और न मराठियों से. क्योंकि आज ये अपने घर हैं, अपनी जन्मभूमि बिहार में. आज ये अपने ही भाग्य पर रोने को मजबूर हैं. मगर बिडंबना यह है कि इनकी सुननेवाला कोई नहीं है.


ये कहानी है उस भारत की, जहां कारगिल में युद्ध का नाम सुनते ही पूरा देश एक हो जाता है. युवाओं की भुजाएं फड़कने लगती है. भूकंप पाकिस्तान में आता है तो दर्द भारत को होता है, धरती चीन में हिलती है तो सीना भारत का फटने लगता है, सुनामी इंडोनेशिया में आता है तो मदद के हाथ भारत के उठते हैं. यह कहानी उसी भारत है यहां भुज के भूकंप और गुजरात दंगों की खबर सुनते ही रातों-रात सैकड़ों स्वयंसेवी संगठन खड़े हो जाते है, तमिलनाडु में सुनामी का नाम सुनते ही अभिनेता और अभिनेत्रियां रिलीफ शो करने आते हैं.

हम बात उसी भारत का कर रहे हैं जिसे बड़े गर्व से दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति कहा जाता है, जिसे अंतिरक्ष की छठी सबसे बड़ी शक्ति कहने में हमें गर्व महसूस होता है.

कहां हैं वो लोग जिन्हें हिंदुस्तान पर नाज है. मानव के अधिकार के नाम सारी दुनिया सर पर उठाने वाली मानवाधिकार संस्थाएं कहां है. कहां है रोटरी क्लब. क्या जलसमाधि ले रहे इन लोगों को जीने का अधिकार नहीं है.

आज बिहार कोऐसे ही लोगों और संस्थाओं की जरूरत है, जिन्हें हिंदुस्तान पर गर्व है. बिहार और बिहार के लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं. उनका सब कुछ लुट गया है. घर-बार, खेती-पथारी, माल-मवेशी. बाढ़ में फंसे लाखों लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाने की जरूरत है. अन्न के एक-एक दाने और पानी के एक-एक बूंद के लिए तरस रहे लोगों को मदद की जरूरत है. जरूरत सिर्फ जा की नहीं, बल्कि आने वाले कई महीनों तक की है. भारत सरकार इस विभीषिका को राष्ट्रीय आपदा घोषित कर चुकी है. इस राष्ट्रीय आपदा से उबरने के लिए भारी मात्रा में धन की जरूरत होगी. फिलहाल जरूरत है, फंसे लोगों को बचाने और जो बच गए हैं उन्हें जिंदा रखने की.

कहते हैं कि दुनियां छोटी हो गई है. लेकिन दुनिया आज भी उतनी ही बड़ी है जितनी बड़ी पहले हुआ करती थी. पहले संसाधन नहीं थे, जानकारी थी. आज हमारे पास अखबार, टीवी, रेडियो है.. मोबाइल, कंप्यूटर और इंटरनेट है. फिर भी इंसान के बीच दूरी है. ये दूरी बिडंबना है हिंदुस्तान के लिए और जलसमाधि लेने को मजबूर इन लाखों लोगों के लिए.

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

श्रीप्रकाश को ज्ञान की प्राप्ति

श्रीप्रकाश को ज्ञान की प्राप्ति

केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल को अद्भुत ज्ञान की प्राप्ति हो गई है. इसके लिए उन्हें बुद्ध भगवान की तरह न तो गृह त्याग करना पड़ा, न ही पीपल वृक्ष के नीचे घनघोर तपस्या करनी पड़ी.

लेकिन ज्ञान प्राप्ति के तुरंत बाद उन्हें खीर मिली वह बेहद तीखी थी.

एक अद्भुत ज्ञान जोसारे सेक्यूलरों को वैतरणी पार कराने और आरएसएस और बजरंग दल पर अंगुलियां उठाने और उस पर प्रतिबंध लगवाने में मदद करेगा. लेकिन प्रथमे ग्रासे मच्छिका पात: उनका ज्ञान उन्हीं के लिए भारी पड़ गया.

श्रीप्रकाश को ज्ञान की खोज में क्यों निकलना पड़ा(राजकुमार सिद्धार्थ ने एक बूढ़ा, एक बीमार और एक शवयात्रा को देखा. उनके बालमन में ये बात आई आखिर आदमी बीमार क्यों पड़ता है, बूढ़ा क्यों होता है, आखिर आदमी मरता क्यों है. यानी आदमी दुखी है तो क्यों है, उसके दुख का कारण क्या है, उस दुख का निवारण क्या है. सिद्धार्थ ने दुख के कारण और निवारण की खोज में घर छोड़ दिया, बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे तपस्या की, उन्हें ज्ञान की प्राप्त हुई. इसी तर्ज पर श्रीप्रकाश के ज्ञान प्राप्ति की भी अपनी पृष्ठभूमि है. )

कुछ रोज पहले कानपुर के एक हॉस्टल में विस्फोट हुआ. उस विस्फोट में राजीव मिश्र और रोहित सिंह नामक दो युवक मारे गए. बाद में पुलिस ने घटनास्थल की छानबीन की, वहां से ग्यारह ग्रेनेड, सात टाइमर डिवाइस और कुछ अन्य विस्फोट बरामद हुए.

जैसा कि महापुरूषों के मामले में होता है(पेड़ से सेब गिरने से न्यूटन परेशान हो गए, आखिर यह सेब ऊपर क्यों नहीं चला गया और उन्होंने गुरूत्वाकर्षण के सिद्धांत की खोज की, आर्किमीडिज पानी में तैरने गया, उसे लगा कि पानी में उसे कोई अंदर से उसे ऊपर धकेल रहा है, वह पागलो की तरह यूरेका, यूरेका चिल्लाने लगा और उन्होंने उत्पलावकता के सिद्धांत की खोज कर दी.) कानपुर हॉस्टल में विस्फोट के बाद श्रीप्रकाश जायसवाल के दिमाग में भी कुछ इसी तरह की उथल-पुथल मचल गई. एकाएक उन्हें लगा कि देश में सांप्रदायिक सदभाव बिगाड़ने के लिए बजरंग दल जैसे हिंदूवादी संगठन साजिश रच रहे थे. फिर क्या उन्होंने सीबीआई जांच सिद्धांत की खोज कर डाली.

(यहां श्रीप्रकाश की नीयत पर सवाल उठाना गैर-मुनासिब है, न्यूटन से पहले भी पेड़ से फल क्या, लाखों करोड़ों सेब ही गिरे होंगे, दूसरे लोगों के सामने क्या खुद न्यूटन(जिस दिन उनके दिमाग में यह बात कौंधी उससे पहले) के आगे-पीछे, दांये-बांये सैंकड़ों फल गिरे होंगे, आर्किमिडीज से पहले भी लाखों-करोड़ों लोगों को पानी में से कोई ताकत उन्हें ऊपर की ओर धकेला होगा, यूरेका-यूरेका चिल्लाने से पहले कई बार खुद आर्किमिडीज को भी पानी में ऊपर की ओर धकेला गया होगा, किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया तो क्या लोग उनकी नीयत पर सवाल उठाते है. श्रीप्रकाश जायसवाल के मामले में भी यहीं हुआ होगा, बड़े पद पर हैं तो क्या हुआ, देश के गृह राज्यमंत्री हैं तो क्या हुआ, हर बार सीबीआई जांच सिद्धांत की खोज तो नहीं की जा सकती है न, देश में आतंकवादी हमले होते रहे हैं, इससे क्या मतलब की कांग्रेस के शासनकाल में ज्यादा हमले हुए और किसी आंतकवादी को मार गिराना तो दूर, उसे पकड़ा भी नहीं गया.)

यहां तलक सब ठीक है आगे रस्ता है अंजान,

उत्तरप्रदेश प्रदेश की मुख्यमंत्री बहन मायावती ने उनके सिद्धांत पर सवाल खड़े कर दिए. उनका कहना था कि कांग्रेस, भाजपा को बचाना चाहती है, इसलिए मामले की सीबीआई जांच की बात कर रही है, उसे ये भी मालूम है कि मामले की जांच उत्तरप्रदेश पुलिस करेगी तो दूध का दूध और पानी का पानी निकलकर सामने आ जाएगा(आरूषि मामले में उत्तरप्रदेश पुलिस ने जो वीरता और बहादूरी का परिचय दिया, बहन मायावती उसके कायल हैं)

कुल मिलाकर मायावती ने श्रीप्रकाश जायसवाल के सीबीआई जांच सिद्धांत पर सवाल खड़े कर दिए(श्रीप्रकाश जी की वर्षों की मेहनत पर पानी फिर गया(एक सेब को जमीन पर गिरने के लिए पता नहीं न्यूटन को कितने सालों तक हर रोज बगीचे की सैर करनी होती होगी. इसी तरह पानी के अंदर से कोई धकेलता है, यह जानने के लिए पता नहीं, आर्किमिडीज को कितने सालों तक पानी में डूबकिया लगानी पड़ी होगी, इतनी कड़ी मेहनत के बाद यदि कोई व्यक्ति न्यूटन और आर्किमिडीज के सिद्धांत की धज्जियां उड़ा तो पता नहीं उसे कितना दुख होता, शायद वह आगे के शोध पर स्व-प्रतिबंध लगा ले, मगर श्रीप्रकाश जी का सेक्यूलर धर्म उन्हें इतनी शक्ति देता है कि वह सिद्धांत पर सिद्धांत प्रतिपादित करते रहेंगे)). वैसे श्रीप्रकाश जी के कई सिद्धांत गृहमंत्रालय से लेकर सेल्यूलर मीडिया के चरण चुंबन करते रहते हैं(मसलन, मैंने राज्यों को पहले ही खुफिया रिपोर्ट दे दी कि इस देश में कहीं भी और कभी भी आतंकवादी हमला हो सकता है, किसी समुदाय को आतंकवादी कहने वाला सबसे बड़ा आतंकवादी है, पोटा की मांग करने वाले सभी आरएसएस होते हैं और इन्हें आतंकवादी हमलों पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं होना चाहिए, क्योंकि पोटा के रहते हुए संसद भवन, अक्षरधाम मंदिर पर आतंकवादी हमले हुए हो, इससे क्या कि इनमें सभी आतंकवादी मौके पर ही मारे गए.)

श्रीप्रकाश जायसवाल को कितना दुख हुआ होगा कहने की जरूरत नहीं है, उनकी वर्षों की मेहनत पर पानी फिर गया. उनके मनसूबों में पलीता लग गया. मगर योद्धा नहीं विचलित होते हैं कि तर्ज वे आगे भी अपना काम जारी रखेंगे, ऐसी आशा की जानी चाहिए(बल्ब का फिलामेंट खोजने में थोमस अल्वा एडीसन को हजारों धातु और उसके मिश्रण पर प्रयोग करना पड़ा था)

बहन मायावती ने कह दिया कि वह अकेले इस मामले की जांच की सिफारिश नहीं करेंगी, वह रामपुर के सीआरपीएफ कैंप पर आतंकी हमले सहित प्रदेश में हुए सभी बम विस्फोटों की सीबीआई जांच की सिफारिश करती हैं और सभी मामलों की सीबीआई जांच होनी चाहिए.

मायावती ने श्रीप्रकाश पर आरोप लगा दिया कि वो भाजपा की मदद के लिए मामले की सीबीआई से जांच करने की मांग कर रहे हैं(जबकि ऐसा उन्होंने कुछ सेक्यूलरवादी और कुछ मुस्लिम संगठनों के कहने पर किया) वहीं, कई लोग मायावती पर आरोप लगा रहे हैं कि मायावती का भाजपा से कोई सांठ-गांठ है. कुछ भी हो श्रीप्रकाश जी को महान ज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसका उपयोग दूसरे करें या न करें सेक्यूलरवादियों के लिए मुस्लिम वोट बैंक पुख्ता करने का काम करेगा और छद्म-धर्मनिरपेक्ष ताकतों को युगों-युगों तक प्रेरणा देता रहेगा(जैसा कि सीपीएम राजीव गांधी के उस बयान से प्रेरणा लेती है जिसमें उन्होंने साफ साफ कहा था कि मुसलमानों के लिए विशेष प्रावधान होना होना चाहिए क्योंकि(प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन के अर्थशास्र के अनुसार, देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है.))

सोमवार, 25 अगस्त 2008

किस सांप्रदायिक शक्ति की बात कर रहे हो जी?

एनडीटीवी इंडिया पर कश्मीर से संबंधित एक रिपोर्ट दिखाई जा रही थी. इस रिपोर्ट में दिखाया गया था कि घाटी के मुसलमान भी कृष्णजन्माष्टी में शरीक हो रहे हैं. रिपोर्ट के साथ एक टैग, जो एनडीटीवी जैसे चैनलों की विशेषता है, जोड़ा गया कि जहां एक ओर सांप्रदायिक शक्तियां श्रीनगर को सुलगाने की कोशिश कर रही है.
किस सांप्रदायिक शक्ति की बात कर रहे हो जी?
क्या अपने हक की लड़ाई करना सांप्रदायिकता है, क्या सत्ता पाने के लिए तुष्टिकरण को बढ़ावा देना ही धर्म-निरपेक्षता है. अपने ही देश में अमरनाथ यात्रियों अस्थायी पड़ाव के लिए कुछ एकड़ जमीन खरीदना सांप्रदायिकता है. क्या पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगानेवाले धर्मनिरपेक्ष हैं? क्या आतंकवादियों का झंडा थामने वाले धर्मनिरपेक्ष हैं? क्या आतंकवादियों को पकड़ना संप्रदाय विशेष को परेशान करना है?
गुजरात चुनाव में पद्मविभूषित पत्रकार विनोद दुआ की जुबां से जो लच्छेदार शब्द की लड़िया फूटती थी, वही धर्मनिरपेक्षता है? जब देखो तब उनकी जुबां से निकलती थी-
ये लोग विकास के साबून से गुजरात दंगों का खून धोना चाहते हैं.
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दुआ जी, आप 1984 के सिख दंगों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी आलोचना क्यों नहीं करते, जिन्होंने कहा था, जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है.
आप पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य की आलोचना क्यों नहीं करते हैं, जिन्होंने नंदीग्राम में महीनों चले हिंसा के दौरान कहा था- हमारे लोगों ने तृणमूल कांग्रेस के लोगों को लोगों को ईंट का जवाब पत्थर से दिया था. सीपीएम के कार्यकर्ताओं के तांडव को आपका चैनल माओवादियों की करतूत साबित करने में जुटा था. आपने कामरेड सीताराम येचुरी की आलोचना क्यों नहीं की, जिन्हें बुद्धदेव भट्टाचार्य के बयान में कुछ भी गलत सुनाई नहीं दिया.
कहां थे आप असम हिंसा के दौरान, जहां कम से कम तीस लोगों को पीट-पीट कर मार डाला गया और आपका चैनल इस सत्य के उजागर में लगा रहा था कि सरकार के मुताबिक हिंसा में महज एक व्यक्ति ही मारा गया.
देश की एकता अखंडता की बात करने वाला आपको सांप्रदायिक लगने लगता है. समग्र विकास की बात करने वाला आपको सांप्रदायिक लगने लगता है और समाज को बांटने वाला धर्मनिरपेक्षता.
अलगाववादी ताकतें आपको धर्म-निरपेक्ष लगता है और अपने हक की मांग करने वाला. साप्रदायिक.
महीनों से कश्मीर जल रहा है और आपकी धर्म निरपेक्ष सरकार चुपचाप तमाशा देख रही है.
जब हम जम्मू-कश्मीर के संसाधनों का उपयोग नहीं कर सकते हैं तो कश्मीर किस काम का. हमने हजारों करोड़ रुपये घाटी को दिए, बदले में घाटी ने हमको क्या दिया- चंद अलगाववादी नेता, पाकिस्तान का झंडा बुलंद करने वाले लोग. क्यों नहीं जम्मू के लोगों को उनका हक मिलता.
हिंदू-धर्म स्वभाव से ही धर्म-निरपेक्ष है. लेकिन जब आप अल्पसंख्यक तुष्टिकरण को बढ़ावा देंगे. तो बहुसंख्यक असंतुष्ट होगा ही. आप सच बोलने का दावा करते हैं, लेकिन आपके सच की बुनियाद कहां. सवाल अभी कई और हैं मिलते हैं इस छोटे से ब्रेक के बाद.