हिंदी शोध संसार

गुरुवार, 27 नवंबर 2008

लोग नहीं रखेंगे याद


मुंबई में छब्बीस तारीख की रात क्या हुआ, कहने की जरूरत नहीं है. मैं पूरी रात टेलीविजन चैनल बदलता रहा. टेलीविजन चैनलों ने इसे देश का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला करार दिया. हताहतों की संख्या के हिसाब से देखें तो यह हमला देश में हुए कई अन्य हमलों से छोटा है, लेकिन यह हमला जितना जटिल है, जितने लंबे देर तक चला है(अभी जारी है), इसे देश का सबसे बड़ा आतंकवादी हमला कहा जाना गैर-मुनासिब नहीं है. सबसे अहम बात अभी मिली जानकारी के मुताबिक, पुलिस के ग्यारह मारे जा चुके हैं. इनमें मुंबई एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे, एक एसीपी और एक एनकाउंटर स्पेशलिस्ट शामिल हैं. खबरों में मुताबिक नौ सेना का एक जवान भीमारा गया है. ऑपरेशन में राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के 200 कमांडो, थल सेना और नौ सेना के जवान, ब्लैक कमांडो, मुंबई पुलिस जुटा हुआ है. ताज होटल, ट्रिडेंट होटल, ओबराय होटल में फंसे पर्यटकों और विदेशी अधिकारियों को निकाला जा रहा है. पिछले बारह घंटे से लगातार ऑपरेशन जारी है. कब खत्म होगा कहा नहीं जा सकता है.


कहा जा रहा है कि एक दर्जन से ज्यादा आतंकवादी समुद्री रास्ते से आए. एक तिकड़मी टेलीविजन चैनल, जिसे खबरें ज्यादातर सूत्रों से ही मिलती है, ने बार-बार कहा है कि आतंकवादी गुजरात से आए हैं. उस चैनल के सूत्रों का कहना है कि केंद्र सरकार ने उसे बहुत सी जानकारी दी है, लेकिन ये जानकारी चैनलों के माध्यम से आतंकवादी तक नहीं पहुंच जाएं, इसलिए वह इन्हें अपने चैनल पर नहीं दिखा सकता है. हालांकि कई चैनलों ने लगातार बड़ी ही शिद्दत से पल-पल की जानकारी दी, सही जानकारी देने की हर संभव कोशिश की. आईबीएन-7 का पत्रकार तो मानों रो-रोकर जानकारी दे रहा हो.


होटलों, छत्रपति शिवाजी टर्मिनल और सड़कों पर कहीं चीख पुकार थी, तो कहीं कराह. कुल मिलाकर एक जबरदस्त सन्नाटा.
इन सबके बीच चैनलों पर शहीदों के गुनगान में कसीदे पढ़े जाने लगे. कहा जाने लगा कि इन शहीदों को हिंदुस्तान कभी नहीं भूलेगा, यानी हमेशा याद रखेगा. लेकिन पश्चिमी इतिहासकारों का ये आरोप कि हिंदुस्तानी कभी अच्छे इतिहासकार नहीं रहे हैं, क्योंकि वे भुलक्कड़ होते हैं. हम हिंदुस्तानी इस कथ्य पर भले ही विदेशियों को गाली दें, लेकिन गंभीरतापूर्वक सोंचे तो वह कहीं न कहीं सच कह रहे होते हैं. सच है कि हम बड़ी से बड़ी घटना, बड़े से बड़े दर्द, बड़े से बड़े अपमान, बड़ी से बड़ी जिल्लत, बड़ी से बड़ी मार को भूलने के आदि होते हैं. ऐसे में ये कहा जाए कि इन शहीदों को देश कभी नहीं भूलेगा. ये उनकी शहादत को गाली देना है. वो व्यक्ति जब तक जिंदा था, जो हुआ पाप पुण्य किया. अब उसके जाने के बाद तो उसे गाली नहीं दें, लेकिन हमारी फितरत है कि हम इसके आदि हैं.


मुठभेड़ जारी है, तब तक हम थोड़े संजीदा हैं. हालांकि बेशर्मों, पतितों और कुकर्मियों का इक्का-दुक्का बयान आना शुरू हो गया है. भौं-तरेर चिरकुच ने कह दिया है कि राज्य सरकार को तमाम सरकारी इमदाद मुहैया करायी जा रही है, जिसकी उसे जरूरत है. तिकड़मी चैनल का जाल बिछना शुरू हो गया है. उसने बता दिया है कि आतंकवादी गुजरात से आएं है. उसके पास बहुत सी जानकारी है, जिसे केंद्र सरकार ने उसे मुहैया कराया है, वो भी सूत्रों के जरिए. मुठभेड़ को खत्म होते ही वह इस गुप्तज्ञान का प्रचार प्रसार करेगा. इस ज्ञान में कुछ बातें इस तरह की है-
पहला, तो इसे विदेशी हमला करार दिया जाएगा.
दूसरा, इसे अंडरवर्ल्ड की सांठगांठ बताया जाएगा.
तीसरा, इसमें हिंदू आतंकवादियों(इस तिकड़मी चैनल और कांग्रेस की हालिया खोज) के शामिल रहने की बात कही जाएगी.
चौथा, गुजरात सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाएगा.


और भी कई बातें हो सकती हैं, जिसे उद्घाटन तो यही चैनल करेगा.


मुठभेड़ के खत्म होते ही, बेशर्मों, कथित धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवियों, लाल सलाम ब्रिगेड आदि की बेशर्म बयानबाजी शुरू हो जाएगी. भगवा ब्रिगेड को ओर से पोटा जैसे कड़े कानून की मांग होगी. जिसे लात मारे कुत्ते की कांय-कांय समझकर खारिज कर दिया जाएगा. नए सिरे से हिंदू आतंकवादियों की खोज की जाएगी. उन्हें परेशान किया जाएगा, यातनाएं दी जाएगी. फिर कहां याद रहेंगे ये शहीद. और आखिर हिंदुस्तान उन्हें क्यों याद रखेगा.

5 टिप्‍पणियां :

  1. ek dam sahi kaha,har shabdh se sehmat hai aapke lekh se,bhul jayenge.

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  2. बढ़ते जा रहे हैं आतंक के हौंसले और हमें कुछ ना कर पाने की मजबूरी सताए जाती है। कुछ विस्फोट में मर जाते हैं और हम हर दिन इस दहशत में मरते हैं कि जाने कब हमारा या हमारे परिवार के किसी सदस्य का नाम उस सूची में शामिल हो जाए। कब तक बनती रहेंगी ये सूचियां....बस, अब और नहीं।

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  3. क्या इस घटना का वास्तविक मूल्यांकन हम कभी कर पायेंगे या सिर्फ शाब्दिक और वैचारिक जुगाली ही हमारा कर्म है? क्या मीडिया और इंटरनेट पर महज हल्ला मचाकर ही आतंकवाद पर लगाम लगाने की कवायद की जा रही है यदि यह रास्ता सफल हो गया तो गांधीजी के अहिंसा के अस्त्र के बाद यह सबसे बड़ी खोज होगी और नोबेल पुरस्कार के लिये नामांकित किये जाने की संभावना भी बन जायेगी।

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  4. जहां पुलीस, जल सेना और थल सेना का आपरेशन हो, उसे तो गृह युद्ध ही कहेंगे। कितने निर्दोष लोग मारे गए पर अंत में पुलिस को ही बदनाम किया जाएगा कि यह तो फर्ज़ी मुठभेड था!!

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