हिंदी शोध संसार

रविवार, 12 अक्तूबर 2008

मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूं.

मैंने वो लेख एक प्रतिक्रिया में लिखी थी.
मैं सर्वश्रेष्ठ रहकर भी किसी को अपने से नीचा नहीं देखना चाहता हूं.
हिंदू धर्म सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन ना तो मुस्लिम ना तो ईसाई धर्म इससे कमतर है.
हिंदू धर्म ने हमें यहीं श्रेष्ठता सिखलाई है.
जहां तक मैं हिंदू धर्म को समझ सका हूं, जान सका हूं.
मैं कोई, ज्ञानी-ध्यानी, तपस्वी-योगी नहीं हूं.
तब भी मैं दावा कर सकता हूं कि मैं हिंदू धर्म के मर्म को समझता हूं.
अच्छी तरह समझता हूं.
तुलसी की झाड़ स्वास्थ्यवर्द्धक है, तो किसी ने इसे धर्म से जोड़कर पूजनीय बना है.
न्याय के खिलाफ आवाज उठाना सही है तो कृष्ण ने पार्थ से कहा यही तुम्हारा धर्म है.
मैं गंदे नाली को साफ कर रहा था तो एक बुढिया ने कहा, बेटा, तुम धर्म का काम कर रहे हो.
एक हिंदू के रूप में मैं ग्लानि से भर जाता हूं जब कोई हिंदू किसी धर्म या उसके धर्माबलंवियों को गाली देता है या किसी अन्य धर्म को नीच दिखाने की कोशिश करता है.
क्योंकि ऐसा करना हिंदू धर्म को ही अपना करना है.
भारत में जब एक ओर संतोषं परमं सुखम का मंत्र पढ़ा जा रहा था तो चार्वाक ने कहा-
यावत जीवेत, सुखम जीवेत, ऋणम कृत्वा घृतम पिबेत.
और इस घोर भौतिकतावादी विचारधारा के प्रणेता चार्वाक को हमने ऋषि से सम्मानित किया.
चार वेद लिखे, काम नहीं चला, अठारह पुराण लिख लिए, काम नहीं चला, एक सौ आठ उपनिषद लिख लिए काम नहीं चला. स्मृतियां लिखी, रामायण लिखे, महाभारत लिखे, गीता लिखे, इनमें कौन है हिंदुओं का धर्मग्रंथ. सभी हैं और भी लिखते जाओ सबको शामिल कर लेंगे.
बाइबिल और कुरान को भी उतना ही सम्मान देंगे जितना गीता और रामायण को.
कौन को हिंदुओं के इष्टदेव, सुना था, हिंदुओं के पनपन करोड़ देवता हैं, अब बढ़कर एक बीस करोड़ के करीब हो गए हैं. पैगंबर और ईशुमसीह को भी इसमें शामिल कर लो, कोई बुराई नहीं.
कभी सप्तर्षि हुए, आज आचार्यों और ऋषियों की श्रृंखला काफी बड़ी हो गई है. अनगिनत हैं.
कितना विशाल है हिंदुधर्म.
इसलिए मेरे हिंदू होने पर मुझे गर्व है.
एक हिंदू के रूप में मुझे मुझे राम की स्तुति और राम की आलोचना दोनों सुनने की ताकत है.
सबसे बड़ी ताकत रामपर सवाल उठाने और चर्चा करने की मेरी स्वतंत्रता है.
यही वजह है कि मैं हिंदू धर्म को श्रेष्ठ मानता हूं, साथ ये भी कहता हूं कि और कोई दूसरा धर्म इससे हीन या कमतर नहीं है. श्रेष्ठ बनकर सबको श्रेष्ठ देखने की अभिलाषा हीं हिंदुत्व है.
हिंदूधर्म ने भगवान बुद्ध और महावीर को भी विष्णु का अवतार माना.
हर मत हर संप्रदाय को स्वीकारा, जो जिस रूप में आया, उसी रूप में.
यही मेरा हिंदुत्व है और इसलिए मैं हिंदू हूं. और मुझे अपने हिंदू होने का गौरव है.

7 टिप्‍पणियां :

  1. कोई भी धर्म-मत-संप्रदाय किसी से हीन नहीं है, और मेरे मन में अपने हिंदू होने पर गौरव की भावना है.

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  2. हिन्दू एक जीवन शैली है, उस में सब धर्मों सहित नास्तिकों के लिए स्थान है यदि वे सभी के विश्वासों का आदर करते हों।

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  3. Hindu hona garva ki baat hai hi. aapne hindutva ke marm ki baat kahi, parantu beech beech men sabdon ka aise istemal kiya hai ki lagta hai vyangya bhi kiya hai.Hindu dharm ek udarta ka prateek hai jismen sahansheelta bhi khoob hai.

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  4. हिन्दू धर्म में वह सब कुछ है जो उसे सनातन और सर्वदेशीय धर्म बनाता है.

    उसकी प्रार्थना है:
    असतो मा सद गमय (असत्य से मुझे सत्य की और ले चलो )
    तमसो मा ज्योतिर्गमय (अन्धकार से मुझे प्रकाश की और ले चलो )

    सर्वे भवन्तु सुखिन: (सभी सुखी हों )

    वह चरमपंथी नही हो सकता; मध्यमार्ग ही उसका आदर्श है :
    'अति सर्वत्र वर्जयेत ' (अति से सदा दूर रहना चाहिए )

    हिंदू धर्म का कोई एक 'पैगम्बर' नही है ; उसकी कोई एकमात्र 'किताब' नही है ; उसका ह्रदय
    विशाल है; मस्तिष्क खुला है ; दृष्टि देश और काल के परे तक पहुँचने वाली है . इसलिए कृष्ण भी उसके भगवान है, मार्क्स भी हैं और गांधी भी. वह गीता को भी धार्मिक पुस्तक कहता है तो गणित की एक पुस्तक भी उसकी 'धार्मिक' पुस्तक है. इसलिए आश्चर्य नहीं कि उसने अपने धर्म को कोई नाम नहीं दिया. (हिन्दू शब्द तो 'मुसलमानों' का आविष्कार है)

    वह 'वसुधैव कुटुम्बकम' को मानता है. वह सबमे एक ही परमात्मा का अंश देखता है और कहता है :
    तत्वमसि (तुम 'वह' हो - तुम परमात्मा हो ). वह केवल मानव ही नही वरण पशु-पक्षियों और वनस्पतियों के भी हित की चिंता करता है. वह 'अहिंसा' को सबसे बड़ा धर्म मानता है. केवल कर्म से ही नही , मन और वाणी से भी अहिंसा .

    वह किसी को अन्तिम सत्य नहीं मानता ; वह सदा सत्य का अनुसंधान कराने में विश्वास रखता है . 'नेति नेति ' (यह नही , यह नही ) कहकर वह तर्क वितर्क करता है. वह मूर्ख नही है की किसी भी अनर्गल प्रलाप को 'अन्तिम सत्य' मान बैठे. वह प्रश्न करने में विश्वास रखता है. वह 'प्रश्नोपनिषद ' रचता है ; नचिकेता के रूप में प्रश्न करता है; यक्ष के रूप में प्रश्न करता है ; अर्जुन के रूप में प्रश्न करता है. और तो और वह 'धर्म क्या है' इस पर भी बार-बार दृष्टिपात करता है. इसके आगे जाकर बार-बार प्रश्न करता है कि ' परम धर्म क्या है?' कोई धर्म के लक्षणों की बात करता है. कोई उसके दस लक्षण गिनाता है, कोई तीस .

    वह सत्य की शक्ति पर विश्वास करता है (सत्यमेव जयते ) ; उसका विश्वास है की जब-जब धर्म का नाश होगा और अधर्म का उत्थान होगा - कोई न कोई महापुरुष अवतार लेगा . वह असत्य पर सत्य की विजय को मानने वाला है. वह एक होकर सहकार करने की शिक्षा देता है - सहनावातु, सहनोभुनक्तु सह वीर्यं करवाहहै . वह ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: रटने वाला जीव है.

    लेकिन 'कट्टर' मजहब उसे 'कमजोर' मानकर उस पर आघात करते हैं. उसे मिटटी में मिलाने पर लगे हैं. ऐसे में उसे अपनी सुरक्षा की चिंता भी करनी चाहिए जिसे अभी तक वह अनदेखा करते आया है.

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  5. (मुझे गर्व है कि मैं हिन्दू हूं)क्या संकुचित सोच है. गर्व इस बात का होना चाहिये कि हम भारतीय है. गर्व इस बात का होना चाहिये कि हम मनुष्य है. मेरे अन्दर मानवता है.गर्व इस बात का होना चाहिये कि हम जहां रहते उसके अगल बगल कोई बेसहारा तो नहीं है. धर्म बाद में आता है कोई धर्म खाने को नहीं देता है.....

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  6. हाँ, मुझे भी गर्व है , और हमेशा ही रहेगा | एक महान जीवन शैली और धर्म को जान्ने और उसे जीने का |

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