मेरी पोस्ट, जरूरत है कुछ लोगों और संस्थाओं की, पर राज भाटिया सर जी ने टिप्पणी छोड़ी. उन्होंने कहा, कोई वजह तो होगी कि लोग मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं.
आदरनीय सर जी, इसकी वजह भी है और कारण भी. वजह है छोटी मोटी नहीं, ऐतिहासिक वजह है. साथ ही कुछ तात्कालिक कारण हैं.
तात्कालिक कारण यह है कि लोगों को बाढ़ की विभीषिका की सही जानकारी ही नहीं है. बिहार बदहाल है, वो पहले है. बिहार के लोग बेहाल है. वो पहले से हैं. इनमें कोई बड़ी बात. न्यूज चैनलों के पास खबरें नहीं, जो कुछ आती हैं, उसे ड्रामे के रूप में पेश करते हैं. राई का पर्वत बनाना और पर्वत को राई कर देना हमारे यहां के न्यूज चैनलों के बायें हाथ का खेल है. मनोरंजन के भूख लोगों को ऐसे कार्यक्रम चाहिए जिस पर ज्यादा दिमाग नहीं लगाना पड़े. ठंडा शब्द निकले तो उसी सीधा मतलब हो कोका-कोला. बाकी अर्थ निकालने की कोशिश की जाएगी तो दर्शक चैनल चेंज कर देगा.
ये चैनल इस बाढ़ की विभीषिका को नहीं दिखा पा रहे हैं. अभी-अभी हिंदुस्तान टाइम्स पढ़ रहा था. उसमें दिखाया गया कि बिहार का बाढ़ से तबाह हुआ क्षेत्र उतना ही बड़ा जितनी बड़ी दिल्ली है. दिल्ली हिंदुस्तान की जान है. उसे तबाह होते कौन देखेगा. लेकिन बिहार कभी किसी की जान नहीं बन सका. बिहार कमाऊ पूत नहीं है. यहां की करीब साठ प्रतिशत आबादी निरक्षर है. नब्बे प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करती है. बिहार का बहुत बड़ा क्षेत्र हर साल बाढ़ में डूब जाता है. इन प्रभावित क्षेत्रों के ज्यादातर लोग अपनी जमीन को छोड़कर दूसरी जगहों पर पलायन कर चुके हैं. कोई उद्योग धंधा तो है नहीं कि क्षेत्र का विकास हो. दिनों दिन बिहार गरीबी, बेकारी, बदहाली के दलदल में धसने को बेबस है. नेपाल के साथ संधि है, उसके साथ ऐतिहासिक रिश्ता है इसलिए वह हमें हर साल बाढ़ में डूबाता है हम चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते है. भारत सरकार के साथ जल-संधि है, मगर भारत सरकार बिहार को हरसाल आनेवाले बदहाली से उबारने के लिए कुछ नहीं करती. रिवर लिंकिंग परियोजना की बात चली थी, वाजपेयी सरकार जाते ही उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. बिहार के नेता, नेताओं की सही परिभाषा में आते हैं, जाति धर्म के आधार पर समाज को बांटो और राज करो. लालू, पासवान और मुलायम जैसे नेता प्रतिबंधित छात्र संगठन सिमी की तरफदारी कर देशभक्त बने हुए हैं. वे बिहार के बारे में कितना सोचेगें. लालू ने पंद्रह साल तक शासन किया, बिहार को च से चौपट करके रख दिया. बिहार चालीस साल पीछे चला गया. नीतीश जी आए, कुछ करने चले, लेकिन बाढ़ ने इनकी लूटिया ही डूबो दिया फिर लालू आएंगे और बिहार में अपनी इंजीनियरिंग चलाएंगे. बिहार की बदहाली पर संसद में कभी जोरदार आवाज नहीं उठती है.
आंध्रप्रदेश की आबादी बिहार के कम है, लेकिन आंध्रप्रदेश में कम कम से छह सौ इंजीनियरिंग कॉलेज है. बिहार में तीन-चार से ज्यादा नहीं होंगे. आंध्रप्रदेश में साधारण बाढ़ आई प्रधानमंत्री ने बिना कुछ कहे ढ़ाई हजार करोड़ की सहायता की घोषणा कर दी. बिहार तबाह हो गया, प्रधानमंत्री महज एक हजार करोड़ रुपये की घोषणा कर पाए, वो भी लालू के कहने पर. उनका हाथ फिर भी ऊपर है, क्योंकि वे कहेंगे बिहार के मुख्यमंत्री ने महज एक हजार करोड़ रूपये की मांग की थी. मांग करने के बाद प्रधानमंत्री ने बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण किया और राष्ट्रीय आपदा भी घोषित कर दिए. प्रधानमंत्री खुद बताएं कि आंध्रप्रदेश में राष्ट्रीय आपदा नहीं थी फिर भी ढाई हजार करोड़ और बिहार में राष्ट्रीय आपदा है तब भी महज एक हजार करोड़ ही.
क्या मतलब होता है राष्ट्रीय आपदा का. सौ करोड़ की आबादी वाला देश राष्ट्रीय आपदा से ग्रस्त प्रदेश(कम से कम तीस लाख लोग प्रभावित) के लिए तीन हेलीकॉप्टर की ही व्यवस्था कर सका. इस हेलीकॉप्टर में एक बार में मुश्किल से दस लोग सवार हो सकते हैं. लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए कम से आठ हजार नावों की जरूरत थी. कितने नाव पहुंचे वहां. क्या यही मतलब है राष्ट्रीय आपदा का.
रेलमंत्री लालू प्रसाद राष्ट्रीय आपदा की इस घड़ी में दिन में बीस बार प्रेस कांफ्रेंस करते हैं और इसमें राजनीतिक बयानबाजी करते हैं. कभी मुख्यसचिव तो कभी आईएएस अधिकारियों को गाली बकते हैं.
एकबार फिर, बिहार का जितना बड़ा क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित है वो दिल्ली के क्षेत्रफल के बराबर है. न्यूज चैनल शो दिखाने के आदी हैं बाढ़ की विभीषिका कैसे दिखा पाएंगे. इसलिए सही जानकारी लोगों तक नहीं जा पा रही है.
बिहार ऐतिहासिक रूप से बदहाल है, यहां के लोग फिजी, सुरीनाम, त्रिनिनाद, मॉरीशस गए और वहां की तकदीर बदल दी. लेकिन कई कारणों से बिहार की तकदीर बदल नहीं पा रही है.
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
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sahi kaha aapne bihar ke sath is samay sare desh ko ek sath khada rehna chahiye.uske sath kendra ne sautela wyavhar kiya hai ye bhi sahi hai,dar-asal humare desh ka sustem ban gaya hai ki har kam ko rajnaitik labh-hani ke chashme se dekhne ka.sahi likha aapne aapse puri tarah sahmat hun
जवाब देंहटाएंदेश का बेड़ागर्क करने में ऐसे ही महान राजनेताओं का हाथ है।रही सही कसर न्यूज चैनल पूरी कर देते हैं।आप का लेख विचारणीय है।
जवाब देंहटाएंविचारणीय आलेख!!
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