कहते हैं कि बांटते से दुख आधा होता है, मगर बाढ़ की विनाशलीला को झेल रहे बिहार के लोगों का दुख-दर्द बांटने के लिए कोई सामने नहीं आ रहा है. आखिर सवाल उठता है कि कहां हैं वो लोग जिनका सीना पाकिस्तान और चीन के भूकंप से दहल उठता था. कहां है वो हाथ जो इंडोनेशिया के सुनामी पीड़ितों की मदद के लिए अनायास ही उठ गए थे.
महज चंद कदमों की दूरी है, मगर ये फासला कयामत से भी बड़ा है. इस पर के लोग उस पार के लोगों से मिलना चाहते हैं. पेट इनका भी भूखा है, पेट उनका भी भूखा है. मगर इस दुख की घड़ी में दोनों साथ होते तो मिलकर रोते या एक-दूसरे का मुंह देखते जीते.
सात दिन, सात रातें गुजर गई. पेट में न अन्न का एक दाना गया है और न हलक के नीचे पानी का एक बूंद. चार रोज पहले बाबू लोग आए थे. कह गए थे कि चूड़ा शक्कर लाते हैं, मगर वो ऐसे गए कि लौटकर नहीं आए. किसी से कोई शिकायत नहीं, मगर भाग्य पर रोना आता है कि मुश्किल की इस घड़ी में हमें कोई देखने वाला नहीं है.
हम सब इन चेहरों को जानते हैं. ये अफ्रीका के सुदूर जंगलों में रहनेवाली कोई आदिम जनजाति नहीं, बल्कि ये बिहार के लोग है, जिन्हें कभी असम से खदेड़ा जाता है तो कभी महाराष्ट्र से.. मगर आज शिकायत न तो असम वालों से है, और न ही महाराष्ट्र वालों से. क्योंकि आज ये लोग अपनी धरती पर हैं. अपने बिहार में. वही बिहार, जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का हिस्सा है. हम बात किसी और भारत की नहीं कर रहे हैं, बल्कि यहां बात उस भारत की कर रहे हैं, जहां कारगिल युद्ध का नाम सुनकर पूरा देश एक हो जाता है, युवाओं की भुजाएं फड़कने लगती है. भूकंप पाकिस्तान में आता है, दुखी भारत हो जाता है. धरती चीन में हिलती है, सीना भारत का दरकने लगता है. सुनामी इंडोनेशिया में आता है, मदद के हाथ भारत से उठते हैं. बात उसी भारत की हो रही है. जहां भुज के भूकंप और गुजरात दंगों के पीड़ितों के लिए रातों-रात सैंकड़ों स्वयंसेवी संगठन खड़े हो जाते हैं. तमिलनाडु के सुनामी पीड़ितों की मदद के लिए सिनेमा कलाकार स्टेज शो करने लगते हैं. आज उसी भारत के एक हिस्से में लाखों लोग अन्न के एक-एक दाने और पानी के एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं. उनकी मदद करने वाला कोई नहीं है. कहां है वो लोग, जिन्हें हिंदुस्तान पर गर्व है. जो हिदुस्तान को दुनिया की चौथी बड़ी आर्थिक ताकत बताते हैं. जो हिंदुस्तान को अंतरिक्ष की छठी वड़ी शक्ति बताते हैं.
ऐसे लोगों की तलाश है, आज इस बिहार को. जो पंद्रह दिनों से बाढ़ की विनाशलीला से जुझते हुए अपने लोगों की दुर्दशा पर आठ-आठ आंसू बहा रहा है.
कहां हैं वो फिल्मी हस्तियां जो छोटी-छोटी बातों पर भाव-विह्वल हो जाते हैं. बिहार को आज तलाश है कुछ ऐसे लोगों की, कुछ ऐसी संस्थाओं की, जो इस विपत्ति की घड़ी में यहां के लोगों का दुख-दर्द बांट सके. मदद के हाथ बढ़ा सके.
कहते हैं कि दुनिया छोटी हो गई है, मगर ये दुनिया आज भी उतनी ही बड़ी है जितनी पहले हुआ करती थी. पहले साधन नहीं थे और जानकारी के अभाव में इंसानों के बीच दूरियां ती. आज अखबार, टीवी रेडियो भी है, मोबाईल कंप्यूटर, इंटरनेट भी है. फिर भी इंसान-इंसान के बीच दूरी है और ये दूरी विडंबना है इस देश के लिए, प्रकृति की विनाशलीला का सामना कर रहे लोगों के लिए.
ऎसा क्यो हे, क्यो नही लोग इस तरफ़ मदद के लिये आगे आ रहे , कोई कारण तो जरुर होगा , फ़िर पहल वो बिहारी ही क्यो नही करते जो सुरक्षित हे, क्या मानव इतना भाव हीन हो गया हे, सरकार या नेताओ की बात तो करने की जरुरत ही नही, लेकिन शेष लोग कहां गये ????
जवाब देंहटाएंसर जी, वक्त कारण ढूढ़ने का नहीं मदद करने का है. यह राष्ट्रीय आपदा है और इसमें दस बीस लोग नहीं, हजारों लोगों की जरूरत है.
जवाब देंहटाएंsahi likha aapne dash me saikadon nahi lakhon samajsevi santhaye kam kar rahi hai,bihar ki badh me ve sab bah gayi lagta hai,aaj zarurat sirf aur sirf mada ya rahat ki hai.aapki vyatha me shaamil hun
जवाब देंहटाएंसत्याजीत जी मे कारण नही ढूढ रहा, बस यही पुछा हे क्यो नही आ रहे, इस मुसिबत के समय सब को आगे आना चाहिये,कल हमारा भी यही हाल हो सकता हे.
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर जी,
जवाब देंहटाएंशायद लोगों को इसकी भयावहता समझ में नहीं आई है, वैसे बिहार में हर साल बाढ़ आती है, मीडिया कवर करती है, लेकिन इस साल स्थिति अन्य सालों जैसी नहीं है, नदी का रास्ता रिहाइसी इलाकों की ओर मुड़ गया. स्थानीय मीडिया को भूत, प्रेत, भगवान, हास्य भजन दिखाने से फुर्सत नहीं है. एक रिजनल चैनल दिन-रात इस सर्वनाश को दिखाए जा रहा है. ऐसा लग रहा है कि उस चैनल का घर तबाह हो गया है, लोग अपनी बात उस चैनल तक पहुंच रहे हैं, चैनल कोशिश कर रहा है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ये बात पहुंचे. अब असर दिखने के लगा है कि राज्यों के मुख्यमंत्री, कॉर्पोरेट सेक्टर और भी लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं. हर संभव मदद की बात करने लगे हैं. सर, ये सर्वनाश का सतरहवां दिन है. कई जगहों पर पानी कम होने लगा है. कई जगहों पर स्थिति अब भी जस की तस है. बाढ़ की भयावहता के मुताबिक तैयारी कम है, लोग नहीं पहुंच पा रहे हैं प्रभावितों तक. अब जिन इलाकों में पानी घट रहा है. वहां महामारी का अंदेशा पसरने लगा है. आज फिक्की ने भी मदद के हाथ बढ़ाई, बिहार बाढ़ को लेकर कॉर्पोरेटरों की बैठक की और हरसंभव मदद का आश्वसन दिया. देखिए कौन-कौन सामने आता है.