हिंदी शोध संसार

रविवार, 24 अगस्त 2008

गोपाल भैया



निश्छल विश्वास और श्रद्धा की कहानी


रधिया बर्तन-बासन मांज कर किसी तरह गुजर बसर करती थी. तीन साल पहले पति गुजर गया था. बेचारी दुखी और परेशान थी. पांच साल के उसका बेटा कन्हैया दूसरे बच्चों को स्कूल जाते देख, स्कूल जाने का जिद करने लगा. स्कूल दूर था. रास्ते में घना जंगल. वह अपने आंख के तारे को किसी अनहोनी का शिकार होते नहीं देखना चाहती थी. इसलिए उसने उसे स्कूल भेजने से मना कर दिया. कन्हैया खूब रोने-धोने लगा. उसे स्कूल जाना है तो जाना है. रधिया क्या करती. एक दो रोज खुद स्कूल पहुंचा और लिवा आई. सोचा, एक दो रोज में मन उजट जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. स्कूल में सैंकड़ों बच्चों के बीच उसका मन लग गया और वह अब रोज स्कूल जाने की जिद करने लगा. संभव नहीं था कि रधिया रोज-रोज कन्हैया को घर छोड़ आती. उसने एक कहानी गढ़ी.


उसने कन्हैया को अकेले स्कूल जाने के लिए कहा. कन्हैया ने कहा, मां रास्ते में जंगल है. डर लगेगा. तुम भी चलो ने. वह बोली, मैं नहीं जा सकती बेटा. तू अकेले चला जा. वैसे भी डरने की क्या बात है, जंगल में तुम्हारे गोपाल भैया रहते हैं, जब भी डर लगेगा, गोपाल भैया को बुला लेना. वो तुम्हें जंगल पार करा देंगे.


कन्हैया स्कूल जाने लगा. एक रोज थोड़ी देर हो गई. जंगल में पहुंच उसे डर लगने लगा. उसने पुकारा, गोपाल भैया, गोपाल भैया, मुझे बहुत डर लग रहा है, आइये न गोपाल भैया. कईबार बुलाने के बावजूद कोई नहीं आया. कन्हैया डर के मारे जोर-जोर से रोने लगा. डर के मारे उसके पैर नहीं उठ रहे थे, वह जार बेजार रोए रहा था. तभी एक मीठी आवाज आई, कन्हैया, क्या हुआ, तुम क्यों रो रहे हो.

कन्हैया ने आखें खोली. सामने देखा. मोर-मुकुट धारण किए हुए, हाथ में बांसुरी थामे हुए, गायों के झुंड से एक युवक आया. उसने प्यार से कन्हैया को गोद में उठा लिया.

कन्हैया बोला, भैया मुझे बहुत डर लग रहा था, आप कहां थे अभी तक?

गोपाल भैया बोले, कन्हैया, ये जंगल अपना ही है. मैं तुम्हारा भैया हूं, तो फिर डरने की क्या बात है. जब कभी डर लगे मुझे बुला लेना.

गोपाल भैया की वाणी में कुछ ऐसी मिठास थी, जो बालरूप भगवान कन्हैया में थी. कन्हैया अब बगैर किसी डर के आने जाने लगा. जब कभी मां पूछती बेटा जंगल में डर तो नहीं लगता है?

कन्हैया कहता, मां डर कैसा, अपना गोपाल भैया जो वहां हैं.

मां कन्हैया के भोलेपन पर मुस्कुराती हुई बोली, मां, बहुत अच्छे हैं गोपाल भैया. जैसा तुमने बताया. माथे पर मोर मुकुट, हाथ में मुरली, गायों को चराते हुए हमारे गोपाल भैया बहुत अच्छे हैं मां.

मां बोली, अच्छा?

कन्हैया बोला, हां मां वे बहुत अच्छे हैं.

रधिया अक्सर कन्हैया से इस तरह का सवाल करती और कन्हैया बड़े ही भोलेपन से जवाब देता.

कुछ ही दिनों बाद स्कूल में सरस्वती पूजा आयी. मास्टर साहब में छात्रों से चंदा जमा करने को कहा. सब लड़कों ने अपने शक्ति के अनुसार चावल, आटा, सब्जी, फल, दूध, पैसे आदि देने की पेशकश की. लेकिन कन्हैया से कुछ भी लाने को नहीं कहा गया तो वह उठ खड़ा हुआ, बोला, मस्सय मैं क्या लाऊं. मास्टर साहब बोले, तुम क्या लाओगे. लेकिन जब कन्हैया ने बहुत जिद की, तो मास्टर साहब ने कहा, तुम्हारा जो मन होगा लेते आना.

कन्हैया घर जाकर अपनी मम्मी से ये बात कही कि स्कूल में सरस्वती पूजा है, इसलिए मास्टर साहब ने घर से चंदा लाने को कहा है.

घर में क्या था जो राधा चंदा में देती. इसलिए उसने कहा, क्यों नहीं अपने गोपाल भैया से मांग लेते.

कन्हैया चल पड़ा अपने गोपाल भैया के पास. वहां जाकर आवाज दी, गोपाल भैया, गोपाल भैया, स्कूल में पूजा है, मास्टर साहब ने दूध लाने के लिए कहा है.

गोपाल भैया आए और एक लोटकी दूध कन्हैया को दे दिया. कन्हैया लोटकी हिलाता डुलाता स्कूल पहुंचा. स्कूल के छात्र और शिक्षक पूजा की व्यवस्था जुटे थे.

कन्हैया मास्टर साहब के पास जाकर पूछा, मस्सय, ये दूध रख लीजिए.

मास्टर साहव ने एक लड़के से कहा, इस लोटकी का दूध डिब्बे में डाल दो.

लड़के ने लोटकी से दूध डालना शुरू किया, डिब्बा भर गया लेकिन लोटकी में जितना दूध पहले था, अब भी उतना ही है. लड़का डर गया. उसने सारी बात मास्टर साहब को बतायी.

मास्टर साहब भी इस सच्चाई को देखकर हैरान हो गए.

कन्हैया से पूछा, तुमने ये दूध कहा से लाया?

कन्हैया बोला, गोपाल भैया ने दिया है.

उन्होंने फिर पूछा, गोपाल भैया कहां रहते है और क्या करते हैं?

कन्हैया बोला वे रास्ते के जंगल में रहते हैं और गाय चराते हैं.

मास्टर साहब की उत्सुकता बढ़ गई, उन्होंने पूछा, तुम्हारे गोपाल भैया दिखते कैसे हैं?

कन्हैया बोला, वे मोर-मुकुट पहनते है, मुरली बजाते हैं, मगर हैं बहुत सुंदर.

मास्टर साहब ने मन ही मन कहा कि बेटा सुंदर तो तुम भी कम नहीं हो, फिर बोले, तुम अपने गोपाल भैया से हमें मिलाओगे?

कन्हैया बोला, क्यों नहीं, चलिए अभी मिलवाते हैं.

दोनों जंगल गए.

कन्हैया ने पुकारा, गोपाल भैया, गोपाल भैया, हमारे मस्सय आपसे मिलना चाहते हैं.

गोपाल भैया ने कहा, कन्हैया मैं तुम्हारे मास्टर साहब के पास नहीं आ सकता.

कन्हैया ने पूछा, क्यों. हमारे मास्टर साहब तो अच्छे हैं. किसी को मारते भी नहीं हैं. आप आइए, आपको भी नहीं मारेंगे.

फिर आवाज आई, कन्हैया मैं नहीं आ सकता.

कन्हैया बोला, आप नहीं आइएगा तो मैंने रोने लगूंगा और उसने रोना शुरू कर दिया.

कन्हैया के रोने की आवाज सुनकर गोपाल भैया आए, और उसे चुप कराया.

कन्हैया बोला, लीजिए मास्टर साहब, आ गए हमारे गोपाल भैया. लेकिन गोपाल भैया मास्टर साहब को नहीं दिख रहे थे. मास्टर साहब समझ गए.

उन्होंने भी उसी बाल-सुलभ निश्छलता से भगवान की प्रार्थना की. भगवान ने मास्टर साहब को भी दर्शन दिया. बाद में उन्होंने रधिया को भी दर्शन दिया.

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