हिंदी शोध संसार

शनिवार, 23 अगस्त 2008

भगवान श्रीकृष्ण से साक्षात्कार


भगवान श्रीकृष्ण से साक्षात्कार

मैं इक फंसाना हूं बेबसी का
ये हाल का है मेरी जिंदगी का...
शायर की दर्दभरी आवाज में मुसाफिर को घनीभूत पीड़ा के बादल दिखाए दिए, जो अब तब बरसने ही वाला हो, काफी कोशिश के बावजूद भी वह, सोलिटेरी रीपर के अबूझ गाने की तरह शायर की बात नहीं समझ सका. मगर गाने में जो दर्द था, उससे साफ जाहिर होता था कि शायरी बहुत ही दुखी है. इस दुख की वजह वह चाहकर भी नहीं जान पाया.
वह आगे बढ़ने लगा. तभी शायर को लगा कि इस व्यक्ति से अपना जरूर कोई न कोई नाता है-
मेरा पहले भी है तुमसे नाता कोई
यूं ही नहीं दिल लुभाता कोई...
अगले ही क्षण वो तमाम विस्मृतियां स्मृति बन उसकी आंखों के सामने से गुजरने लगी.
अनायास ही वह भाव-विह्वल हो जो से पुकार उठा, प्रभु... मेरे स्वामी, इतने दिनों तक कहां थे आप?
मुसाफिर इधर-उधर देखा, कौन होगा, इस निर्जर में, जिसे यह आवाज दे रहा है.
शायर ने फिर उसी भाव-विह्वलता से कहा, हे प्रभु, नहीं पहचाना मुझे?
मुसाफिर उसकी ओर मुखातिब हुआ. शायर ने कहा, प्रभु मैं अर्जुन. वहीं अर्जुन जिसे आप पार्थ, कुंतीपुत्र, भारत, परंतप कहते थे, आपने जिसे गीता का उपदेश सुनाकर महाभारत का युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया. मैं वही अर्जुन हूं, आपका शिष्य, आपका सखा.
मुसाफिर को कृष्ण होने का अहसास हुआ.
अर्जुन ने कहा,
देख तेरी संसार की हालत, क्या हो गई भगवान
कितना बदल गया इनसान
चांद न बदला सूरज न बदला, न बदला रे आसमान
कितना बदल गया इनसान.
भगवान मुस्कुराते हुए बोले,
वक्त ने किया, क्या हंसी सितम
न हम रहे ना हम, न तुम रहे न तुम
भगवन, ऐसा न कहिए, आपने कहा था,
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम् धर्मस्य तदात्मानां सृजामहं।।
परियात्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्म संस्थापनार्थाय संभावामि युगे युगे.
भगवान बोले, हे पार्थ, तब की बात और थी, तब तुम जैसे कुछ लोग थे जो मुझे पहचानते थे या जानने की कोशिश करते थे, आज किसी के पास सोचने, समझने और इंसान को परखने का वक्त नहीं है. ऐसी स्थिति में मैं पैदा भी लूं तो लोग मुझे जिंदा दफना देंगे.
अर्जुन अनहोनी के भय से कातर हो उठा, बोला, प्रभू,
जब एक ही उल्लू काफी हो बर्बाद गुलिस्तां करने को
यहां शाख-शाख पर उल्लू हो, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा.
प्रभु, आपने विविध रूपों में भारत की भूमि पर पैदा होकर यहां की आकुल-व्याकुल, तंगहाल-परेशान जनता का दुख-दर्द दूर किया है, आपको फिर से इस धरा पर पैदा होना होगा, उन गरीब, मजलूम बेसहारा लोगों का दुख-दर्द बांटना होगा.
भगवान बोले, अर्जुन, ऐसा नहीं है कि आज मैं भारत में नहीं हूं. मैं आज भी, लोगों के पास हूं, जिन्हें मेरी जरूरत है, बस अपनी पहचान छुपाए हुए, डर इसी बात का है कि यदि लोग मुझे पहचान जाएं तो मुझे बहुत परेशानी होगी.
अर्जुन बोला, क्या प्रभू मैं आपके साथ चल सकता हूं, उन्हीं लोगों के बीच जिससे आप प्यार करते हैं.
कृष्ण बोले, अर्जुन, आज कार्यक्षेत्र काफी बड़ा हो गया है. चुनौतियां काफी है, इसलिए हम जैसे लोगों को अलग-अलग मोर्चों पर काम करने की जरूरत है.
कुछ क्षण रुक कर भगवान फिर बोले, अर्जुन, छोड़ो इन गंभीर बातों को, कुछ अपने बारे में सुनाओ,
अर्जुन ने एक लंबी सांस छोड़ते हुए कहा,
सुनके क्या करोगे मुझसे मेरी कहानी
बेलुफ्त जिंदगी के किस्से हैं फीके-फीके.
आप तो जानते हैं कि
इंसान बड़ा नहीं होत है, समय होत बलवान.
भीलों ने ही लुट लिया, वही अर्जुन वही बान.
भगवान, वक्त की मार ने इस अर्जुन को भी कहीं का नहीं छोड़ा.
भगवान अर्जुन के झखमार रवैये से परेशान हो गये, वोले, तुम्हारे प्यार का क्या हुआ.
अर्जुन दुखी होकर बोला, क्या होता है प्यार का,
भगवान बोले,
जाकर जेहि पे सत्य स्नेहु
सो तेहि मिलही न कछु संदेहु.
अर्जुन ने इसका जवाब दिया,
जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला
हमने तो जब कलियां मांगी कांटों का हार मिला, जाने वो कैसे..
भगवान के सामने ही अर्जुन के दबे दर्द में विद्रोह उभर आया.
जवानी भटकती है, बदकार बनकर
जवां जिस्म सजते हैं बाजार बनकर
यहां प्यार होता है व्यापार बनकर
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है..
जो अर्जुन देश-दुनिया की हालत पर लंबा चौड़ा भाषण दे रहा था, अपने निजी दुख से व्यथित हो उठा, जिसे देखकर भगवान को बड़ा दुख हुआ.
(साक्षात्कर के शेष अंश पर नजर बनाए रखें.)

2 टिप्‍पणियां :

  1. बहुत अच्छा। साक्षात्कर के शेष अंश का इंतजार रहेगा।

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  2. आपतो बड़े चंठ हैं जी। कृष्ण-कन्हैया से फिल्मी गाना गवाते हैं और श्लोक भी पढ़वाते हैं। हा,हा,हा,हा,...
    मजेदार पोस्ट।

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