हिंदी शोध संसार

बुधवार, 20 अगस्त 2008

भारत का बिगड़ैल बेटा-कश्मीर






किसी ने कहा था- भगवान ने पहले कश्मीर को बनाया होगा और इसे देखकर ही स्वर्ग का निर्माण किया होगा. लोग कहते हैं- कश्मीर भारत का स्वर्ग है- कई लोग कहते है- कश्मीर भारत का गौरव है(कुछ साल पहले तक मैं भी कहता था.) भारत सरकार बार-बार कहती है- कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है(बिहार और राजस्थान के बारे में सरकार ऐसा कब कहती है) मतलब साफ है कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है, इसलिए भारत सरकार ऐसा कहती है(जैसे कि पागल कहता है कि मैं पागल नहीं हूं, पागल तो दुनिया है.)
अमरनाथ श्राईन बोर्ड भूमि विवाद के बहाने एक बार फिर जाहिर हो गया कि कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है. वहां की जनता कहती है कि वह आजादी चाहती है. वही जनता, जिसे आजादी से अबतक भारत ने करीब दो लाख करोड़ रूपये के पैकेज दिए. बदले में भारत को क्या मिला? कश्मीर की आजादी के नारे, भारत मुर्दाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद. शान हमारी जो झंडा है, उसे कश्मीर में जलाया गया. उसकी होली खेली गई. उसे पैरों के तले रौंदा गया. पाकिस्तान और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों का झंडा लहराया गया. पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए.
उपदेशो हि मुर्खानां प्रकोपाय न शांतये पय: पानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम. मतलब मुर्खों को उपदेश देकर समझाया नहीं जा सकता. सांप को दूध पिलाने का हश्र यहीं होता है. पाकिस्तान और कश्मीर के अलगाववादी जानते हैं कि भारत नपुंसकों का देश है. यहां सत्ता पाने और उसे बरकरार रखने के लिए राजनेता कुछ भी कर सकते हैं. यहां सिमी जैसे प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के समर्थन में केंद्रीयमंत्री आवाज बुलंद कर सकते हैं. वो ये भी जानते हैं कि आतंकवाद का सफाया करने के लिए दबाव डालने वालों को केंद्रीय मंत्री सबसे बड़ा आतंकवादी करार देते हैं, तो इस देश में देशविरोध गतिविधियां चलाने वालों, तिरंगा को रौंदनेवालों, तिरंगा को जलानेवालों, पाकिस्तान का नारा बुलंद करनेवाली, आतंकवादी संगठनों का पाकिस्तान का झंडा फहराने वालों को तरजीह क्यों नहीं मिल सकती. देशभक्तों को उनकी देशभक्ति के लिए जहां सजा मिलती है. जहां देशद्रोहियों को पुरस्कार दिए जाते हैं, वहां एक क्या आनेवाले समय में दर्जनों कश्मीर बन जाएं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. अमरनाथ श्राईन बोर्ड भूमि विवाद पर जम्मू के लोगों का लगातार विरोध जमीन के एक छोटे टुकड़े को लेकर नहीं, बल्कि यह विरोध जम्मू के लोगों, कश्मीरी पंड़ितों के साथ केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा लगातार की जा रही ज्यादतियों का विरोध है. यह ज्यादतियां इसलिए हो रही है कि यहां के लोग राष्ट्रभक्त हैं और राष्ट्रीय झंडे को थामकर वंदे मातरम का नारा लगाते हैं.
अमरनाथ
श्राईनबोर्ड को जमीन लेना और फिर वापस लेना, जानबूझ कर खेला गया सियासी खेल है, जिसमें शामिल हैं, पाकिस्तान, वहां की खुफिया एजेंसी आईएसआई, कश्मीर की दो अहम राजनीतिक पार्टियां, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेस और घाटी के अलगाववादी और आतंकवादी संगठन.
ये नहीं चाहते हैं कि घाटी में कोई बाहरी गतिविधि बढ़े. घाटी के अलगाववादी नेताओं ने भूमि हस्तांतरण को घाटी में हिंदुओं को बसाने की साजिश करार दिया. कश्मीर के नेता महबूबा मुफ्ती, उमर अब्दुल्ला और फार्रूख अब्दुल्ला अलगाववादियों के सुर में सुर मिलाते हुए नजर आए. कांग्रेस हमेशा से तुष्टिकरण की राजनीति करती रही है, वहां भी उसने यही किया. वह बोर्ड को जमीन तो देना चाहती है, लेकिन अलगाववादियों को नाखुश करके नहीं. सो उसने अपनी सरकार का बलि दे दी. जम्मू-कश्मीर जलता रहा और वह सोती रही. बाद में एक सर्वदलीय समिति भी बनायी लेकिन अमरनाथ यात्रा समाप्त होने के बाद समिति की उपयोगिता ही उसने खत्म कर दी. जिस कश्मीर की आर्थिक नाकेबंदी को कश्मीरी नेताओं और अलगाववादियों ने मुद्दा बनाया, उसका सच ये है कि घाटी में इस आठ से सोलह तारीख के बीच नौ हजार के ज्यादा ट्रकों की आवाजाही हुई. अब इतना हो जाने के बाद भी भारत सरकार को सोचना चाहिए, कि कश्मीर से भारत को क्या मिल रहा है और हम उस सपोले को क्यों पाल रहे हैं, जो हरबार हमें ही डसता है. जो हमारी एकता-अखंडता पर सवाल उठाता है. सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द वहां से धारा-370 हटाए और कश्मीर से विशेषाधिकार का दर्जा खत्म करे. वहां सभी जाति- सभी धर्म के लोगों को बसाए. लेकिन सरकार में ना तो ऐसी ताकत है ओर ना ही इच्छाशक्ति.


प्रसंगवश-
क्षमा
, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा.

पर नरव्याघ्र सुयोधन तुमसे

कहो कहां कब हारा.

क्षमाशील हो रिपु समक्ष
तुम
विनीत हुए जितना ही.
दुष्ट कौरव ने तुमको कायर समझा उतना ही.
क्षमा शोभती उस भुजंग को

जिसके पास गरल हो.

उसको क्या जो दंतहीन

विषहीन, विनीत, सरल हो.

तीन दिवस तक पंथ मांगते

रघुपति रहे सिंधु किनारे.
बैठे-बैठे छंद को पढ़ते
अनुनय के प्यारे-प्यारे.

उत्तर से जब एक नाद भी

उठा नहीं सागर से.

उठी अधीर धधक पौरूष की

आग राम के शर से.

सिंधु देह धर त्राहि-त्राहि

करता आ गिरा शरण में.

चरण पूज दासता ग्रहण की

बंधा मूढ़ बंधन में.

सच पूछो तो शर में ही

बसती दीप्ति विनय की.

संधि वचन संपूज्य उसी का

जिसमें शक्ति विजय की.

सहनशीलता क्षमा दया को

तभी पूजता जग है

बल के दर्प चमकता
जिसके
पीछे जब जगमग है.
----------------रामधारी सिंह दिनकर

2 टिप्‍पणियां :

  1. आपने समस्या के साथ समाधान भी देने का यत्न किया है दिनकर की काल जयी रचना के रूप में यही सच है कि:


    क्षमा शोभती उस भुजंग को
    जिसके पास गरल हो.
    उसको क्या जो दंतहीन
    विषहीन, विनीत, सरल हो.

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  2. दिनकर जी की एक अन्य रचना भी उपयुक्त है यहां-
    स्वत्व छीनता हो कोई और तू
    त्याग तप से काम ले यह पाप है.
    पुण्य है विभन्न कर देना वहां
    बढ़ रहा तेरी तरफ जो हाथ है.
    --------------------------------------------------
    गर न्याय कहो तो आधा दो
    उसमें भी अगर बाधा हो
    दे दो मुझको पांच ग्राम
    रख लो अपनी धरती तमाम
    यह भी दुर्योधन दे न सका
    आशीष समाज का ले न सका
    उलटे हरि को बांधने चला
    असाध्य को जो साधने चला
    जंजीर बढ़ाकर साध उन्हें
    हां हां दुर्योधन बांध उन्हें
    ----------------------------------
    याचना नहीं अब रण होगा.
    जीवन जय या मरण होगा.

    जवाब देंहटाएं