अब मुद्दा ये नहीं कि करार देशहित में है या नहीं.
इस सवाल का सवाल नहीं रह जाना, लोकतंत्र, खासकर देश के लिए बड़ा दुर्भाग्य है. करार कहिए या सरकार, इसका भविष्य वो लोग तय कर रहे हैं जिन्हें न तो करार से मतलब है, न सरकार से और न ही इस देश की विदेशनीति से. इस टिप्पणी पर कइयों को ऐतराज हो सकता है. लेकिन सच्चाई यही है. एक छोटी-पार्टियां जो संविधान विशेषज्ञों की नजर में लोकतंत्र की मजबूती की निशानी है, ये लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी साबित हो रही हैं. ये ब्लैकमेलर है जो सरकार को ब्लैकमेल कर रही हैं. बात चाहे शिबू सोरेन की हो या अजीत सिंह की. अपने पांच -तीन सांसदों को लेकर सौदेबाजी कर रहे हैं. क्या होगा इस लोकतंत्र का भविष्य, जहां ब्लैकमेलिंग ही सरकार का भविष्य तय करता है.
शनिवार, 19 जुलाई 2008
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