हिंदी शोध संसार

गुरुवार, 10 जुलाई 2008

इतिहास किसे माफ नहीं करेगा

भारत के परमाणु वैज्ञानिक अनिल काकोदकर का कहना है कि यदि अमेरिका के साथ परमाणु समझौता नहीं हुआ तो इतिहास कभी माफ नहीं करेगा.

उन्होंने ये भी कहा कि यह एक मौका है जब हम सिद्धांतों से समझौता किए बगैर भविष्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं.

काकोदकर ने ये नहीं बताया कि देश किसे माफ नहीं करेगा, कांग्रेसियों को या वामपंथियों को या भाजपाईयों को या वैज्ञानिकों को.

देश के ज्यादातर वैज्ञानिक कह चुके हैं कि परमाणु समझौता देश हित में नहीं हैं फिर काकोदर उन वैज्ञानिकों को क्यों नहीं समझाते कि देश उन्हें माफ नहीं करेगा.

सरकार कई बार साफ कर चुकी है कि समझौता होने के बाद भी हम अपनी कुछ ऊर्जा जरूरतों का सात-से आठ प्रतिशत ही पूरा कर पाएंगे.

इस सात से आठ प्रतिशत ऊर्जा के लिए हम कितना बड़ा मूल्य चुकाने जा रहे हैं.

हमारे देश के शोध संस्थानों में शोध कार्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए सरकार के पास पैसा नहीं हैं, कम वेतन को लेकर वैज्ञानिक शोध कार्य छोड़ने के लिए मजबूर हो रहे हैं. हर साल शोधार्थियों और शोधपत्रों की संख्या घटती जा रही है. छात्र कैरियर के रूप में विज्ञान को नहीं चुन रहे हैं. स्कूल-कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में विज्ञान की पढ़ाई ठप पड़ती जा रही है, जो थोड़े बहुत प्रयोगशालाएं हैं उनमें उपकरणों से ज्यादा धूल जमें हैं. ऐसे में सरकार परमाणु तकनीक खरीदने के लिए क्यों उतावली हुई जा रही है और काकोदकर जैसे वैज्ञानिकों को इतिहास की दुहाई क्यों देनी पड़ रही है समझ में नहीं आता.

एक तरफ सरकार कहती है कि संसद को विश्वास में लिए बगैर वह आईएईए में नहीं जाएगी, दूसरी तरफ वह आईएईए को परमाणु सुरक्षा मसौदा सौंप आती है.

यह देश के साथ धोखा नहीं तो और क्या है.


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