एक अखबार में पढ़ा कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में हिंदी से स्नातक में प्रतिष्ठा लेने वालों लंबी लाइन लगी है. कुछ कॉलेजों में तो पहली सूची के आधार पर ही कुल जगह भर गई. कई एक कॉलेज में दूसरी सूची में भी कुछ छात्रों के लिए जगह थी. साफ है कि छात्र हिंदी पढ़ना चाहते हैं. क्यों?
साहब साफ है कि हिंदी रोजी-रोटी की भाषा बन गई है. हिंदी बाजार की भाषा बन गई है. हिंदी वाले पांच-पांच लाख रुपये मासिक की नौकरी पाने लगे हैं. मीडिया हो या विज्ञापन बाजार, खेल हो या मनोरंजन, हर जगह हिंदी का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है.
समझदारी इसी में है कि हिंदी पढ़ो. हिंदी के लिए मेहनत करो. हिंदी को तकनीक की भाषा बनाओ. कंप्यूटर पर हिंदी का कमाल दिखाओ. आनेवाला कल हिंदी का है. कौन कहता है कि हिंदी विलुप्त हो जाएगी.
हिंदी को जानने वालों अपनी खोजी गई तकनीक का नाम हिंदी में रखो. ब्रांड का नाम हिंदी में रखो. हिंदी में ही विज्ञापन करो, हिंदी बोलने वालों को तरजीह दो.
तकनीक को जितना अपनाओगे हिंदी को उतना ही ज्यादा दे सकोगे. आज तुम हिंदी को दोगे, कल हिंदी तुम्हें देगी, सूद समेत, इतना ज्यादा कि संभाल नहीं पाओगे.
अमेरीका को आजादा हुए करीब ढाई सौ साल हुए, भारत को आजाद हुए महज साठ साल. भारत और भारती की विकास की अपार संभावनाएं है.
खुद को तकनीक में खपाओ.
शुभकामनाओं सहित
बुधवार, 18 जून 2008
कौन कहता है कि हिंदी विलुप्त हो जाएगी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें
(
Atom
)
कोई टिप्पणी नहीं :
एक टिप्पणी भेजें