हिंदी शोध संसार

गुरुवार, 19 जून 2008

हिम्मत है तो आत्मघाती बनकर दिखाएं बाल ठाकरे








बाला साहेब ठाकरे, अगर आपको हिंदुओं की इतनी ही चिंता है तो क्या वे उत्तर-भारतीय हिंदू नहीं थे, जिसपर आपके और आपके भतीजे के गुंडों ने कहर-बरपाए.





बाल
ठाकरे को नाज है कि थाणे के थिएटर में किसी हिंदू ने बम रखा. वो ऐसा करने वाले हिंदू संगठनों को आगे आकर इसकी जिम्मेदारी लेने की अपील करते हैं. वो इसका समर्थन करते हैं कि इस्लामी आतंकवाद की मुकाबला करने के लिए हिंदू संगठन एकजुट हो और आत्मघाती दस्ते बनाएं.

मैं मूढ़मति बाला साहेब ठाकरे को चुनौती देता हूं कि अगर उनमें हिम्मत है तो वे खुद आत्मघाती बम हमलावर बनकर दिखाए. वे इसे हिंदू अस्मिता को अक्षुण्ण रखने के लिए बेहतर मानते हैं तो वे ही इस बलिदान की राह में पहला कदम बढ़ाएं. वे बूढ़े हो चुके हैं ज्यादा से ज्यादा बीस-पच्चीस साल जिएंगे, वो भी घसीट-घसीट कर. क्यों इस शेष जिंदगी को हिंदू अस्मिता की रक्षा के काम में उत्सर्ग कर देंते हैं. आने वाली पीढ़ियों उन्हें इसके लिए हमेशा हमेशा के लिए याद रखेगी.

लेकिन मुझे नहीं लगता है कि बाला साहेब ठाकरे इसके लिए तैयार हो जाएंगे, क्योंकि उन्हें जीवन से मोह है, सिर्फ अपने जीवन से, अपने बेटे और परिवार के जीवन से. वे दूसरों को भेंड़ बकरियां समझते हैं और कत्लगाह की तरफ हांकने के लिए तैयार रहते हैं.

बाला साहेब ठाकरे, अगर आपको हिंदुओं की इतनी ही चिंता है तो क्या वे उत्तर-भारतीय हिंदू नहीं थे, जिसपर आपके और आपके भतीजे के गुंडों ने कहर-बरपाए. आपने अपने सामना का इस्तेमाल उस समय आग में घी डालने के लिए किया.

एक संप्रदाय के कुछ लोग आतंकवादी है या आतंकवादियों से मिले हुए हैं तो उस पूरे संप्रदाय को आप आतंकवादियों जैसा सुलूक करते हैं अगर हिंदुओं में भी दो-चार-दस आतंकवादी बन जाएं तो क्या हिंदू धर्म के मनाने वाले सब लोगों को आतंकवादियों की निगाहों से नहीं देखा जाएगा.

ठाकरे साहब, जब कुछ लोगों से देश इतना परेशान और तबाह है तो अगर बहुसंख्यक समुदाय आतंकवादी बन जाए तो देश कितना तबाह होगा, आपने कभी सोचा है.

आप अपनी दुकान चलाने के लिए, दूसरे की दुकान पर डाका क्यों डालते हैं. धर्म को धर्म ही रहने दीजिए, प्लीज धर्मभीरुओं को आतंकवादी बनने की प्रेरणा मत दीजिए.

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