हिंदी शोध संसार

सोमवार, 9 जून 2008

क्या करोगे अफजल का


उसी मोहम्मद अफजल की बात कर रहा हूं, जिसे अफजल गुरू कहा जाता है, जिसे सुप्रीमकोर्ट ने संसद भवन हमले के मामले में सुप्रीमकोर्ट ने दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई है. सजा 2004 में ही सुनाई गई है. सुप्रीमकोर्ट ने उसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर दी है.

उसकी फांसी की सजा पर अमल होना है या नहीं, यह यूपीए सरकार पर निर्भर है. गृहमंत्रालय का कहना है कि मामला राष्ट्रपति के पास अटका है. यूपीए सरकार का कहना है कि विपक्ष भाजपा को कानून की समझ नहीं है. इससे साबित होता है कि दुनिया की सबसे समझदार है यूपीए सरकार. भाजपा उस पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगा चुकी है.

अब स्वयं मोहम्मद अफजल, जिसे वोट बैंक के लिए कांग्रेस सरकार बचाने की कोशिश कर रही है, आरोप लगा रहा है कि यूपीए सरकार दोमुंही है और उसके साथ दोहरी चाल चल रही है.

अफजल कहता है..

मैं सचमुच चाहता हूं कि अगला प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी बने, क्योंकि वहीं एक ऐसा व्यक्ति है जो मेरे बारे में निर्णय ले सकता है और मुझे फांसी पर चढ़ा सकता है.

अफजल का कहना है कि कांग्रेस उसके साथ डबल गेम खेल रही है और उसे नहीं लगता है कि यूपीए सरकार किसी नतीजे पर पहुंच पाएगी.

उसने गृहमंत्री की उस दलील को भी खारिज कर दिया है जिसमें उन्होंने अफजल की तुलना सरबजीत से की थी. अफजल का कहना है कि दोनों का मामला अलग-अलग है और उसे सरबजीत से हमदर्दी है. उसकी लड़ाई कश्मीर को लेकर है. भारत सरकार जो भी निर्णय लेती है उस पर उसे कोई आपत्ति नहीं होगी.

अफजल का कहना है कि जेल में उसकी जिंदगी नरक बन गई है और वह मुर्दा बनकर और जीना नहीं चाहता है. उसने कहा कि मैंने दो महीने पहले सरकार से सजा पर निर्णय लेने का अनुरोध किया था, लेकिन सरकार अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है.


पहले भाजपा का आरोप था, अब एक मुजरिम आरोप लगा रहा है. वही मुजरिम जिसे सरकार बचाने की कोशिश कर रही है. आखर उसे बचाकर क्या करोगे.

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