पत्थरों से
प्रतिमाएँ बनाई जा सकती है
कल्पना की ऊँचाई तक
वे खूबसूरत भी सकती हैं।
पत्थर
दे सकता है प्रेरणा
कह सकता है कि
इसे तराश कर
बना सकते हो तुम
देव प्रतिमाएँ।
पत्थर से
बनाई जा सकती हैं मंदिरें
बाँध, पूल, सड़क और इमारतें।
पत्थर जो कई बार जोड़ता दिलों को
लता है करीब इंसानों को
पैदा करता आग
गर कूबत हो तुम में
इसमे रगड़ पैदा करने की।
पर पत्थरों के पास दिल नहीं होता
उनमें प्यार के फूल खिल नहीं सकते
उसे हर प्यासी रूह नचाती है
हर कोई उसका उपभोग करता है
हर कोई वासना की मूर्ति gadta है।
कोई यह सोचकर उसे मत apnaye कि
यह मेरा है
मेरे लिए है
apnata है to उसे क्या मिलेगा
बस और बस पीड़ा
आह, दर्द और vedna।
पत्थर नहीं हो सकता है किसी का
क्योंकि उसके पास नही होता है
एक adad दिल ।
तभी to nachati है उसे
हर किसी की
viksit और aviksit कल्पना.
रविवार, 6 अप्रैल 2008
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ठीक नही,आप की कविता बहुत ही ठीक हे,बहुत उचित,ओर हम इन्ही पत्थरो के पीछे खुन खारावा करते हे आखिर कयो ? मन्दिर मस्जिद तोड कर दोवारा बना सकते हे, लेकिन किसी को दोवारा जीवान दे सकते हे?
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