कौन
कहता है कि विवादों से इन्सान
का कद घट जाता है। विवाद और
चुनौतियां तो वक्त के वो पैमाने
हैं जिससे इंसान की ऊंचाई मापी
जाती है। गुजरात के मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी के बारे में तो
कम से कम यही कहा जा सकता है।
खुद मोदी ने कहा था कि
17 सितंबर
2011 गुजरात
सद्भावना उपवास
दरअसल,
विवादों
और चुनौतियों के बीच कोई इंसान
कहां खड़ा रहता है,
उसी से लोग
उसकी ऊंचाई मापते हैं। जहां
तक बात मोदी की है तो उन्होंने
खुद विवादों और चुनौतियों का
रास्ता चुना। एक ओर,
2002 के गुजरात
दंगों को लेकर तथाकथित सेक्यूलर
जमात ने संसद से सड़क और सड़कों
से अदालत तक उनके खिलाफ मोर्चा
खोला.. तो
दूसरी ओर,
सड़क बनवाने
के लिए जब उन्होंने मंदिरों
को गिराया तो आरएसएस और विश्व
हिंदू परिषद जैसे दक्षिण पंथी
संगठन उनके खिलाफ हो गए। इसी
साल पंद्रह अगस्त जब उन्होंने
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
के समांतर खड़ा होकर उनकी
निष्ठा पर सवाल उठाए तो खुद
उनकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता
उनके खिलाफ हो गए। मगर,
इन विरोधों
और आलोचनाओं का मोदी पर कोई
असर होता नहीं दिखा। वो बार-बार
और हर बार अपने ही बनाये रास्तों
पर चलने को तत्पर दिखे। कई
लोगों को लगा कि खुद को भीड़
से अलग देखने और दिखाने का
फैशन दरअसल मोदी का पैशन है।
इसी फैशन और पैशन का ही तो दूसरा
नाम युवावस्था है। देखते ही
देखते मोदी युवा-हृदय
सम्राट बन गए। मोदी आज उन युवाओं
के दिलों की धड़कन बन गए जिसमें
लीक से हटकर कुछ कर गुजरने का
जूनुन है। ये जुनून गमले में
कुकुरमु्त्ता नहीं,
बल्कि
कीचड़ में कमल खिलाना चाहता
है। निराशा की ऊर्वर धरा से
पैदा हुई ये वो घास है जो ना
सिर्फ बरगद की समीक्षा करने
का माद्दा रखती है,
बल्कि
चींटी बनकर पागल हाथी को भी
घुटने टेकने के लिए मजबूर कर
सकती है।
इन
विवादों और चुनौतियों के बीच
मोदी ने अपनी छवि एक विकास
पुरुष की बनायी। चाय की दुकान
से शुरू होकर प्रधानमंत्री
पद के उम्मीदवार बनने तक की
उनकी जीवन यात्रा में कई पड़ाव
आए। विद्यार्थी परिषद और
आरएसएस के रास्ते वो भारतीय
जनता पार्टी से जुड़े। राजनीतिक
जीवन के शुरूआती दिनों में
ही मोदी ने साबित कर दिया वो
औरों से अलग हैं। नरेंद्र मोदी
गुजरात में 1995
और 1998
के विधानसभा
चुनावों के प्रमुख रणनीतिकार
रहे। यही वजह है कि 2001
में उपचुनावों
में हार के बाद जब केशुभाई
पटेल ने मुख्यमंत्री पद से
इस्तीफा दिया तो पार्टी ने
मोदी को गुजरात की कुर्सी
सौंपने में जरा भी देर नहीं
लगाई। मोदी जब एक बार मुख्यमंत्री
की कुर्सी पर बैठ गए तो फिर
उनके समक्ष अब तक कोई चुनौती
नहीं पेश कर सका। मोदी लगातार
चौथी बार गुजरात के मुख्यमंत्री
पद की कुर्सी पर बने हुए हैं।
2002
में गोधरा
में ट्रेन जलाए जाने की घटना
के बाद प्रदेश में भड़की
सांप्रदायिक हिंसा के लिएनरेंद्र
मोदी की खूब आलोचना हुई,
मगर मोदी
के शासनकाल में गुजरात ने सतत
विकास की नई ऊंचाईयों को छुआ,
जिसके लिए
देश विदेश में उनकी तारीफों
के पुल बांधे गए।
मोदी
प्रशासन की सबसे ज्यादा तारीफ
गैर-सरकारी
संगठनों और समुदायों की हौसला
अफजाई के लिए हुई,
जिनकी मदद
से गुजरात में आधारभूत संरचना
का जाल बुना गया,
जिसने
भूमिगत जल स्रोतों के संरक्षण
में अहम भूमिका निभाई। एक
रिपोर्ट के मुताबिक,
साल 2008
के अंत तक
गुजरात में जिन पांच लाख ढांचे
बनाए गए,
उनमें एक
लाख तेरह हजार सात सौ अड़तीस
चेक डैम हैं। इन प्रयासों के
गुजरात में कृषि क्षेत्र का
कायाकल्प हुआ। मोदी के कुशल
नेतृत्व का विरोधियों ने भी
लोहा माना।
जहां
तक बात राष्ट्रीय राजनीति की
है तो 1995
में मोदी
भाजपा के महासचिव और 1998
में राष्ट्रीय
सचिव बनाए गए। इससे पहले नब्बे
के दशक में जब लालकृष्ण आडवाणी
ने रथयात्राएं की तो नरेंद्र
मोदी भी उनके साथ थे।
विकास,
विवाद और
चुनौतियों के बीच आज जब नरेंद्र
मोदी राष्ट्रीय राजनीति का
नया अध्याय लिखने के लिए अग्रसर
हैं तो उनपर विवाद स्वाभाविक
है। भाजपा के जिस पितामह ने
2002 के
गुजरात दंगों के बाद मोदी का
बचाव किया,
वो आज मोदी
को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार
बनाए जाने के खिलाफ हैं। आखिर
सवाल उठता है कि विवाद और
चुनौतियां मोदी को छोड़कर
जाएं तो जाएं कहां।
मोदी ने अपनी विकास की सोच को सुदृढ किया है ।
जवाब देंहटाएंआज मोदी विकास पुरुष का पर्याय है । आज वो प्रधानमंत्री पद के जिनके सशक्त उम्मीदवार है उतना कोई नहीं ।
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