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रविवार, 14 अक्तूबर 2012

तमिल की कड़ी कैसे है संस्कृत

तमिल भाषा में ४०% से ५० % तक शब्द तत्सम और तद्‍भव रूप में पाए जाते हैं।
(१)
संस्कृत के शब्द भारतीय भाषाओं में दो रूप में, फैले हैं; कुछ तत्सम रूप में और कुछ तद्भव रूप में। सही आकलन के लिए, पहले तत्सम और तद्भव संज्ञाएं समझ लेनी होंगी।
वे शब्द ’तत्सम’ (तत्‌+ सम) कहलाते हैं, जो अविकृत, शुद्ध संस्कृत रूप में प्रादेशिक भाषाओं में फैले हुये, हैं। और ’तद्भव’ (तत्‌ +भव) वे शब्द कहलाते हैं, जो प्रादेशिक भाषा का संस्कार पाकर रूपान्तरित हो कर रूढ हो चुके हैं।
तत्सम का शब्दार्थ है उसके समान। और तद्भव का शब्दार्थ है उससे उद्‌भूत (उससे उत्पन्न)
(२)
तमिल के तत्सम शब्दों के कुछ उदाहरण :
(१)अंकुश‍म्‌ , (२)अणु, (३)अंतरंग‍म्‌,(४) गर्वम्‌, (५)विषयम्‌,(६) आडंबरम्‌, (७)अलंकारम्‌,(८) रोहण‍म्‌,(९) विस्तारम्‌,(१०) सुगम, (११) विशालमान इत्यादि शब्द अविकृत और शुद्ध संस्कृत रूप में तमिल में पाये जाते हैं।।
टिप्पणी : कुछ तमिल बंधु ऐसे समान शब्दों को तमिल से संस्कृत में आये हुए मानते हैं।
पर हमें जब समानता ही ढूंढना है,और समन्वय की ही चाहना है, तो संस्कृत-तमिल की शब्द-समानता ही हमारे लिए पर्याप्त है। वे शब्द संस्कृत में तमिल से आये थे, या तमिल में संस्कृत से गये थे, यह चर्चा गौण हो जाती है। वैसे हमारी विचार प्रणाली समन्वयकारी है, विविधता में एकता देखनेवाली है। हमें हमारे तमिल भाषी पुरखों का उतना ही गौरव है, जितना हमारे संस्कृत भाषी पुरखों का।कुछ इसी प्रकार, विवेकानन्दजी ने भी कहा हुआ स्मरण है।
(३)
तद्भव शब्दों के कुछ उदाहरण: निम्न शब्द कुछ रूपान्तरित होकर तमिल में पाए जाते हैं। जैसे (१)सभा —> सबै, (२) अनाथ —-> अनादै; (३)मूल –> मुलै, (४)अवमर्यादा —->अवमरियादै; (५)अर्चना —–> अरुच्चनै, (६) पूजा—>पूजै इत्यादि।
निर्देशित शब्दों की ओर देखने पर आप के ध्यान में आयेगा, कि,
(एक) इन शब्दों का अंत ”ऐ” कार से हो रहा है; जैसे मूल का मुलै, सभा का सबै, पूजा का पूजै
(दो) दूसरी विशेषता भी है, जो तमिल की वर्णमाला की उच्चारण सीमा में ही उच्चारण करवाती है।
(तीन) संस्कृत की भांति अनुनासिक म्‌‍ में शब्द का अंत
(चार) ”द्ध” के स्थान पर ”द्द” का उच्चारण। बुद्धि –> बुद्दि
(पांच) भ के स्थान पर ब, ख के स्थान पर क, त थ द ध के स्थान पर द या त ।
ऐसी और भी विशेषताएं हैं। अभी केवल प्राथमिक जानकारी ही उद्देश्य है, पर ठीक समझ में
आने के लिए, कुछ बिन्दु प्रस्तुत किए हैं।
(४)
तमिल ’ळ’ का उच्चारण।
तमिल का ळ वेदों में भी पाया जाता है, जो हिन्दी में लुप्त हुआ है; पर संस्कृत में है; गुजराती, मराठी में भी है। शायद कन्नड, तेलुगु, मल्लयालम में भी होगा। तमिल ळ का उच्चारण कुछ अलग ही है।
(५) हिन्दी/संस्कृत—>तमिल शब्द
माना जाता है कि तमिल भाषा में ४०% से ५० % तक शब्द तत्सम और तद्‍भव रूपमें पाए जाते हैं।
केवल अ से प्रारंभ होते शब्दों का चयन किया है, इसके पीछे उद्देश्य, समझता हूँ, कि एक ”अ” से प्रारंभ होने वाले इतने शब्द मिल पाए, तो सारे तमिल शब्दों में प्रायः इसी अनुपात में शब्द मिलने चाहिए।
निम्न शब्द सूचि में, बाईं ओर संस्कृत का शब्द देकर उसीका तद्‌भव या तत्सम तमिल रूप दाहिनी ओर अंतमें दिया है। कुछ और पर्याय भी दिए हैं। कोष्ठक में अर्थ बताया है। तमिल शब्द अंत में —> की दाहिनी ओर दिए हैं।
(६)
संस्कृत शब्द –(संभवित अर्थ )—–> तमिल शब्द
अंकुर — मुलै।
अंकुश — (लोहे का कांटा जिससे हाथी को वश में किया जाता है; ) —> अंकुशम।
अंतरंग — (घनिष्ठ, आत्मीय;) —>आप्तमान; अंतरंगमान, अंतरंगं।
अंतर्राष्ट्रीय — (एक से अधिक राष्ट्रों से संबंध रखने वाला )—> सर्वदेसि।
अकड़ना — (कड़ा होना, ऐंठना; घमंड दिखाना या दुराग्रह करना )—> गर्वम्।
अक्ल — (बुद्धि, समझ )—> बुद्दि।
अगरबत्ती —> अगर्बत्ति ,ऊदुवत्ति।
अग्रज — (बड़ा भाई )—> अण्णन् (अण्णा )
विशेष: यही अण्णा हज़ारे का नाम भी है। ”अन्ना” अशुद्ध माना जाएगा।
अड्डा —-(निलयम )—-> निलैयम्
अणु — (किसी तत्वका बहुत छोटा अंश )—> अणु;
अदालत — (न्यायालय) —> नियायालयम् (न्यायालयम्‌)
अधिक — (बहुत; अतिरिक्त )—> अदिकं; अदिगं
अधिवेशन –( सभा )—> सबै
अध्यापक — (पढ़ाने वाला, शिक्षक) —> उबाद्दियायर् (उपाध्याय)
अध्याय —–> अद्दियायम्; विषयम्
अनशन — (आहार त्याग, उपवास;) —> उपवासम्
अनाथ —-> अनादै;
अनाथालय — —> अनादैलियम
अनुराग — (प्रेम,) —> पिरियम् (प्रियम )
अनुसार – (अनुरूप )—> अनुसरित्तु (अनुसरित)
अनेक — —> अनेग,
अन्न — (अनाज) —> दानियम् (धान्यम )
अन्याय —> अनियायम्; (अन्यायम्‌)
अपमान —–> अवमरियादै;(अवमर्यादा)
अफसर —> अदिकारि, — (अधिकारी)
अभयदान — (सुरक्षा का वचन) —> अबयम (अभयम)
अभिनय — (आंगिक चेष्ठा, हावभा —> अबिनयम्,
अभिप्राय — —> अंबिप्पिरायम्;
अभिभावक —-> पोषकर् (पोषक)
अभिमान — (अहंकार,)—> गर्वम्
अभिलाषा —–> अभिळाषै,
अभिशाप — —> शाबम्
अभ्यास —> अब्बियासम्
अमावस्या —> अमावासै
अमृत —–> अमुदम्
अम्ल —-> अमिलम्
अराजक —-अराजकम्
अरुण —>सूरियन् (सूर्यन)
अर्चना —–> पूजै, अरुच्चनै
अर्थ —– >अर्त्तम्; अर्त्तम्,
अर्धमासिक — –> पक्षम्, ( जैसे शुक्ल पक्ष, कृष्ण पक्ष)
अर्धांगिनी —-> धर्मपत्नी —> पत्तिनि, (पत्नी)
अर्पण —-> अर्पित्तल्,
अलंकरण —-> अलंकरित्तल्
अलंकार —->अलंकारम्
अलमारी —–> अलमारि ( यह एक पुर्तगाली शब्द मूलका शब्द है, जो हिन्दी में चलता है, पर संस्कृत में नहीं चलता)
अलापना —-> आलापनै
अलौकिक (दैवी )– —> देय्वीगमान
अलता —-> अल्ता
अवतार —->अवतारम्;
अवयव — —> अवयवम्;
अवरोह —-> अवरोहणम्
अवश्य — —> अवसियम्,
अवसान —-> मरणम्
अशुद्ध —->अशुद्दमान;
अशुद्धि —–> अशुद्दम्, (अशुद्धम)
अशुभ — —> अमंगलमान, अशुभम्;
अष्टमी — —> अष्टमि
असर — (प्रभाव) —> पिरबावम् (प्रभावम)
असल —-> मूलदनम् (मूल धन)
असली —-> असल् शुद्दमान (शुद्धमान)
असुविधा —–> असौकरियम्; (असौकर्यम)
अस्त्र —–> अस्तिरम्,
अल्प —-> अर्पमान (अल्पमान)
अहं — —> गर्वम्, अहंकारम्
अहिंसा —-> अहिंसै
आंशिक —->अपूर्णमान
आकाश — —> आगायम्
आकाशवाणी —-> अशरीरि वाक्कु ; आकाशवाणी,
आकृति —-> रूपम्, मुखम्
आकर्षण —-> शक्ति,
आचार्य —–> गुरु;
आज़ाद — (स्वाधीन, मुक्त, स्वतन्त्र )—> सुतंदिरमान (स्वतंत्रमान)
आजीविका — (रोज़ी, रोज़गार, धंधा) —>उद्दियोगम् (उद्योगम्‍)
आज्ञा — (आदेश,अनुमति) —> अनुमदि
आडंबर — (दिखावा,) —> आडंबरम्
आत्म-कथा — (स्व चरित्र) —> सुय-चरितै
आत्मा — —> आत्तुमा, जीवन्;
आदर —–> मरियादै; (मर्यादा)
आलंबन — (आधार, आश्रय) —> आदारम्
आदि — (मूल; पहला;) —> आदि, मूल
आदिवासी — (जनजाति का सदस्य )—> आदिवासी
आधार — –> आदारम्; कारणम्
आधिकारिक — (अधिकारपूर्वक) —> आदिकार पूर्वमान
आध्यात्मिक — (आत्मा से सम्बन्ध रखने वाला )—> आन्मीयम्
आनंद — (हर्ष, खुशी; मौज) —> आनंदम्
आमोद-प्रमोद —->उल्लास
आयत — (चार भुजाओं वाला विशाल क्षेत्र) —> विशालमान; नीळ् सदुरमान
आया — (धाय, दाई) —> आया;
आयाम — (लंबाई, विस्तार) —>विस्तारम्
आयुष्मान् — (दीर्घजीवी, चिरंजीवी )—> चिरंजीवियान,
आरंभ —–> आरंबम,
आरती —> आरत्ति, दीपारादनै;(दीपाराधना)
आराम —> सुगम्,
आरोह —>रोहणम्
आलोचना —–> विमरिसनम् (विमर्श)
आवरण — (परदा;)–> पडुदा;
आवश्यक — –> अवसियमान, (अवश्यमान)
आभूषण —–> अलंकारम्

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