गैर-राजनीतिक चेहरों के जरिए कांग्रेस अन्ना के आंदोलन से निपटने को तैयार
कांग्रेस के राजनीतिक दिग्गज टीम अन्ना की रणनीति के सामने औंधे मुंह गिरे हैं। कपिल सिब्बल, चिदंबरम, मनीष तिवारी, दिग्विजय सिंह, अंबिका सोनी, अभिषेक मनु सिंघवी, रेणुका चौधरी, राशिद अल्वी जैसे कांग्रेसी दिग्गजों की बोलती बंद है। खबर तो मिल रही है कि कांग्रेस ने अशालीन और अभद्र भाषा बोलने के लिए मशहूर अपने प्रवक्ता मनीष तिवारी को तरीपार कर दिया है। बड़बोले नेताओं को जुबान पर ताला लगाने को कहा गया है। जुबान खोलने पर तोल-तोल के बोलने को कहा गया है। कल तक टीम अन्ना के लिए अभद्र भाषा बोलने वाले कांग्रेसी दिग्गजों को मुंह की खानी पड़ी है। अभी तक टीम अन्ना ने उनकी हरेक चतुराई और चलाकी का मुंहतोड़ जवाब दिया है। आगे क्या होगा कहना जरा मुश्किल है। लेकिन फिलहाल जो परिस्थिति दिख रही है। उसमें टीम अन्ना सरकार पर भारी दिख रही हैं। कांग्रेस के अंदर अन्ना के मुद्दे पर फूट पड़ती दिख रही है। कांग्रेसी नेता ही अन्ना के खिलाफ कार्रवाई गलत ठहरा रहे हैं। उनकी तथाकथित कानून की दलील पर कांग्रेसी नेता ही सवाल उठा रहे हैं।
कांग्रेस ने टीम अन्ना को नीचा दिखाने की कम कोशिश नहीं की, लेकिन उन्हें टीम अन्ना से अब तक मात ही मिली है। इसमें जहां टीम अन्ना की रणनीति का योगदान है तो वहीं, अन्ना के अनशन को बिना शर्त मिल रहे मीडिया सहयोग को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। पंद्रह अगस्त की शाम की बात है। राजघाट से लौटने के बाद अन्ना हजारे दिल्ली के कंस्टीट्यूशनल क्लब में प्रेसवार्ता कर रहे थे। उस प्रेसवार्ता में मीडियाकर्मियों ने अन्ना की बात-बात पर जो तालियां बजाई उससे कांग्रेस को जबरदस्त खीझ हुई। उससे भी आगे बढ़कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने अन्ना के अनशन का जो 24*7 लाइव कवरेज किया, वो भी कांग्रेस और सरकार की नजरों में चढ़ गया। मीडियावालों ने सरकार से कुछ ऐसे सवाल किए जिससे सरकार ना सिर्फ असहज हुई बल्कि उससे जवाब देते नहीं बना। कांग्रेस या यूपीए सरकार ने इससे पहले कभी ऐसे सवालों का सामना नहीं किया। उसे ये सोच-सोचकर परेशानी महसूस हुई कि क्या मीडिया उससे इस ढंग के सवाल भी कर सकती है। दरअसल कांग्रेस ने कभी मीडिया से इस तरह के सवालों की उम्मीद नहीं करती है, जिसका जवाब उसके पास नहीं हो।
दो रोज पहले की बात है। केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी ने टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल की योग्यता पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि अरविंद केजरीवाल को कौन जानता था। हमारी सरकार ने आरटीआई लाया, इसी के कारण लोग उन्हें जानते हैं। तभी मीडियाकर्मियों ने सवाल दागा, क्या आप ने ही अरविंद केजरीवाल को मैग्सेसे अवार्ड दिलाया। क्या आप ही उन्हें आईआईटी में एडमिशन दिलाया। क्या आप ही के चलते वो आईआरएस बने। जाहिर है कि कांग्रेस कम से कम मीडिया से तो ऐसे सवालों की उम्मीद नहीं करती है। कांग्रेस के युवराज और मीडिया द्वारा बहुप्रचारित भारत के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी तो अन्ना के मुद्दे पर जुबान खोलने के लिए तैयार नहीं। तेलुगु सुपरस्टार और पीआरपी प्रमुख चिरंजीवी के कांग्रेस में शामिल होने के मौके पर पत्रकारों ने राहुल से बार-बार अन्ना के मुद्दे पर कुछ बोलने के लिए कहा। लेकिन राहुल गांधी ने मीडिया को नजरअंदाज कर दिया। कांग्रेस राहुल गांधी को यूथ आइकॉन के रूप में प्रस्तुत करती है, मगर यूथ आइकॉन यूथ अन्ना के मामलों पर सवालों को टाल जाते हैं। दसअसल राहुल गांधी देश के किसी भी अहम मुद्दे पर किसी भी सवाल का जवाब देने में खुद को सक्षम नहीं पाते हैं।
राजनीति के हर मोर्चे पर हार चुकी कांग्रेस अब अपने गैर राजनीतिक चेहरों को मैदान में उतार रही हैं। ये ऐसे लोग हैं जो कांग्रेस के प्रति अगुग्रहीत रहे हैं। इन चेहरों में कुछ खुद को सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं जो कांग्रेस के अहसानों तले दबे रहे हैं। इन सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों ने कांग्रेस को सत्ता में बनाए रखने के लिए एक समिति बनाई जिसे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद नाम दिया गया। इस बहुप्रचारित परिषद के अध्यक्ष स्वयं यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी हैं।
अन्ना के अनशन से कांग्रेस में हाहाकार मचा हुआ है। कांग्रेसी दिग्गज हाथ जला चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस ने अब इन अहसानमंद गैर-राजनीतिक चेहरों को मैदान में उतार दी है। इन लोगों की एक गुट ने अरुणा रॉय की अगुवाई में शनिवार को लोकपाल बिल का एक नया ड्राफ्ट पेश कर दिया और इस ड्राफ्ट को संसद की स्थायी समिति में पेश करने की बात कही जा रही है। आपको एकबार फिर याद दिला दें कि अरुणा राय यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की एक सदस्य हैं, इस परिषद में हर्षमंदर भी हैं। हर्षमंदर मजबूत लोकपाल के पक्ष में तो हैं लेकिन वो अन्ना के तरीकों से सहमत नहीं हैं। सिर्फ हर्षमंदर ही नहीं अरुणा रॉय भी अन्ना के अनशन से सहमत नहीं है। अरुणा रॉय को जनलोकपाल से भी शिकायत है। और उन्होंने लोकपाल का अपना मसौदा पेश किया है। इस मसौदे में एक दो नहीं बल्कि पांच-पांच स्तरों लोकपाल बनाने की बात कही गई है।
सरकार के इशारों पर नाचने वाली सीबीआई और सीवीसी को लोकपाल से अलग रखने की बात कही गई है। अरुणा रॉय ने ऐसे समय में लोकपाल का अपना मसौदा पेश किया जब अन्ना हजारे पांच दिनों से अनशन पर हैं। अरुणा रॉय लगातार राष्ट्रीय सलाहकार परिषद में बनी हुई हैं। उन्होंने इससे पहले कभी ऐसा बिल पेश नहीं किया। इससे पहले भी अन्ना ने अनशन किया था। अन्ना के अनशन के बाद सरकार ने एक संयुक्त प्रारूपण समिति भी बनाई थी। जिसमें टीम अन्ना और सरकार की ओर से पांच पांच सदस्य थे। उस समय भी अरुणा रॉय की टीम की ओर से कोई सलाह या सुझाव नहीं आया। जबकि वो सलाहकार परिषद में बनी हुई थी। लेकिन अब जब अन्ना हजारे छह दिनों से अनशन पर हैं और पूरा देश सड़कों पर उतर चुका.. ऐसे में अरुणा रॉय के इस मसौदे को क्या कहा जाय। ये सुझाव या सलाह नहीं बल्कि पूरा का पूरा मसौदा है। साफ है कि ये अन्ना के आंदोलन की हवा निकालने की सरकारी कोशिश है और कांग्रेस ने अपने गैर-राजनीतिक चेहरों को सामने लाकर अन्ना के आंदोलन की हवा निकालने की कोशिश की है।
ऐसा नहीं है कि अरुणा रॉय पर ही बात समाप्त हो जाएगी। कांग्रेस के और कई गैर-राजनीतिक चेहरे सामने आएंगे। इन लोगों का अपना-अपना मसौदा होगा और इस मसौदे के जरिए वो अन्ना के आंदोलन को अप्रभावी बनाने की कोशिश करेंगे। टीम अन्ना को इसके लिए भी तैयार रहना होगा। ऐसे में जन लोकपाल का भविष्य आम जनता के समर्थन पर निर्भर करेगा।
हालांकि अन्ना पहले ही साफ कर चुके हैं कि उनकी लड़ाई किसी पार्टी के खिलाफ नहीं है बल्कि ये लड़ाई व्यवस्था के खिलाफ है। टीम अन्ना ने भाजपा की भी आलोचना की है क्योंकि भाजपा ने जो रवैया अख्तियार कर रखा है वो ना सिर्फ आश्चर्यजनक है बल्कि वो खुद भाजपा के लिए भी घातक है। अगर भाजपा अपना रुख साफ नहीं करती है तो उस पर भी भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का आरोप लगेगा और चुनाव के समय पब्लिक भाजपा नेताओं का स्वागत अंडे और टमाटरों से करेगी। फिलहाल भाजपा बीज बोने के लिए तैयार नहीं है, मगर उसकी नजर फसल पर लगी हुई है।
इधर, कांग्रेस राजनीतिक रूप से असहाय तो हो ही चुकी है। गैर-राजनीतिक रूप से भी वो सीधे-सीधे सामने नहीं आ रही है। यहां भी उसका कुटिल और चालाक स्वभाव उसे ऐसा करने से रोक रही है। साफ है कि वो वो हर जंग को अपनी कुटिलता व चालाकीपन से जीतना चाहती है। लोकतांत्रिक मूल्यों की धज्जियां उड़ाने के लिए वह बात-बात में कानून, संविधान, प्रक्रिया, लोकतंत्र आदि की दुहाई देती है। मगर, अन्ना और उनकी टीम की सादगी, सरलता, बेबाकीपन और पारदर्शिता के आगे उसका हर दांव फीका पड़ता जा रहा है। और आगे भी ऐसा ही होगा। इसमें कोई संदेह नहीं।
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