हिंदी शोध संसार

बुधवार, 10 अगस्त 2011

सुवचन- संस्कृत साहित्य का अनमोल खजाना


वरम एकौ गुणी पुत्रौ न तु मुर्खा शतान्यपि

एकश्चंद्र: तमो हन्ति न तु तारा सहस्त्रश:

भावार्थ- एक ही गुणी पुत्र अच्छा है न कि सैंकड़ों मुर्ख। क्योंकि एक ही चंद्र संसार के अंधकार को हर लेते हैं जबकि हजारों तारे मिलकर ऐसा नहीं कर पाते हैं.

मनस्येकं वचस्येकं कर्मण्येकं महात्मनाम्।
मनस्यन्यत् वचस्यन्यत् कर्मण्यन्यत् दुरात्मनाम्

भावार्थ- महान व्यक्तियों के मनमे जो विचार होता है वही वे बोलते है और वही कॄति में भी लाते हैं उसके विपरीत नीच लोगों के मनमे एक होता है वो बोलते उससे हैं और करते उससे भी अलग है. यानी महात्माओं का मन, वचन और कर्म एक होता है जबकि दुरात्माओं का मन, वचन और कर्म अलग अलग होता है।

शोको नाशयते धैर्य, शोको नाशयते श्रॄतम्।
शोको नाशयते सर्वं, नास्ति शोकसमो रिपु:।।
भावार्थ- शोक धैर्य को नष्ट करता है, शोक ज्ञान को नष्ट करता है, शोक सर्वस्व का नाश करता है. इसलिए शोक जैसा कोई शत्रु इस संसार में नहीं है |

आर्ता देवान् नमस्यन्ति, तप: कुर्वन्ति रोगिण:।
निर्धना: दानम् इच्छन्ति, वॄद्धा नारी पतिव्रता।।
भावार्थ- संकट में लोग भगवान की प्रार्थना करते हैं, रोगी व्यक्ति तप करने की चेष्टा करता है। निर्धन को दान करने की इच्छा होती है तथा वॄद्ध स्त्री पतिव्रता होती है। यानी कुछ लोग केवल परिस्थिति के कारण अच्छे गुण धारण करने का नाटक करते हैं।

सम्पतं च विपत्तम च महतमां एकरूपता

उदये सविता रक्ता रक्ताश्च मये यथा।

भावार्थ- महान लोग दुख और सुख में एक जैसे होते हैं जैसे सूर्य उदय और अस्त दोनों ही समय एक जैसा होता है।

उपाध्यात् दश आचार्य: आचार्याणां शतं पिता।
सहस्रं तु पितॄन् माता गौरवेण अतिरिच्यते।
भावार्थ- आचार्य उपाध्याय से दस गुना श्रेष्ठ होते हैं। पिता सौ आचार्यों के समान होते हैं। और माता पिता से हजार गुना श्रेष्ठ होती हैं।

दूरस्था: पर्वता: रम्या: वेश्या: च मुखमण्डने।
युध्यस्य तु कथा रम्या त्रीणि रम्याणि दूरत:।।
भावार्थ- पहाड़ दूर से बहुत अच्छे दिखते हैं। मुख विभूषित करने के बाद वैश्या भी अच्छी दिखती है। युद्ध की कहानियां सुनने को बहुत अच्छी लगती है। लेकिन ये तीनों ही चीजें दूर में ही अच्छी होती हैं।



1 टिप्पणी :

  1. नमस्कार हमारे धार्मिक ग्रंथों में जो लिखा है यदि हम उसका ही अनुसरण कर लें तो हमें अंग्रेजों के क्योट पड़ने की आवश्यकता ना पड़े

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