हिंदी शोध संसार

शनिवार, 30 जुलाई 2011

प्रणब की बातों पर लोगों को क्यों नहीं हो रहा है भरोसा

प्रणब मुखर्जी देश के उन शीर्षस्थ राजनेताओं में गिने जाते हैं जो सर्वोच्च नहीं होकर भी सर्वोच्च ही माने जाते हैं। वो गुस्सा भी करते हैं तो लोगों को पसंद आता है। बांग्ला-टोन वाली उनकी अंग्रेजी लोगों को स्वदेशी भाषा लगती है। उमर भी काफी हो चुकी है। राजनीति से रिटायर्ड होने के बारे में भी विचार करते होंगे। यही वजह है कि उन्होंने अपने प्रियपुत्र को राजनीति में ला ही दिया। हमारे जैसे लाखों लोगों को लग रहा था कि जाते-जाते प्रणब मुखर्जी कुछ ऐसा करेंगे, जिसके लिए उन्होंने भारत की आने वाली पीढ़ी हमेशा याद रखेगी। लेकिन देश की राजनीति, खासकर कांग्रेस की आंतरिक राजनीति ने उन्हें पहले भी ऐसा करने का मौका नहीं दिया और शायद अब उनका हाथ और भी बंधा-बंधा नजर आ रहा है। प्रणब मुखर्जी अब चाहकर भी कुछ नहीं कर पाएंगे। यही वजह है कि प्रणब में पहले वाली बात नहीं दिख रही है।
इन दिनों प्रणब मुखर्जी देश से जो कह रहे हैं उसपर किसी को भी भरोसा नहीं हो रहा है। सुप्रीमकोर्ट को भी उन्होंने कहा था कि सरकार कालेधन को स्वदेश लाने के लिए उपाय कर रही है। लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने उनपर भरोसा नहीं किया। सरकार ने कालेधन की जांच के लिए जो एसआईटी बनाई, सुप्रीमकोर्ट ने जस्टिस जीवन रेड्डी को उसका अध्यक्ष बना दिया। उसका उपाध्यक्ष भी सुप्रीमकोर्ट ने ही नियुक्त किया। आखिर क्यों। आखिर सुप्रीमकोर्ट को प्रणब या सरकार की बातों पर क्यों भरोसा नहीं है।
दरअसल, अपने अंतिम समय में प्रणब मुखर्जी कुछ ऐसा काम करते जा रहे हैं। जिनपर लोगों को भरोसा नहीं हो पा रहा है। ऐसा लग रहा है कि प्रणब मुखर्जी किसी को बचाने की कोशिश में ऐसा कर रहे हैं। जाहिर है कि स्वीस बैंकों में जमा काला धन उस आम आदमी का नहीं है जिसकी दुहाई दे-देकर भारत में सरकारें बनती आई है। ये पैसा नेताओं, नौकरशाहों, उद्योगपतियों, फिल्म कलाकारों, तस्करों, नशीली दवाओं के व्यापारियों का है। जाहिर है कि इस देश में ज्यादा समय तक शासन कांग्रेस पार्टी का रहा है और सबसे ज्यादा घोटाला भी इसी पार्टी ने किया है, इसलिए सबसे ज्यादा पैसा इसी पार्टी के नेताओं का होगा। इसलिए इन नेताओं को बचाना, कांग्रेस पार्टी के हर मंत्रियों का प्राथमिक कर्तव्य होगा। पैसा बीजेपी समेत दूसरी पार्टियों के नेताओं का भी होगा। इसलिए ये पार्टियां भी कांग्रेस पर ज्यादा दबाव डालना उचित नहीं समझती हैं, क्योंकि इनका भी भंडाफोड़ हो जाएगा।
तो बात प्रणब मुखर्जी की कर रहे हैं। ये बात वहां से शुरू होती है। जब सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से उन नामों का खुलासा करने को कहा, जो उसे जर्मन सरकार से मिले थे। सरकार ने संधि का हवाला देकर इनका खुलासा करने से इनकार कर दिया। तहलका जैसी पत्रिकाओं ने इन लोगों के नाम छाप दिए, मगर सरकार ने अभी तक इन नामों का खुलासा नहीं किया। इन लोगों पर कोई कार्रवाई तक नहीं की। सरकार एक नहीं सौ बार झूठ बोलती रही। सरकार की इन बातों पर ना तो देश की जनता को भरोसा हुआ और न ही सुप्रीमकोर्ट को। आखिर कार सुप्रीमकोर्ट ने एसआईटी का गठन कर दिया।
जानकार सूत्रों की मानें तो प्रणब मुखर्जी स्वीटजरलैंड के साथ जिस संधि के होने की बात कर रहे हैं इस संधि के तहत अप्रैल २०११ के बाद स्वीस बैंक में जमा धन का ही पता चल पाएगा। आखिर सवाल उठता है कि पिछले साठ साल में स्वीस बैंक सहित दुनिया के बाकी बैंकों में जो पैसा जमा हुआ उसका क्या होगा। क्या वो पैसा क्या बेईमानों, गद्दारों और लुटेरों का ही रह जाएगा। आखिर प्रणब मुखर्जी की बातों पर भरोसा हो तो कैसे।
वो कह रहे हैं कि ५४ देशों के साथ बातचीत हो चुकी है और ७४ देशों के साथ बातचीत जारी है. आखिर उन्होंने इन देशों के साथ क्या बात की और फिलहाल क्या बात कर रहे हैं। इन बातों का जवाब उन्हें देना चाहिए।
भारतीय पक्ष में छपे एस गुरूमूर्ति के लेख "सोनिया का सच" में स्वीस बैंक में सोनिया गांधी का करीब २.२ अरब डॉलर से ११ अरब डॉलर जमा होने की बात कही गई है। विभिन्न तथ्यों और संदर्भों के हवाले से कहा गया है कि सोनिया गांधी या गांधी परिवार के किसी व्यक्ति ने इस खबर का कभी खंडन नहीं किया या किसी पर कभी कोई मुकदमा नहीं चलाया। सुब्रह्मण्यम स्वामी भी बार बार इस तरह के दावे करते रहे हैं। आखिर इस कालेधन का सच क्या है, करदाताओं और देशवासियों को पता होना चाहिए।

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