अगर अमेरिका बजट खर्च में कटौती नहीं करता है और कर्ज की सीमा नहीं बढ़ाता है तो उसकी कर्ज समस्या बहुत ही गंभीर हो जाएगी और उसे ये काम बहुत जल्द करना होगा। दो अगस्त तक अगर वो कर्ज सीमा नहीं बढ़ाता है तो वो डिफाल्टर हो सकता है।
दुनियाभर की अखबारें अमेरिकी कर्ज संकट से भरा हुआ है।
अमेरिकी डेट क्लॉक के आंकडों को देखें तो अमेरिका की हालत बहुत पतली है। उसके हर नागरिक पर ४६००० डॉलर का कर्जा है।
बीबीसी के मुताबिक, पिछले साल अमेरिका का बजटीय घाटा १.५ ट्रिलियन डॉलर था और अमेरका पर १४.३ ट्रिलियन से ज्यादा कर्ज है।
२०१२ में अमेरिका का प्रस्तावित बजट ३.७ ट्रिलियन डॉलर का है। जिसमें डेढ़ ट्रिलियन डॉलर की कटौती करने की सख्त आवश्यकता महसूस की जा रही है। बजट में कटौती का मतलब अनेक योजनाओं में कटौती।
अमेरिका के कर्ज संकट पर चीन चुटकी ले रहा है और कह रहा है कि अमेरिका का कर्ज संकट लोकतंत्र को बदनाम कर रहा है और लोकतंत्र का मजाक भी उड़ा रहा है।
देश | जीडीपी के मुकाबले कर्ज का अनुपात | जीडीपी के मुकाबले बाहरी कर्ज का अनुपात |
अमेरिका | 134.00% | --- |
भारत | 52.00% | 21.00% |
इंग्लैंड | 80.00% | 388.00% |
चीन | 17.00% | 5.00% |
फ्रांस | 86.00% | 208.00% |
रूस | 10.00% | 32%
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क्या खुले बाजार, खुली पूंजी और खुले श्रम व्यवस्था पर फिर से सोचने की जरूरत नहीं है। जिस तरह से भारत सरकार अपना बाजार खोल रही है। क्या वो संकट का संकेत नहीं है। क्या उदारवाद और भूमंडलीकरण हमें गर्त में ढकेल नहीं देगा। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है फिर उसे कर्ज संकट ने परेशान कर रखा है फिर हमारे क्या बिसात है। जब हमारे ऊपर संकट आएगा तो हम कहां ठहरेंगे। हमारे देश के नीति निर्माताओं को फिर से सोचने की जरूरत है।
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