हमेशा चमचों और चापलूसों से घिरी रहने वाली यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को धीरे-धीरे सत्य का ज्ञान हो रहा है। भगवा आतंकवादियों को पानी पी-पीकर गड़ियाने और उसके खिलाफ पूरी सत्ता की ताकत झोंक देने वाली सोनिया इन दिनों प्रवचन देती दिख रही हैं। उनका प्रवचन उन साधु महात्माओं जैसा ही है, जिन्हें वो और उनके चमचे भगवा आतंकवादी कहते हैं। उनके नए प्रवचन में कुछ त्यागवादी प्रवचन शामिल हो गए हैं। मसलन, धन-दौलत और सत्ता ही सबसे बड़ा सुख नहीं है। इससे अलग त्याग में सबसे बडे सुख का रहस्य छिपा हुआ है। इससे पहले कांग्रेस के महाधिवेशन में सोनिया गांधी ने नैतिकता पर बड़ा प्रवचन दिया था. मसलन, हाल के वर्षों में हमने बड़ी आर्थिक तरक्की की है, लेकिन हमारे सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का तेजी से ह्रास हुआ है। सोनिया गांधी ये प्रवचन किसे दे रही हैं। क्या वो राजनीति से संन्यास लेना चाहती है या मनमोहन सिंह को संन्यास लेने के लिए कह रही हैं ताकि अपने प्रिय पुत्र राहुल के लिए रास्ता साफ हो सके। या राहुल गांधी को राजनीति से संन्यास लेने के लिए कह रही हैं या सत्ता लालुप अपने दल के नेताओं को संन्यास लेने के लिए कह रही हैं। इशारा किसकी ओर है इसका फिलहाल खुलासा नहीं हो पाया है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में सोनिया गांधी खुद इसका खुलासा करें।
यहां ध्यान देने लायक बात ये है कि सोनिया गांधी का प्रवचन आकड़ों में छलांग लगाती मनमोहन की आर्थिक तरक्की के दौर में हो रहा है। जब देश यावत जीवेत सुखम जीवेत, ऋणम कृत्वा घृतम पीबेत(जब तक जीओ, सुख से जीओ। कर्ज लेकर घी पीओ) के फलसफे पर विश्वास करने लगा है। जब देश आईपीएल, राखी का इंसाफ और बिग बॉस में डूबने के लिए ललचा रहा है। ऐसे में सोनिया का ये प्रवचन किस काम का। सोनिया जैसा चाहा, वैसा ही देश बन रहा है तो सोनिया गांधी को इसपर संतोष क्यों नहीं है। क्यों वो देश को नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगी हैं। क्यों वो लोगों का सुख नहीं देखना चाह रही है। क्यों उन्हें ये सब अच्छा नहीं लग रहा है। क्यों वो प्रवाचिका बन गई हैं।
गौर से देखें तो ये अनायास ही नहीं हुआ है। इसे वैराग्य भाव कहना फिलहाल जल्दबाजी होगा। लेकिन ये वैराग्य भाव डर, असुरक्षा, घटती लोकप्रियता और असफलता का मिलाजुला रूप है।
सोनिया गांधी देश की सबसे पुरानी पार्टी 125वर्षीय कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। साफ साफ कहें तो देश की सबसे शक्तिशाली महिला। देश में उनसे ऊपर कुछ भी नहीं है। वो प्रधानमंत्री भी बनाती हैं और राष्ट्रपति भी। उनके नाम ले-लेकर कानून बनाए जाते है। हर कांग्रेसी कहते फिरता है कि ये हमारे नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। कांग्रेस में उनके खिलाफ कोई एक शब्द भी नहीं बोल सकता। फिर भी सोनिया गांधी को उपदेश देना पड़ रहा है। एकबार फिर कह दें कि ये साफ नहीं हुआ है कि ये उपदेश किसके लिए है। प्रधानमंत्री के लिए, खुद सोनिया गांधी के लिए, राहुल गांधी के लिए, कांग्रेस के लिए या कांग्रेसी नेताओं के लिए या फिर विपक्षी पार्टियों के लिए। जब तक साफ नहीं होगा तब कांग्रेसी ये ही समझेंगे कि ये प्रवचन उनके लिए नहीं है, बल्कि विपक्ष के लिए है, उद्योगपतियों के लिए या देश की 80 प्रतिशत भूखी-नंगी जनता के लिए। मगर इतना साफ है कि ये प्रवचन है और जानना चाहिए कि ये प्रवचन क्यों दिया गया है। सोनिया गांधी कोई साधु संत नहीं हैं तो प्रवचन दें तो उनके निहितार्थ को जानने की कोशिश नहीं हो। सोनिया गांधी के प्रवचन का निहितार्थ है।
जैसे कि ऊपर लिखा गया है कि सोनिया गांधी दुनिया की सबसे शक्तिशाली लोगों में शुमार हैं। लेकिन, उस सर्वशक्तिमान कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष के नब्बे प्रतिशत नेता भ्रष्ट हैं। साफ साफ कहें तो नब्बे प्रतिशत लोग भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे हुए हैं। न सिर्फ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं बल्कि अनैतिक कार्यों में भी लिफ्त हैं।
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की सदस्यता वाली समिति सीवीसी यानी मुख्य सतर्कता आयु्क्त जैसे संवेदनशील पद पर एक भ्रष्ट अधिकारी की नियुक्ति करती है और सरकारी वकील कोर्ट में कहता है कि सरकार को उसके बैकग्राउंड के बारे में पता ही नहीं था। सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग के दर्जनों मामले सामने आए हैं। राजनीतिक समर्थन पाने के लिए सरकार सीबीआई का दुरुपयोग करती है या फिर राज्यों में विरोधी पार्टी की सरकार को परेशान करने के लिए सीबीआई का दुरुपयोग करती है। सीबीआई के पूर्व निदेशकर जोगिंदर सिंह भी कह चुके हैं कि सीबीआई स्वतंत्र नहीं है और वो सरकार की शाखा के रूप में काम करती है। इतना ही नहीं, राज्यों में विरोधी पार्टी की सरकारों को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस पार्टी राज्यपालों का दुरुपयोग करने में हरेक नैतिक और संवैधानिक मानदंडों को लांघ जाती है। गोवा, झारखंड, बिहार, कर्नाटक का उदाहरण सबके सामने है।
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की सदस्यता वाली समिति सीवीसी यानी मुख्य सतर्कता आयु्क्त जैसे संवेदनशील पद पर एक भ्रष्ट अधिकारी की नियुक्ति करती है और सरकारी वकील कोर्ट में कहता है कि सरकार को उसके बैकग्राउंड के बारे में पता ही नहीं था। सरकार पर सीबीआई के दुरुपयोग के दर्जनों मामले सामने आए हैं। राजनीतिक समर्थन पाने के लिए सरकार सीबीआई का दुरुपयोग करती है या फिर राज्यों में विरोधी पार्टी की सरकार को परेशान करने के लिए सीबीआई का दुरुपयोग करती है। सीबीआई के पूर्व निदेशकर जोगिंदर सिंह भी कह चुके हैं कि सीबीआई स्वतंत्र नहीं है और वो सरकार की शाखा के रूप में काम करती है। इतना ही नहीं, राज्यों में विरोधी पार्टी की सरकारों को अस्थिर करने के लिए कांग्रेस पार्टी राज्यपालों का दुरुपयोग करने में हरेक नैतिक और संवैधानिक मानदंडों को लांघ जाती है। गोवा, झारखंड, बिहार, कर्नाटक का उदाहरण सबके सामने है।
जहां तक बात घोटालों की है तो कांग्रेस पार्टी और केंद्र की यूपीए सरकार ने यहां भी सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। यूपीए सरकार के नाम टूजी स्पेक्ट्रम घोटाला, आदर्श सोसाइटी घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला, आईपीएल घोटाला, चावल घोटाला, नरेगा घोटाला जैसे दर्जनों घोटाले दर्ज हैं। इन घोटालों का आकार इतना बड़ा है जितना बड़ा हमारा वार्षिक बजट। घोटाले अपनी जगह हैं मगर घोटालेबाजों को बचाने के लिए सरकार, खासतौर पर कांग्रेस के नेता जिस तरह के उटपटांग बयान दे रहे हैं, उसे लेकर सुप्रीमकोर्ट भी बार-बार सरकार को फटकार लगा रही है। मगर नेताजी है कि मानने का नाम नहीं ले रहे हैं।
सरकार के पास विफलताओं का भी पहाड़ है। सरकार ने गरीबी दूर करने के लिए मनरेगा(नरेगा) जैसी योजनाएं चलाई. मगर मनरेगा में भ्रष्टाचार ने उसकी हवा निकाल दी। महंगाई ने तो कोढ़ में खाज का काम किया। पिछले दो सालों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया महंगाई पर काबू पाने लेने के लगातार दावे करते रहे हैं और उनके दावे खोखले साबित हुए। प्रधानमंत्री के हालिया बयान ने तो महंगाई से त्रस्त जनता के घाव पर नमक का काम किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठा है, इसलिए महंगाई बढ़ी है। महंगाई के मोर्चे पर नाकाम सरकार ने आम आदमी को ठेंगा दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। पहले कांग्रेसी नेता ये कहते रहे हैं और अब प्रधानमंत्री भी ऐसा कह रहे हैं। प्रधानमंत्री यानी उस सरकार के मुखिया तो कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ का नारा देकर सत्ता में आई और आज उसी आम आदमी को ठेंगा दिखा रही है। यानी खेत खाय गदहा, पीटा जाय जोलहा। कहने का मतलब देश में लूट मची है और आम आदमी पिस रहा है।
आंकड़े कहते हैं कि पिछले छह सालों मनरेगा जैसी योजनाओं के बावजूद गरीबी के कारण आठ करोड़ वैसे लोग करीबी रेखा के नीचे आ गए जो पहले गरीब नहीं थे. विश्व बैंक के मुताबकि देश की अस्सी प्रतिशत आबादी हर रोज नब्बे रुपये से कम कमाती है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों पर बनी अर्जुन सेनगुप्ता कमिटि की रिपोर्ट के मुताबिक देश की अस्सी प्रतिशत आबादी हर रोज बीस रुपये से कम पर गुजारा करने के लिए मजबूर है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट भी मानती है कि करीब पचास प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने के लिए मजबूर हैं। चार साल पहले प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश में 21 प्रतिशत लोग गरीब हैं और गरीबी खत्म करने के लिए उन्हें पंद्रह साल का समय चाहिए। लेकिन आज पचास प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जी रहे हैं। ऐसे में महंगाई कम नहीं कर पाना और उटपटांग बयान देना वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है।
रही सही कसर, विदेशी बैंकों में जमा काले धन के मुद्दे ने निकाल दी। स्वीस बैंक एसोसिएशन की 2006 की रिपोर्ट के मुताबिक, स्वीस बैंक में भारतीय का 1500 बिलियन डॉलर कालाधन जमा है। हाल में ही ग्लोबल फाइनेंसियल इंटेग्रिटी ने रिपोर्ट दी है कि भारतीयों का करीब सत्तर लाख करोड़ रुपये विदेशों बैंकों में जमा है। ये धन कितना है ये धन भारत के बजट का सात गुना है। इस धन से भारत की दरिद्रता नष्ट हो जाएगी. गरीबी मिट जाएगी। भारत का कायाकल्प हो जाएगा। मगर, इन धन को वापस भारत लाने के लिए सरकार तैयार नहीं है। सरकार के रवैये पर सुप्रीमकोर्ट ने उसे जबरदस्त फटकार लगाई है। सुप्रीमकोर्ट की फटकार के बावजूद सरकार टालमटोल का रवैया अपनाए हुए है। सरकार के पास उन लोगों में से चंद के नाम हैं, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संघियों का हवाला देते हुए सरकार उन नामों का खुलासा नहीं कर रही है। साफ है कि संदेह की सुई सरकार पर उठ रही है। सरकार के खिलाफ अविश्वास का वातावरण बन रहा है। आरोप है कि कांग्रेस के बड़े नताओं का कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है इसलिए सरकार नामों का खुलासा नहीं कर रही है।
मगर अब जनता भी मानने वाली नहीं है। जनता के साथ सिविल सोसाइटी सड़कों उतर चुकी है और जनयुद्ध छेड़ने की घोषणा की है। एक तरफ कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है तो दूसरी तरफ सड़कों पर जन आंदोलन। कालाधन वापस लाने की मांग। भ्रष्टाचारियों को सरेआम लालकिले पर फांस पर चढ़ाने की मांग। उनकी संपत्ति जब्त कराने की मांग। सिविल सोसाइटी का बनाया हुआ लोकपाल विधेयक स्वीकारने की मांग। सीबीआई, सीवीसी को खत्म करने की मांग।
मिस्र में तीस साल पुरानी तानाशाही को खत्म करने के लिए करीब दस लाख लोग राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को देश से भागने का अल्टीमेटम दे रहे हैं। क्या भारत की त्रस्त जनता भी सरकार के खिलाफ ये कदम उठा सकती है। अगर उठा सकती है तो क्या होगा। कांग्रेस का वंशवाद कहां जाएगा।
वयोवृद्ध कांग्रेसी नेता जी वेंकट स्वामी खुल कर सामने आ गए हैं और सीधे सोनिया गांधी से कहा है कि अगर वो कांग्रेस को नहीं संभाल सकती है तो तुरंत अपने पद से इस्तीफा दें और दूसरों के लिए रास्ता खाली करें।
ताजा खबर है कि जी वेंकट स्वामी ने अपना बयान वापस लेने से साफ मना कर दिया है। कांग्रेस के आंध्रप्रदेश प्रभारी वीरप्पा मोइली ने उनसे इस संबंध में बात की लेकिन उन्होंने अपना बयान वापस लेने से इनकार कर दिया। स्वामी ने तो यहां तक कहा है कि आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी हर महीने कांग्रेस कोर कमिटी को पैसा पहुंचाते थे।
ताजा खबर है कि जी वेंकट स्वामी ने अपना बयान वापस लेने से साफ मना कर दिया है। कांग्रेस के आंध्रप्रदेश प्रभारी वीरप्पा मोइली ने उनसे इस संबंध में बात की लेकिन उन्होंने अपना बयान वापस लेने से इनकार कर दिया। स्वामी ने तो यहां तक कहा है कि आंध्र के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी हर महीने कांग्रेस कोर कमिटी को पैसा पहुंचाते थे।
दरअसल, ये आवाज चमचागिरी और चापलूसी से अलग एक पार्टी को बचाने की आवाज है। अगर देश की जनता उब गई तो समझ लीजिए मिस्र समंदर पार नहीं रह जाएगा।
सोनिया गांधी ना चाहकर भी ये समझने के लिए मजबूर हैं। क्योंकि वंशवादी सत्ता खत्म होने का डर जो है। इसी डर का परिणाम ये प्रवचन है। मगर गोस्वामी तुलसीदास ने कह रखा है-
पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
जे आचरहिं न पीड़ घनेरे।।
जे आचरहिं न पीड़ घनेरे।।
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