हिंदी शोध संसार

रविवार, 19 दिसंबर 2010

मुझे गर्व है कि मैं हिंदू हूं

मैं घोषणा करता हूं कि मैं एक हिंदू हूं, हिंदू इसलिए कि यह हमें स्वतंत्रता देता है, हम चाहें जैसे जिए. हम चाहें ईश्वर को माने या ना माने. मंदिर जाएं या नहीं जाएं, हम शैव्य बने या शाक्त या वैष्णव. हम चाहे गीता का माने या रामायण को, चाहे बुद्ध या महावीर या महात्मा गांधी मेरे आदर्श हों, चाहे मनु को माने या चार्वाक को. यही एक धर्म है जो एक राजा को बुद्ध बनने देता है, एक राजा को महावीर, एक बनिया को महात्मा, एक मछुआरा को वेदव्यास. मुझे अभिमान है इस बात का कि मैं हिंदू हूं. लेकिन साथ ही मैं घोषणा करता हूं कि मुस्लिम धर्म और ईसाई धर्म भी मेरे लिए उतने ही आदरणीय हैं जितना हिंदू धर्म. पैगम्बर मोहम्मद और ईसा मसीह मेरे लिए उतने पूज्य हैं जितने कि राम. लेकिन मैं फिर कहना चाहूंगा कि मैं हिंदू हूं, क्योंकि हिंदू धर्म मुझे इसकी इजाजत देता है. अच्छे मुसलमान और ईसाई से मैं उतना ही प्रेम करता हूं जितना एक अच्छे हिंदू से. लेकिन एक बूरे हिंदू से मैं उतना ही दूर रहना चाहूंगा, जितना एक बूरे मुसलमान और ईसाई से. हिंदू धर्म कम से कम मुझे यही सिखाता है. इस सीख, इस समझ के लिए मैं आजीवन हिंदू धर्म का आभारी रहूंगा.
मेरा मंतव्य साफ है कि न तो सभी हिंदू बूरे और न ही सभी मुसलमान और ईसाई ही. लेकिन हमारे देश के नब्बे प्रतिशत नेता सिर्फ बूरे की श्रेणी में ही नहीं, गद्दार की श्रेणी में भी आते हैं. वे राष्ट्र द्रोही हैं और सत्ता के लिए देश को बेचने के लिए भी तैयार हैं.
इन नेताओं में ज्यादातर कांग्रेस पार्टी, कम्युनिष्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, लोक जनशक्तिपार्टी और राजद के नेता शामिल हैं.
धर्म-निरपेक्षता के नाम पर ये लोग अपना वोट बैंक बनाने में लगे रहते हैं.
मुसलमानों को मुख्यधारा की शिक्षा में शामिल नहीं कर उनके मदरसों के लिए फंड जारी करते हैं. वे नहीं चाहते हैं कि वे मुख्य धारा की शिक्षा में शामिल हों और देश का नागरिक बने. वे चाहते हैं कि वे सिर्फ उनका वोटबैंक बने रहें.
मुसलमानों को एक आम भारतीय नहीं मानकर, उनके लिए धर्म के आधार पर विशेष पैकेज जारी करते हैं.

  ये लेख एक प्रतिक्रिया में लिखी थी.
मैं सर्वश्रेष्ठ रहकर भी किसी को अपने से नीचा नहीं देखना चाहता हूं.
हिंदू धर्म सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन ना तो मुस्लिम ना तो ईसाई धर्म इससे कमतर है.
हिंदू धर्म ने हमें यहीं श्रेष्ठता सिखलाई है.
जहां तक मैं हिंदू धर्म को समझ सका हूं, जान सका हूं.
मैं कोई, ज्ञानी-ध्यानी, तपस्वी-योगी नहीं हूं.
तब भी मैं दावा कर सकता हूं कि मैं हिंदू धर्म के मर्म को समझता हूं.
अच्छी तरह समझता हूं.
तुलसी की झाड़ स्वास्थ्यवर्द्धक है, तो किसी ने इसे धर्म से जोड़कर पूजनीय बना है.
न्याय के खिलाफ आवाज उठाना सही है तो कृष्ण ने पार्थ से कहा यही तुम्हारा धर्म है.
मैं गंदे नाली को साफ कर रहा था तो एक बुढिया ने कहा, बेटा, तुम धर्म का काम कर रहे हो.
एक हिंदू के रूप में मैं ग्लानि से भर जाता हूं जब कोई हिंदू किसी धर्म या उसके धर्माबलंवियों को गाली देता है या किसी अन्य धर्म को नीच दिखाने की कोशिश करता है.
क्योंकि ऐसा करना हिंदू धर्म को ही अपना करना है.
भारत में जब एक ओर संतोषं परमं सुखम का मंत्र पढ़ा जा रहा था तो चार्वाक ने कहा-
यावत जीवेत, सुखम जीवेत, ऋणम कृत्वा घृतम पिबेत.
और इस घोर भौतिकतावादी विचारधारा के प्रणेता चार्वाक को हमने ऋषि से सम्मानित किया.
चार वेद लिखे, काम नहीं चला, अठारह पुराण लिख लिए, काम नहीं चला, एक सौ आठ उपनिषद लिख लिए काम नहीं चला. स्मृतियां लिखी, रामायण लिखे, महाभारत लिखे, गीता लिखे, इनमें कौन है हिंदुओं का धर्मग्रंथ. सभी हैं और भी लिखते जाओ सबको शामिल कर लेंगे.
बाइबिल और कुरान को भी उतना ही सम्मान देंगे जितना गीता और रामायण को.
कौन को हिंदुओं के इष्टदेव, सुना था, हिंदुओं के पनपन करोड़ देवता हैं, अब बढ़कर एक बीस करोड़ के करीब हो गए हैं. पैगंबर और ईशुमसीह को भी इसमें शामिल कर लो, कोई बुराई नहीं.
कभी सप्तर्षि हुए, आज आचार्यों और ऋषियों की श्रृंखला काफी बड़ी हो गई है. अनगिनत हैं.
कितना विशाल है हिंदुधर्म.
इसलिए मेरे हिंदू होने पर मुझे गर्व है.
एक हिंदू के रूप में मुझे मुझे राम की स्तुति और राम की आलोचना दोनों सुनने की ताकत है.
सबसे बड़ी ताकत रामपर सवाल उठाने और चर्चा करने की मेरी स्वतंत्रता है.
यही वजह है कि मैं हिंदू धर्म को श्रेष्ठ मानता हूं, साथ ये भी कहता हूं कि और कोई दूसरा धर्म इससे हीन या कमतर नहीं है. श्रेष्ठ बनकर सबको श्रेष्ठ देखने की अभिलाषा हीं हिंदुत्व है.
हिंदूधर्म ने भगवान बुद्ध और महावीर को भी विष्णु का अवतार माना.
हर मत हर संप्रदाय को स्वीकारा, जो जिस रूप में आया, उसी रूप में.
यही मेरा हिंदुत्व है और इसलिए मैं हिंदू हूं. और मुझे अपने हिंदू होने का गौरव है.

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