हिंदी शोध संसार

सोमवार, 3 मई 2010

"मेरी जंग पेट्रो-डॉलर इस्लाम के खिलाफ है"

  • कोई भी धर्म सबसे बड़ा या ऊंचा नहीं है
  • गैर-धर्म को मानने वाले लोग नर्क नहीं जाएंगे
  • इस्लाम कोई नया धर्म नहीं है
  • इस्लाम में वही बातें हैं, जो पहले विभिन्न धर्मों में कही गई थीं
  • पूरी दुनिया में इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना का लक्ष्य पेट्रो-डॉलर और प्रेमियों और जेहादियों का है, इस्लाम का नहीं.
मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना. अगर मजहब आपस में बैर रखना नहीं सिखाता है तो क्या सिखाता है. निस्संदेह आपस में प्रेम03052010404 03052010405 करना और सह-अस्तित्व सिखता है. लेकिन कई धर्मभीरू लोग सोचते हैं कि मेरा धर्म सबसे ऊंचा है और जो लोग इस धर्म को नहीं मानते हैं वो नर्क जाएंगे. ऐसे लोग अन्य धर्मावलंबियों को अपने धर्म के दायरे में लाना अपना धार्मिक कतर्व्य समझते हैं. ऐसे लोगों को लगता है कि ऐसा करने से उनका भगवान उन्हें स्वर्ग प्रदान करेगा.
दरअसल धार्मिक सर्वोत्कृष्टता का ये सिद्धांत ही दुनिया की अस्थिरता की वजह है. धार्मिक सर्वोत्कृष्टता की मानसिकता इस्लाम धर्म के अनुयायियों के बीच फैलायी गई है. इस सिद्धांत को फैलाने के लिए अरब देशों के पेट्रो-डॉलर का इस्तेमाल किया गया है. इस्लाम का ये नया रूप पेट्रो-डॉलर इस्लाम के नाम से जाना जाता है. इस नए इस्लाम के संस्थापकों और अनुयायियों ने पूरी दुनिया में नव प्रकल्पित इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना के लिए बीड़ा उठा रखा है. वो आतंक के जरिए पूरी दुनिया में इस्लाम फैलाना चाहते हैं.
नव प्रकल्पित पेट्रो-डॉलर इस्लाम मूल इस्लाम के लिए खतरनाक है. यह बहु-पंथवादी, धर्मनिरपेक्षतावादी समाज के लिए खतरनाक है. यह इस्लाम, धर्म को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मामला नहीं रहने देता है, बल्कि यह धर्म को इंसान के ऊपर थोपता है, यही वजह है कि इसने मूल इस्लाम को बदनाम कर रखा है. इसलिए मूल इस्लाम के अनुयायी इस नव प्रकल्पित इस्लाम का विरोध कर रहे हैं. नव प्रकल्पित इस्लाम का विरोध करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन उनकी आवाज को दबाने की हर संभव कोशिश की जाती रही है. लेकिन कुछ आवाज हैं, जो तमाम झंझावातों के बावजूद मुखर होकर निकल रही हैं-
उन्हीं आवाजों में से एक आवाज है- सुल्तान शाहीन की.
सुल्तान शाहीन दिल्ली में रहते हैं. अपनी वेबसाइट www.newageislam.com के जरिए शाहीन जेहादियों और पेट्रो-डॉलर नव इस्लाम के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं. शाहीन की जंग न सिर्फ तालिबान और उनके समर्थकों के खिलाफ है बल्कि उन इस्लामिक सर्वोच्चतावादियों के खिलाफ भी है, जो दावा करते हैं कि इस्लाम ही एक मात्र धर्म है, जो स्वर्ग तक पहुंचा सकता है. एक तरफ शाहीन जहां कट्टरवाद और सर्वोच्चतावाद के खिलाप जंग लड़ रहे हैं, वहीं, वो सहिष्णु, बहुपंथवादी इस्लाम के प्रति लोगों का रूझान बढ़ा रहे हैं.
शाहीन की वेबसाइट के पाठकों की संख्या लाखों में है. एक लाख सत्रह हजार तो केवल सब्सक्राइबर हैं(सब्सक्रिप्सन मुफ्त है). शाहीन के लेखों को पढ़ने वालों में भारतीय भी हैं और आस्ट्रेलियाई भी. अरब भी है और अमेरिकी भी. मुंबई के डॉ जाकिर नाइक इस्लाम को सबसे ऊंचा धर्म मानते हैं और उसे स्थापित करने की कोशिश भी करते हैं, यही वजह है कि वो शाहीन के आलोचक हैं. लेकिन इस्लामिक विद्वान नियाज फतेहपुरी शाहीन के विश्लेषण के कायल हैं.
शाहीन का जन्म बिहार के औरंगाबाद में हुआ. वे एक मौलवी के पुत्र हैं. इनका बचपन बहुत ही मुश्किलों में बीता. कम उम्र में ही पिता चल बसे. पांच भाई-बहनों की जिम्मेदारी शाहीन के कंधों पर आ पड़ी. पटना कॉलेज में पढ़ाई करते वक्त उन्होंने एक स्थानीय उर्दू दैनिक में पार्ट-टाइम काम करना शुरू कर दिया. भारतीय मूल के आरिफ अली की साप्ताहिक पत्रिका एशिया टाइम्स के संपादन के लिए वे लंदन गए. एक दशक के लंदन प्रवास के दौरान उन्हें इस्लाम और मुसलमानों की सच्चाई के बारे में उन्हें पता चला. उन्होंने वहां एक युवक से सुना, जो मुसलमान अहले हदीस को नहीं मानते हैं, उनकी हत्या कर दी जानी चाहिए. इस युवक की बात ने उन्हें परेशान कर दिया. इस युवक का संबंध अल मुजाहिद्दीन और हिजबुल तहरीर जैसे कट्टपंथी संगठनों से था. ओमर बकरी ने वहां के हजारों मुस्लिम युवकों का ब्रेनवाश किया. शाहीन को चिंता सता रही थी कि ये कट्टपंथ भारतीय उपमहाद्वीप तक न पहुंच जाए और भारतीय युवकों को अपना ग्रास न बना लें.
जब वे भारत में आए तब उन्हें भारत में भी कट्टपंथ उस कट्टरपंथ का सामना करना पड़ा यानी वो कट्टरपंथ भारत में भी पैर जमा चुका है. नब्बे के दशक में शाहीन दिल्ली में एक पत्रिका का संपादन का काम संभाल रहे थे. ये पत्रिका कथित तौर पर प्रभावशाली, शिक्षित और प्रतिभाशाली लोगों की थी. शाहीन ने पत्रिका के संपादन का काम कुछ महीने पहले ही संभाला था कि प्रबंधक मंडल के एक सदस्य ने पूछा- तुम ने एक दशक पहले एक हिंदू लड़की से शादी की थी, तुमने उसे अभी तक मुसलमान क्यों नहीं बनाया. शाहीन ने कुरान की एक आयत का जिक्र करते हुए कहा कि
धर्म मजबूरी या जोर-जबरदस्ती की चीज नहीं है और इस्लाम धर्म स्वीकारना या नहीं स्वीकारना उसका निजी मसला है
. बात इतनी सी थी और शाहीन को नौकरी से निकाल दिया गया. नौकरी जाने से वे सदमे में आ गए. सबसे बड़ा सदमा तो उन्हें इस बात का लगा कि जिन लोगों ने उनके साथ ये दुर्व्यवहार किया वे भारतीय मुस्लिम समुदाय के मक्खन(क्रीम) समझे जाते हैं.
नौकरी जाने के बाद शाहीन स्वतंत्र पत्रकारिता करने लगे. अपने लेखों में उन्होंने कट्टपंथी मानसिकता का खुलकर विरोध किया, जिसे बहुपंथवादी-बहुसांस्कृतिक भारतीय समाज और भारतीय इस्लाम को खतरा है. यही वजह थी कि संघ परिवार और भाजपा के कई नेताओं ने उन्हें मुस्लिम समाज तक पहुंचने का उचित रास्ता समझा, लेकिन शाहीन का कहना है कि बहुत से मुसलमान ही उनसे घृणा करते हैं. इसलिए वे उस समाज तक पहुंचने का सही रास्ता नहीं बन सकते. ये लोग शाहीन को काफिर और पाखंडी तक कहते हैं.
अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए उन्होंने अंतर्जाल को अपना माध्यम बनाया, जिसने कई कठमुल्लाओं को चिढ़ा दिया. कई बार तो इनकी वेबसाइट को हैक कर लिया गया, लेकिन अब शाहीन ने अपना काम जारी रखा है. आज उनकी साइट सुपरहिट है.
शाहीन का कहना है कि

आदम, मोसा और मोहम्मद साहब की तरह राम और कृष्ण भी उनके लिए पैगंबर हैं और हजरत मोहम्मद की तरह हजरत राम और हजरत कृष्ण कहने में उन्हें कोई परहेज नहीं है.

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