राष्ट्रीय अस्मिता के सवाल
ऑल इंडिया क्रिश्चियन फेडरेशन यानी अखिल भारतीय ईसाई महासंघ ने दलित ईसाईयों को अनुसूचित जाति यानी ओबीसी का दर्जा दिए जाने की मांग की है. इस संबंध में फेडरेशन ने सुप्रीमकोर्ट में एक याचिका दायर की है. इस याचिका के आधार पर सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार, आंध्रप्रदेश सरकार और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने याचिका में पक्षकार बनाए गए सामाजिक न्याय मंत्रालय और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से भी जवाब मांगा है.
याचिका में भारतीय संविधान के अनुसूचित जाति आदेश- 1950 को असंवैधानिक घोषित कर इसे रद्द किए जाने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि इस आदेश में हिंदू दलितों और अन्य धर्मों(इस्लाम और ईसाई) के दलितों में भेदभाव किया गया है.
आरक्षण के विरोध में कर्णधार
खबर इतनी ही है-
लेकिन खबर बहुत बड़ी है. ये खबर बहुत से सवाल खड़े करती है. मसलन-
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ईसाई और इस्लाम में दलितों की कोई अवधारणा नहीं है, तो ये दलित आए कहां से?
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क्या इस्लाम और ईसाई में भी दलित की अवधारणा बनाकर जातिभेद और वर्गभेद पैदा करने की कोशिश तो नहीं की जा रही है?
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याचिका में धर्मांतरित दलितों की बात कही गई है. यानी वैसे दलित जो हिंदू से अपना धर्म बदलकर इस्लाम या ईसाई धर्म ग्रहण किया?
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तो क्या, इन लोगों ने धर्म परिवर्तन इसलिए किया कि उन्हें वहां जाकर दलित रहना पड़ेगा?
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क्या इन्होंने इस लिए धर्म परिवर्तन किया कि वहां भी उन्हें अछूत का भेदभाव सहना पड़ेगा?
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शायद नहीं, दलितों को धर्म बदलवाते वक्त ये प्रलोभन दिया गया कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा. उनकी सामाजिक और आर्थिक समस्या मिट जाएगी.
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आखिर धर्मांतरण करने वालों और कराने वालों से क्यों नहीं पूछा जाता है कि उनकी सामाजिक और आर्थिक समस्या क्यों नहीं मिटी, उनकी हालत क्यों बदतर है?
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अगर उनकी समस्या मिट गई है तो क्यों उनके लिए आरक्षण की मांग की जा रही है?
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क्यों उन्हें फिर से दलित बनाया जा रहा है?
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आखिर हिंदू दलितों के आरक्षण में सेंध लगाने की कोशिश क्यों की जा रही है?
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क्या धर्मांतरण को बढ़ावा देने के लिए ऐसा नहीं किया जा रहा है?
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अगर, हां तो देश में धर्मांतरण को बढ़ावा देने की इजाजत किसी को क्यों दी जानी चाहिए?
संविधान में आरक्षण की व्यवस्था एकमात्र वजह से की गई. वो थी, दलितों से साथ सदियों से हुआ अन्याय. आजादी के बाद इन लोगों के साथ हुए अन्याय के बदले इन्हें आरक्षण देने की व्यवस्था की गई.
लेकिन,
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जिन लोगों ने इस अन्याय का विद्रोह करते हुए अपना धर्म बदल लिया. वो कैसे दलित रह रहे.
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और उन्हें आरक्षण का लाभ क्यों लिया जाना चाहिए(जैसा कि ऑल इंडिया क्रिश्चियन फेडरेशन कह रहा है?
इन लोगों को आरक्षण देने का मतलब धर्मांतरण को बढ़ावा देना है.
सुप्रीमकोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किया है. जैसा कि सरकार रंगनाथ मिश्रा कमिटी की रिपोर्ट लाकर अपनी मंशा जता दी है तो वो इन दलितों को भी आरक्षण देने के पक्ष में है. यानी सीधे सादे शब्दों में, कांग्रेस धर्मांतरण को बढ़ावा देना चाहती है. इसलिए वह कोर्ट के सवाल का जवाब रंगनाथ मिश्रा समिति की रिपोर्ट के आधार पर देगी.
कांग्रेस का तर्क ये भी है कि इन लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाएगा. तो सवाल उठता है कि सरकार ने आधार आर्थिक आधार पर समाज के दो वर्गों(गरीब और अमीर) का पता लगाने की कोशिश क्यों नहीं की. अगर सरकार आर्थिक आधार पर समाज के पिछड़े वर्गों का पता लगाना चाहेगी तो कहीं से कोई समाज विभाजन की स्थिति पैदा नहीं होगी. लेकिन सरकार का मकसद समाज को टुकड़ों में तोड़ने की है और धर्मांतरण को बढ़ावा देने का है इसलिए वह आर्थिक आधार पर धर्मांतरित ईसाईयों और मुसलमानों को आरक्षण दिलाने की मांग का समर्थन करेगी.
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अगर आर्थिक आधार पर आरक्षण देना है तो हिंदू सवर्णों को आरक्षण क्यों नहीं दिया जाए.
ये कोई नई बात नहीं है. आंध्रप्रदेश में कांग्रेस की वाईएसआर सरकार ने मुसलमानों को चार प्रतिशत आरक्षण दे भी चुकी है.
प्रयास की गंभीरता सिर्फ घोषणा से ही नहीं आंकी जा सकती और इसकी सार्थकता तो तब है जब जरूरतमंदों तक इसका लाभ पहुंचे !!
जवाब देंहटाएंएक ही काम इस देश के लोगों को अच्छा लगता है वह है गुलामी और फूट. जितना तोड़ सके तोडिये, फूट डालिये और मजे करिये.
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारोत्तेजक लेख है. लेकिन क्या करे भाई हिन्दू तो @#$#@ थे ,है और रहेंगे .कोई भी जब चाहे हमारी तशरीफ़ पर लात मारे हम सहलायेंगे और फिर से गलबहियां करेंगे.
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