जीवन विद्या का 14वां राष्ट्रीय सम्मेलन हैदराबाद में सम्पन्न
डॉ देवकुमार पुखराज
अमरकंटक से आरंभ हुआ जीवनविद्या का कारवां दक्षिण भारत तक पहुंच गया है. अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में इसका एक विहंगम नजारा हैदराबाद में देखने को मिला. जहां जीवन विद्या से जुड़े देशभर के २३ केन्द्रों से लगभग २५० लोग एकत्र हुए. दक्षिण भारत में जीवन विद्या का ये पहला और 14 वां राष्ट्रीय अधिवेशन था. हैदराबाद से सटे तुपरान कसबे के अभ्यासा स्कूल में आयोजित यह सम्मेलन कई मामलों में दूसरे सम्मेलनों से भिन्न रहा. आजकल के सम्मेलनों के उलट न तो इसके प्रचार-प्रसार के लिए बैनर- पोस्टर लगे थे और नहीं कहीं होर्डिंग्स.यहां तक की मीडिया वालों को भी आमंत्रण नहीं था. शायद यहीं इस अभियान की खासियत भी है .इसके शिल्पी प्रचार-प्रसिद्धी से दूर रहते हुए शिक्षा के जरिये जन मानस में समझदारी विकसित करने के काम में तन्मयता से जुटे हैं. सम्मेलन में वे लोग हीं अपेक्षित थे जो जीवनविद्या के प्रबोधन, लोकव्यापीकरण और प्रचार में लगे हैं. ऐसे हीं तकरीबन ढाई सौ लोग तुपरान में जुटे जिसमें दक्षिण भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों के प्रतिभागी भी थे. जीवन विद्या के प्रणेता बाबा ए नागराज पूरे चार दिनों तक यहां रहे और प्रतिभागियों का मार्गदर्शन किया.
पहले दिन उदघाटन सत्र में बाबा नागराज ने अनुसन्धान की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर मानव ज्ञानी, विज्ञानी और अज्ञानी के रूप में है. मानव ने जाने- अनजाने पृथ्वी को ना रहने लायक बना दिया है. पृथ्वी को रहने योग्य बनाना ही इस अनुसन्धान का उद्देश है. धरती पर उष्मा बढने के कारण ही धरती बीमार होती जा रही है. इस पर शोध अनुसन्धान जरुरी है. इसके लिए मानव को न्याय पूर्वक जीना होगा और स्वयं में समझ कर जीना होगा, यही समस्याओं का समाधान है. उत्पादन कार्य में संतुलन और संवेदनाओं में नियंत्रण से ही अपराध में अंकुश लग सकता है. प्रयोजन के सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता हर मानव के पास हैं. इसके आधार पर हर मानव समझदार हो सकता है और व्यवस्था में जी सकता है. उन्होंने नर-नारी में समानता और गरीबी-अमीरी में संतुलन पर जोर दिया. इसी दिन दुसरे सत्र में मुंबई, भोपाल, इंदौर और पुणे के प्रतिनिधियो ने जीवन विद्या आधारित अभियान की समीक्षा और भावी दिशा पर विचार व्यक्त किये. मुंबई से आये डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने मुंबई में जीवन विद्या की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि मुम्बई के सोमैया विद्या विहार के विभिन्न कालेजों में शिक्षको छात्रों के बीच शिविर आयोजित हो रहे हैं. ऐसे ६०० शिक्षकों के २४ छः दिवसीय शिविर विगत दो वर्षों में संपन्न हुए हैं तथा मुंबई विश्वविद्यालय के एक पाठ्यक्रम में जीवन विद्या की एक यूनिट शामिल की गई है. मुंबई के आसपास के शहरों में भी परिचय शिविर आयोजित किये जा रहे है. भोपाल से आई श्रीमती आतिषी ने मानवस्थली केंद्र की गतिविधियों से प्रतिनिधियों को अवगत कराया. इंदौर के श्री अजय दाहिमा और पुणे के श्रीराम नर्सिम्हम ने अपने इलाके में चल रही गतिविधियों की जानकारी दी. यह भी बताया गया कि उत्तरप्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय ने अपने सभी ५१२ कालेजो में 'वेल्यु एजूकेशन एंड प्रोफेशनल एथिक्स' जीवन विद्या आधारित फाउनडेशन कोर्से लागु किया है जिसकी टेक्स्ट बुक भी छप गई है. और विद्यार्थियों के लिए वेबसाईट बनाकर भी पाठ्य सामग्री उपलब्ध करा दी गई है. अगले सत्र में रायपुर, ग्वालियर, बस्तर, दिल्ली, बांदा, चित्रकूट आदि केंद्र ने अपनी प्रगति से अवगत कराया. रायपुर से आये श्री अंजनी भाई ने बताया की अभ्युदय संस्थान में छत्तीसगड़ राज्य के १०० शिक्षको का छः महीने का अध्ययन शिविर चल रहा है ये शिक्षक २० दिन प्रशिक्षण लेते है और १० दिन अपने-अपने क्षेत्रों में शिविर लेते हैं. राज्य में दस हजार से भी ज्यादा शिक्षको के शिविर हो चुके है. गत २९ सितम्बर को राज्य के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने अभ्भुदय संस्थान का अवलोकन किया और पूज्य बाबा नागराज जी से अभियान पर चर्चा की. वहां उन्होंने प्रशिक्षण ले रहे शिक्षको को संबोधित किया तथा प्रशिक्षण के दौरान हुए उनके अनुभवों को भी सुना. मुख्यमंत्री रमन सिंह ने घोषणा कर दी कि राज्य के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस आधिकारियो को भी एक हफ्ते के प्रशिक्षण के लिए अभ्भुदय संस्थान भेजा जायेगा.
दूसरे दिन मानवीय शिक्षा संस्कार व्यवस्था, लोक शिक्षा योजना, शिक्षा संस्कार योजना पर बाबा नागराज जी विचार रखे .उन्होंने कहा कि हर आदमी हर आयु में समझदार होने की क्षमता रखता है. वर्त्तमान प्रणाली में पैसा बनाना ही समझदारी मान लिया गया है. मानव चेतना को सही तरीके से ना पहचाने के कारण यह गलती हुई हैं. इसके लिए उन्होंने मध्यस्थ दर्शन के आलोक में निकाले गए निष्कर्षों के बारे में बताया. इसमें मानव व्यवहार दर्शन, मानव कर्म दर्शन, अभ्यास दर्शन और अनुभव दर्शन की व्याख्या की. साथ साथ उन्होंने कहा कि चारों अवस्थाओं में संतुलन से जीने की समझ ही विचार है . यहाँ पर उन्होंने भोगोन्मादी समाजशास्त्र की जगह व्यवहारवादी समाजशात्र, लाभोंमादी अर्थशास्त्र की जगह पर आवर्तनशील अर्थशास्त्र और कमोंमादी मनोविज्ञान के स्थान पर संचेतनावादी मनोविज्ञान को, शिक्षा की वस्तु बनाये जाने की आवश्यकता को निरुपित किया. दूसरे दिन ही बिजनौर, कानपुर, जयपुर, हैदराबाद, बंगलोर, चेन्नै, कोचीन, हरिद्वार आदि केन्द्रों के प्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्रो में चल रही गतिविधियों से वृत प्रस्तुत किया. इसी दिन एक सत्र श्री साधन भट्टाचार्य जी के संयोजकत्व में परिवार
पहले दिन उदघाटन सत्र में बाबा नागराज ने अनुसन्धान की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर मानव ज्ञानी, विज्ञानी और अज्ञानी के रूप में है. मानव ने जाने- अनजाने पृथ्वी को ना रहने लायक बना दिया है. पृथ्वी को रहने योग्य बनाना ही इस अनुसन्धान का उद्देश है. धरती पर उष्मा बढने के कारण ही धरती बीमार होती जा रही है. इस पर शोध अनुसन्धान जरुरी है. इसके लिए मानव को न्याय पूर्वक जीना होगा और स्वयं में समझ कर जीना होगा, यही समस्याओं का समाधान है. उत्पादन कार्य में संतुलन और संवेदनाओं में नियंत्रण से ही अपराध में अंकुश लग सकता है. प्रयोजन के सम्बन्ध में उन्होंने कहा कि कल्पनाशीलता और कर्म स्वतंत्रता हर मानव के पास हैं. इसके आधार पर हर मानव समझदार हो सकता है और व्यवस्था में जी सकता है. उन्होंने नर-नारी में समानता और गरीबी-अमीरी में संतुलन पर जोर दिया. इसी दिन दुसरे सत्र में मुंबई, भोपाल, इंदौर और पुणे के प्रतिनिधियो ने जीवन विद्या आधारित अभियान की समीक्षा और भावी दिशा पर विचार व्यक्त किये. मुंबई से आये डॉ. सुरेन्द्र पाठक ने मुंबई में जीवन विद्या की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि मुम्बई के सोमैया विद्या विहार के विभिन्न कालेजों में शिक्षको छात्रों के बीच शिविर आयोजित हो रहे हैं. ऐसे ६०० शिक्षकों के २४ छः दिवसीय शिविर विगत दो वर्षों में संपन्न हुए हैं तथा मुंबई विश्वविद्यालय के एक पाठ्यक्रम में जीवन विद्या की एक यूनिट शामिल की गई है. मुंबई के आसपास के शहरों में भी परिचय शिविर आयोजित किये जा रहे है. भोपाल से आई श्रीमती आतिषी ने मानवस्थली केंद्र की गतिविधियों से प्रतिनिधियों को अवगत कराया. इंदौर के श्री अजय दाहिमा और पुणे के श्रीराम नर्सिम्हम ने अपने इलाके में चल रही गतिविधियों की जानकारी दी. यह भी बताया गया कि उत्तरप्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय ने अपने सभी ५१२ कालेजो में 'वेल्यु एजूकेशन एंड प्रोफेशनल एथिक्स' जीवन विद्या आधारित फाउनडेशन कोर्से लागु किया है जिसकी टेक्स्ट बुक भी छप गई है. और विद्यार्थियों के लिए वेबसाईट बनाकर भी पाठ्य सामग्री उपलब्ध करा दी गई है. अगले सत्र में रायपुर, ग्वालियर, बस्तर, दिल्ली, बांदा, चित्रकूट आदि केंद्र ने अपनी प्रगति से अवगत कराया. रायपुर से आये श्री अंजनी भाई ने बताया की अभ्युदय संस्थान में छत्तीसगड़ राज्य के १०० शिक्षको का छः महीने का अध्ययन शिविर चल रहा है ये शिक्षक २० दिन प्रशिक्षण लेते है और १० दिन अपने-अपने क्षेत्रों में शिविर लेते हैं. राज्य में दस हजार से भी ज्यादा शिक्षको के शिविर हो चुके है. गत २९ सितम्बर को राज्य के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह ने अभ्भुदय संस्थान का अवलोकन किया और पूज्य बाबा नागराज जी से अभियान पर चर्चा की. वहां उन्होंने प्रशिक्षण ले रहे शिक्षको को संबोधित किया तथा प्रशिक्षण के दौरान हुए उनके अनुभवों को भी सुना. मुख्यमंत्री रमन सिंह ने घोषणा कर दी कि राज्य के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस आधिकारियो को भी एक हफ्ते के प्रशिक्षण के लिए अभ्भुदय संस्थान भेजा जायेगा.
दूसरे दिन मानवीय शिक्षा संस्कार व्यवस्था, लोक शिक्षा योजना, शिक्षा संस्कार योजना पर बाबा नागराज जी विचार रखे .उन्होंने कहा कि हर आदमी हर आयु में समझदार होने की क्षमता रखता है. वर्त्तमान प्रणाली में पैसा बनाना ही समझदारी मान लिया गया है. मानव चेतना को सही तरीके से ना पहचाने के कारण यह गलती हुई हैं. इसके लिए उन्होंने मध्यस्थ दर्शन के आलोक में निकाले गए निष्कर्षों के बारे में बताया. इसमें मानव व्यवहार दर्शन, मानव कर्म दर्शन, अभ्यास दर्शन और अनुभव दर्शन की व्याख्या की. साथ साथ उन्होंने कहा कि चारों अवस्थाओं में संतुलन से जीने की समझ ही विचार है . यहाँ पर उन्होंने भोगोन्मादी समाजशास्त्र की जगह व्यवहारवादी समाजशात्र, लाभोंमादी अर्थशास्त्र की जगह पर आवर्तनशील अर्थशास्त्र और कमोंमादी मनोविज्ञान के स्थान पर संचेतनावादी मनोविज्ञान को, शिक्षा की वस्तु बनाये जाने की आवश्यकता को निरुपित किया. दूसरे दिन ही बिजनौर, कानपुर, जयपुर, हैदराबाद, बंगलोर, चेन्नै, कोचीन, हरिद्वार आदि केन्द्रों के प्रतिनिधियों ने अपने क्षेत्रो में चल रही गतिविधियों से वृत प्रस्तुत किया. इसी दिन एक सत्र श्री साधन भट्टाचार्य जी के संयोजकत्व में परिवार
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मूलक स्वराज व्यवस्था पर हुआ जिसमें प्रवीण सिंह, अजय दायमा, डॉ. प्रदीप रामचराल्ला ने विचार रखे . दूसरा सत्र डॉ. नव ज्योति सिंह के संयोजकत्व में शोध, अनुसन्धान, अवर्तानशील कृषि पर हुआ जिसमें बांदा के श्री प्रेम सिंह, आइआइआइटी के शोधार्थी हर्ष सत्या, मृदु आदि ने अपने विचार व्यक्त किये.
तीसरे दिन बाबा नागराज जी ने कहा कि अस्तित्व में व्यापक वस्तु ही ऊर्जा हैं. पदार्थावस्था में भौतिक-रासायनिक
क्रियायें ऊर्जा सम्पनता के कारण से हैं. ज्ञान सम्पनता होना ही सहस्तित्व में जीना है. अभी तक आहार, आवास, अलंकार, दूरगमन, दूरदर्शन, दूरश्रवण पर हीं अध्ययन हुआ है. सहस्तित्व को पकडा नहीं है, इसलिए मानव का अध्ययन नहीं हुआ. सहस्तित्व को समझने और उस में जीने से एकरूपता बनती है. बाबा कहते गये,जीवन एक गठन
पूर्ण परमाणु है, उसमे दस क्रियाएँ होती हैं. अभी तक मनुष्य साढ़े चार क्रियाओं पर हीं जीता रहा है. इसी से व्यक्तिवाद और समुदायवाद का जन्म हुआ. और इसी से संघर्ष और शोषण युद्ध होता है. उन्होंने कहा कि मानवीय समस्यओं का समाधान सहस्तित्व विधि से ही होगा. सहस्तित्व का ज्ञान होना ही लक्ष्य है. इसका ज्ञान हमें जीवन का अध्ययन , मानवीय आचरण का अध्ययन और अस्तित्व के अध्ययन से ही पूरा होगा. बाबा ने समझ के रूप में शरीर पोषण-संरक्षण के लिए आहार, आवास, अलंकार, दूरगमन, दूरदर्शन, दूरश्रवण छह आकांक्षाओं को बताया है.
तीसरे दिन बाबा नागराज जी ने कहा कि अस्तित्व में व्यापक वस्तु ही ऊर्जा हैं. पदार्थावस्था में भौतिक-रासायनिक
क्रियायें ऊर्जा सम्पनता के कारण से हैं. ज्ञान सम्पनता होना ही सहस्तित्व में जीना है. अभी तक आहार, आवास, अलंकार, दूरगमन, दूरदर्शन, दूरश्रवण पर हीं अध्ययन हुआ है. सहस्तित्व को पकडा नहीं है, इसलिए मानव का अध्ययन नहीं हुआ. सहस्तित्व को समझने और उस में जीने से एकरूपता बनती है. बाबा कहते गये,जीवन एक गठन
पूर्ण परमाणु है, उसमे दस क्रियाएँ होती हैं. अभी तक मनुष्य साढ़े चार क्रियाओं पर हीं जीता रहा है. इसी से व्यक्तिवाद और समुदायवाद का जन्म हुआ. और इसी से संघर्ष और शोषण युद्ध होता है. उन्होंने कहा कि मानवीय समस्यओं का समाधान सहस्तित्व विधि से ही होगा. सहस्तित्व का ज्ञान होना ही लक्ष्य है. इसका ज्ञान हमें जीवन का अध्ययन , मानवीय आचरण का अध्ययन और अस्तित्व के अध्ययन से ही पूरा होगा. बाबा ने समझ के रूप में शरीर पोषण-संरक्षण के लिए आहार, आवास, अलंकार, दूरगमन, दूरदर्शन, दूरश्रवण छह आकांक्षाओं को बताया है.
जीवन के सम्बन्ध में न्याय, धर्म, सत्य को समझना जरुरी है. प्रकृति के संबंध में नियम, नियंत्रण, संतुलन के रूप में जीना समझना जरुरी है. सार रूप में सार्वाभोम व्यवस्था के लिए प्रकृति की चारों अवस्थाओं में सहस्तित्व, परस्पर पूरकता और संतुलन को समझना जरुरी है. इसी दिन के एक सत्र में श्री रणसिंह आर्य ने जन अभियान के सन्दर्भ में समाधान के लिए प्रयास पर अपने विचार व्यक्त किये. एक अन्य सत्र में आईआईआईटी ,हैदराबाद के निदेशक डॉ. राजीव सांगल, श्री सोम देव त्यागी, मृदु , सुनीता पाठक, भानुप्रताप आदि ने लोक शिक्षा और शिक्षा संस्कार व्यवस्था पर चर्चा को आगे बढाया. श्री सोम देव त्यागी ने रायपुर में हो रहे प्रयोगों पर विस्तार से प्रकाश डाला.
चौथे दिन सार्वभोम व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त करते बाबा नागराज ने कहा कि अध्ययन पूर्वक न्याय और व्यवस्था को समझा जा सकता है. और समझकर प्रमाणित किया जा सकता हैं. सार्वभोम व्यवस्था की समझ से ही मानव, जीव चेतना से मानव चेतना में संक्रमित होकर व्यवस्था में भागीदारी का निर्वाह जिम्मेदारी पूर्वक कर सकता है. अभी तक मानव कार्य कलाप सुविधा-संग्रह तक ही है. मानव न्याय सत्य को प्रमाणित करने में असफल रहा है. समझदारीपूर्वक जीते हु्ए मानव सुखी व भय मुक्त हो सकता है ,इसके लिए धरती पर मानव मानसिकता से संपन्न व प्रमाणित व्यतियों द्वारा शिक्षा संस्कार के द्वारा मानव मानसिता से संपन्न पीड़ी तैयार हो सकती है. जो व्यवस्था पूर्वक जीकर मानवीयता व सहस्तित्व को प्रमाणित करेगी. चौथे और अंतिम दिन आज की दशा एवं समाधान की दिशा सत्र में डॉ. प्रदीप रामचर्ल्ला, अभ्यासा स्कूल के संस्थापक विनायक कल्लेतला, राजुल अस्थाना, श्री सोमदेव, प्रोफेसर राजीव सांगल ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये. सम्मेलन के दूसरे कई सत्रों को आई आई आई टी,हैदराबाद निदेशक डॉ राजीव सांगल, डॉ. प्रदीप रामचर्ल्ला, प्रोफेसर गणेश बागडिया, रणसिंह आर्य, श्री साधन भट्टाचार्य , श्री सोम देव, श्रीराम नरसिम्हन, सुमन, विनायक आदि ने संबोधित किया..
चौथे दिन सार्वभोम व्यवस्था पर अपने विचार व्यक्त करते बाबा नागराज ने कहा कि अध्ययन पूर्वक न्याय और व्यवस्था को समझा जा सकता है. और समझकर प्रमाणित किया जा सकता हैं. सार्वभोम व्यवस्था की समझ से ही मानव, जीव चेतना से मानव चेतना में संक्रमित होकर व्यवस्था में भागीदारी का निर्वाह जिम्मेदारी पूर्वक कर सकता है. अभी तक मानव कार्य कलाप सुविधा-संग्रह तक ही है. मानव न्याय सत्य को प्रमाणित करने में असफल रहा है. समझदारीपूर्वक जीते हु्ए मानव सुखी व भय मुक्त हो सकता है ,इसके लिए धरती पर मानव मानसिकता से संपन्न व प्रमाणित व्यतियों द्वारा शिक्षा संस्कार के द्वारा मानव मानसिता से संपन्न पीड़ी तैयार हो सकती है. जो व्यवस्था पूर्वक जीकर मानवीयता व सहस्तित्व को प्रमाणित करेगी. चौथे और अंतिम दिन आज की दशा एवं समाधान की दिशा सत्र में डॉ. प्रदीप रामचर्ल्ला, अभ्यासा स्कूल के संस्थापक विनायक कल्लेतला, राजुल अस्थाना, श्री सोमदेव, प्रोफेसर राजीव सांगल ने अपने-अपने विचार व्यक्त किये. सम्मेलन के दूसरे कई सत्रों को आई आई आई टी,हैदराबाद निदेशक डॉ राजीव सांगल, डॉ. प्रदीप रामचर्ल्ला, प्रोफेसर गणेश बागडिया, रणसिंह आर्य, श्री साधन भट्टाचार्य , श्री सोम देव, श्रीराम नरसिम्हन, सुमन, विनायक आदि ने संबोधित किया..
सम्मेलन में प्रतिनिधियो के ठहरने और खाने की व्यवस्था स्कूल प्रबंधन ने की थी. इसकी दिनचर्या भी सधी हुई थी. सुबह योग -प्राणायाम का छोटा सत्र चलता फिर नास्ते के बाद प्रतिभागी जीवनविद्या अभियान की समीक्षा और भावी योजनाओं पर चर्चा में जुट जाते. यहां तक की बाबा नागराज भी संबोधन के बाद प्रश्नोत्तरी के लिए समय देते. आपसी संवाद और समन्वय का अनोखा नजारा चार दिनों तक दिखा. अगले साल उत्तरप्रदेश के बांदा में फिर मिलने की घोषणा के साथ राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन हो गया.
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wah kya baat hai manoj sirrrrr
जवाब देंहटाएंbuland imarat bani haiii........mujhe rahana is ghar ka membar bananna haiiii.. ek ek post shandar hai ..bhookh wali story bhi dekhi..wahi laaine abhi bhi jinda haii..bol anmol bol...waah..aur soch..to hai aap ke........