हिंदी शोध संसार

बुधवार, 7 जनवरी 2009

क्या करोगे अजहर मसूद का?

प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक मंच से घोषणा कर दी है कि मुंबई आतंकी हमलों में पाकिस्तान के ना सिर्फ़ नॉन-स्टेट ऐक्टर जिम्मेदार हैं, बल्कि इन हमलों में पाकिस्तान का सरकारी अमला भी जिम्मेदार है। ये बात एकाएक किसी प्रतिक्रिया के तौर पर नहीं कही गई है बल्कि पूरी जाँच और सबूत इकट्ठा करने के बाद कही गई है। अब पाकिस्तान पर यह निर्भर है कि वह क्या करता है। एक तो वह वह भारत के सबूतों को ग़लत कहकर खारिज कर देगा, दूसरा वह इस पर कार्रवाई करेगा। उसकी कार्रवाई दो रूपों में हो सकती है। एक तो वह खुद उन दहशतगर्दों के खिलाफ कार्रवाई करेगा या भारत जिन आतंकवादियों कि मांग कर रहा है, वह उसे भारत को सौप देगा।
अब यहाँ भारत के हक़ में है कि वह पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाकर उसे खुद कार्रवाई के लिए मजबूर करे। आतकवादियों को भारत को सौपे जाने की जिद भारत न करे इसी में भारत का फायदा है। भारत में राजनितिक हालत जितने गंदे हो जाए हैं। उसमे किसी भी स्थिति में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो सकेगी। भ्रष्टाचार को छोड़ भी दे तो यहाँ अलाप्संख्यक वोट बैंक की राजनीती इतनी गन्दी हो चुकी है, किसी भी सूरत में आतंकियों को सजा नहीं दिलाई जा सकती है।
मुलायम सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट सीबीआई को फटकार की घूंटी पिला चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है की सीबीआई जैसी संस्थाएं भी राजनितिक मोहरे की तरह इस्तेमाल हो रही है।
सरकार पर जन दबाव है। जन दबाव का ही नतीजा है की वह पाकिस्तान के खिलाफ कुछ बोलने का हिम्मत जुटा पा रही है। लेकिन क्या वह आतंकवादियों को भारत हो सौंपे जाने के बाद भी इतनी ही हिम्मत रख सकेगी। इसका सीधा सा जवाब है कभी नहीं।
माना भारत की अदालतों ने अपना काम पूरी ईमानदारी से कर भी दिया तो क्या भारत सरकार उस सजा को लागू करवा पाएगी। यहाँ भी जवाब मिलेगा बिल्कुल नहीं।
जो सरकार प्रति आतंकवाद खड़ा कर सकती है, पहले सिख, फिर मुस्लमान और फिर हिन्दू को आतंकवादी बना सकती है, वो आतंकवाद के खिलाफ खड़ी होने का हिम्मत कैसे कर सकती है। उदाअहरण सामने है, सुप्रीम कोर्ट चार साल पहले अफज़ल गुरु को मौत की सजा सुना चुकी है। मौत की सजा पर पुनर्विचार याचिका भी खारिज कर चुकी है। ऐसे आतंकवादी को वह संरक्षण देकर जिन्दा रखे हुए है, वह पाकिस्तान से लाये आतंकवादी को सजा कैसे दिलवा पायेगी।
दो रोज पहले सरकार ने एक विधेयक पारित कराया है। जिसके तहत सात साल से कम सजा पाने वाले आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा। एक तरफ़ गैर कानूनी गतिविधि निरोधक कानून है तो दूसरी तरफ़ ये कानून जहाँ अपराध की पूरी छोट है। ऐसे में आतकवाद के खिलाफ लड़ने की बात बेईमानी है।

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