हिंदी शोध संसार

शनिवार, 4 अक्तूबर 2008

क्यों डरते हो कंधमाल से?

वीरों को डर शोभा नहीं देता. उस स्थिति में यह वाक्य और भी प्रासंगिक हो जाता है, जब आपका उद्देश्य बहुत बड़ा हो. कम्युनिष्टों ने पूरी दुनिया कम्युनिष्ट बनाने का बीड़ा उठाया. साम, दाम, दंड और भेद से वे इस उद्देश्य में लगे हुए हैं. अगर उन्हें किसी तरह नुकसान उठाना पड़ रहा है तो उन्हें इससे डरना नहीं चाहिए. उनके पास विचारधारा की बड़ी ताकत है. उन्हें विचारधारा की लड़ाई लड़नी चाहिए. छद्म-धर्म-निरपेक्षतावादियों ने पूरी दुनिया को छद्म-धर्म-निरपेक्ष बनाने का बीड़ा उठाया है. इसलिए इस राह में थोड़ी बहुत परेशानी आ रही हो तो उन्हें इसका दुख नहीं मानना चाहिए. ठीक इसी तरह ईसाई मिशनियों ने पूरी दुनिया(कम से कम) पूरे भारत को ईसाई बनाने का बीड़ा उठाया है. इसलिए कंधमाल जैसी छोटी-मोटी घटनाओं से उन्हें नहीं डरना चाहिए और वीरों की भांति अपने काम में लगे रहना चाहिए.

कंधमाल अपने तरह का पहला उदाहरण है, जहां आदिवासी-आदिवासियों के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं. वस्तु-स्थिति को समझने की कूबत न छद्म-धर्म-निपरपेक्षता के झंडाबरदारों में है और न हीं कम्युनिष्टों की प्रबल विचारधारा में. आदिवासी वहां तथाकथित धर्म-निरपेक्ष मीडिया को वहां से खदेड़ रहे हैं. भारी संख्या में राज्यपुलिस के जवान और अर्द्ध-सैनिक बल के जवान वहां तैनात है, फिर भी स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.

कांग्रेस के प्रवक्ता अहमद पटेल मुंह बिचकाकर कहते हैं कि ऐसी घटनाओं से आतंकवादी पैदा होते हैं. जबकि सच्चाई कुछ और है. हो सकता है कि यहां कि सच्चाई को दरकिनार करते हुए आने वाले कुछ समय में यहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए. लेकिन राष्ट्रपति शासन के बावजूद स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आने वाला है.

कम्युनिष्ट पार्टी के तथाकथित बुद्धिजीवी विचारधारा की लड़ाई लड़ने की बात कर रहे हैं. इन बुद्धिजीवियों को कम से कम ये समझना चाहिए कि धर्म का मामला इनकी समझ से बाहर की बात है. इनकी आयातित विचारधारा धर्म को अफीम समझती है. धर्म को अफीम समझने वाले बुद्धिजीवियों को धर्मांतरण की टेढ़ी बात दिमाग में अटेंगी कैसे.

कंधमाल जिले की 17 प्रतिशत आबादी ईसाईयों की है. इनमें से आधी आबादी धर्मांतरित ईसाईयों की है. ये धर्मांतरित ईसाई अपने को दलित ईसाई बताकर आदिवासियों से उनका हक छीनना चाहते हैं. वे अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहते हैं. आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं. विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन आदिवासियों का समर्थन कर रहे हैं.

प्रभू ईशुमसीह तुमसे प्यार करते हैं. तुमसे कोई भेदभाव नहीं करते हैं. तुम्हें गले लगाना चाहते हैं. तुम्हारे दुखों दूर करना चाहते हैं. तुम इनकी शरण में आ जाओ.

भोले-भाले दुख के मारे लोग इन मिशनरियों के झांसे में आकर अपना धर्म बदल लेते हैं. उन्हें लगता है कि सचमुच में ईशु उनसे प्यार करते हैं. उन्हें गले लगाना चाहते हैं. उनके दुखों को हर लेना चाहते हैं. धर्म परिवर्तन के बाद उनसे साथ कोई भेद-भाव नहीं होगा. लेकिन ऐसा नहीं होता है. धर्मांतरण के बाद भी वो लोग दलित बने रहते हैं. उनका दुख दूर नहीं होता है. उनके साथ भेदभाव जारी रहा है. ईशु अपने नवभक्तों को गले लगाने नहीं आते हैं. आखिर, ईशु सिर्फ उन्हीं लोगों को लगाएंगे, जो चर्च जाते हैं, क्रास पहनते हैं. अगर मैं हिंदू धर्म में होते हुए, ईशु को पुकारू तो क्या ईशु मुझे गले नहीं लगाएंगे. अगर नहीं लगाएंगे तो ईशु कहीं नहीं है. यदि राम हिंदू-मुसलमान-सिख-ईसाई में फर्क करना जानता है तो वो राम कहीं नहीं है. यदि अल्लाह सिर्फ मुसलमानों की बंदगी सुनता है तो वो अल्लाह कहीं नहीं है. जो ईश्वर इंसान में फर्क करना जानता है. वो ईश्वर ईश्वर नहीं हो सकता है. आखिर ईशु एक ईसाई को ही गले क्यों लगाता है. ईसाई धर्म स्वीकार करने के बाद ही उसके दुखों को क्यों हरने लगा. अगर ईशा मसीह ऐसा भेदभाव करता है तो वो परमपिता नहीं हो सकता.

ये चोंचले मंदिर-मंस्जिद-गिरिजाघरों को संभालने वाले पंडित-मुल्ला-पादरियों के हैं.

अगर धर्मांतरण ही दुखों का समाधान होता तो दुनिया में इतने सारे धर्म नहीं होते और इतने सारे धर्मावलंबी नहीं होते. लेकिन पोप पर पैसे का नशा कुछ इस तरह चढ़ा हुआ है कि उसने पूरी दुनिया को प्रभु ईशु के करीब लाने का ठेका ले लिया है. मगर, भाई लोभ-लालच से प्रभु के शरण में लाए गए लोगों की प्रभु भी नहीं सुनते.

जैसे कि कंधमाल के नव ईसाईयों की प्रभु ईशु मसीह ने नहीं सुनी और वे अब भी दलित बने हुए हैं. वे अब भी गरीब हैं. वे अब भी भेद-भाव के शिकार हैं.

मामला सिर्फ कंधमाल का नहीं है. पूरे भारत में धर्मांतरण का शिकार हुए लोगों की यही दुर्दशा है. इन लोगों का गुस्सा मिशनरियों के खिलाफ कब भड़क जाए, कहा नहीं जा सकता. कब कितने कंधमाल पैदा हो जाए, ये भी कहा नहीं जा सकता.

इसलिए एक नहीं कई कंधमाल के लिए मिशनरियों को तैयार रहना चाहिए. क्योंकि इनका गुस्सा भड़क गया तो इन्हें संभालना बड़ा मुश्किल हो जाएगा.

2 टिप्‍पणियां :

  1. बहुत बढ़िया एवं प्रभावी आलेख.

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  2. ये साम्राज्यवादी मुलुको ने हतियार बनाए, हतियार के बल पर उपनिवेष और उपनिवेषो से लुटा ढेर सारा धन। अब ये चाहते है की इनके डलर/पाउंड/युरो के बल पर सारी दुनिया को ईसाई बना दें। सारे विश्व मे एक ही धार्मिक विचार वाले लोग हो और उनका धार्मिक मुखिया वेटीकन सिटी मे बैठे जो इनका प्यादा हो और वह जो बोले उस पर सारी दुनिया वाले श्रद्धा रखें। यह सर्वसत्तावादी विचार एक बहुत बडी हिंसक प्रवृति है। चर्चो द्वारा लोभ लालच के बल पर कराया गया धर्मातरण स्वयम ही हिंसा हीं है। उपर से चर्च द्वारा एक धार्मिक व्यक्ति लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या। चर्चो की इस हिसा ने हिसा को जन्म दिया। बहुत दुख होता है यह सब देख कर।

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