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गुरुवार, 18 सितंबर 2008

रामचरित मानस में शरत ऋतु

भगवान राम सुग्रीव को किष्किंधा का निष्कंटक राज सौंपकर वर्षाकाल में कुछ समय के लिए प्रवर्षण पर्वत विश्राम करने हेतु रूके. यहां गोस्वामी तुलसीदास ने भगवान राम और लक्ष्मण के बीच कुछ इस तरह के संवाद रचे, जो अद्वितीय कहे जा सकते हैं. वैसे तो तुलसी की काव्य प्रतिभा पूरी रामचरित मानस में झलती है लेकिन किष्किंधा की काव्य प्रतिभा उन्हें अद्वितीय स्थान दिलाती है.
पहले थोड़ी चर्चा वर्षा की..
दामिनी चमक रह न घन माही.
खल के प्रीत जथा थिर नाही.
बादल में बिजली वैसे ही नहीं स्थिर रह पाती है, जैसे दुष्टों की प्रीत.
बरषहिं जलद भूमि नियराए.
जथा नवहिं बुध विद्या पाए..
बादल पृथ्वी के समीप आकर वैसे ही बरस रहे है, जैसे बुद्धिमान जन विद्या पाकर नम्र हो जाते हैं.
बूंद अघात सहहिं गिरि कैसे.
खल के बचन संत सह जैसे.
बूंद के आघात पर्वत वैसे ही सह रहे हैं, जैसे दुष्टों के वचन संत सहते हैं.
छुद्र नदी भरि चलीं तोराई.
जस थोरेहु धन खल इतराई.
छोटी नदी अपने किनारे को वैसे ही तोड़ डालती है जैसे थोड़े धन पाकर दुष्ट बेकाबू हो जाते हैं.
हरित भूमि तृण संकुल समुझि परहिं नहीं पंथ.
जिमि पाखंड विवाद ते लुप्त होहिं सदग्रंथ.
बर्षा जल को पाकर पगदंडियों पर भी घास उग जाते हैं और रास्ता दिखाई नहीं पड़ता, ठीक ऐसे ही पाखंडियों के तर्क के आगे सदग्रंथ लुप्त हो जाते हैं(हिटलर के प्रचार मंत्री गोबेल्स के अनुसार, एक झूठ को सौ बार बोलो तो वो सच हो जाता है और उसने ऐसा कर दिखाता, खैर आज तो पूरी दुनिया ऐसा ही कर रही है. )
कबहुं प्रबल बह मारूत जहं तहं मेघ बिलाहिं.
जिमि कपूत के उपजें कुल सदधर्म नसाहि.
तेज हवा से बादल वैसे ही नष्ट हो जाते हैं जैसे कपूत के पैदा होने से कुल धर्म नष्ट हो जाता है.
वर्षा के बाद बात शरद ऋतु की..
बरषा विगत सरद ऋतु आई.
लक्ष्मण देखहुं परम सुहाई..
फूले कास सकल महि छाई.
जनु वर्षा कृत प्रकट बुढ़ाई.
जब कास(एक प्रकार के घास) में फूल निकले लगे तो समझिए वर्षा का बुढ़ापा आ गया है.
उदित अगस्त पंथ जल सोषा
जिमि लोभहिं सोषहिं संतोषा
अगस्त्य ने उदित होकर उसी तरह मार्ग के जल को सोख लिया है, जैसे लोभ संतोष को सोख लेता है.
रस-रस सूख सरित सर पानी
ममता त्याग करहिं जिमि ज्ञानी.
पंक न रेणु सोह असि धरनी
नीति निपुण नृप के जस करनी
नदी और तालाब का जल वैसे ही धीरे-धीरे सूख रहा है जैसे ज्ञानी पुरूष ममता का त्याग करते हैं. न कहीं कीचड़ न कहीं धूल, ठीक वैसे ही जैसे नीति निपुण प्रशासक के कार्य.
जल संकोच विकल भई मीना
अबुध कुटुंब जिमि धनहीना
पानी के घटने से मछलियां वैसे ही परेशान हो रही है, जैसे धन के घटने से अज्ञानी गृहस्थ.
सुखी मीन से नीर अगाधा
जिमि हर शरण न एकहु बाधा.
अथाह पानी में मछलियां ऐसे ही सुख से जीती हैं जैसे भगवान के शरण में चले जाने से कोई दुख नहीं बचता है.

1 टिप्पणी :

  1. अच्छी जानकारी दी। धन्यवाद।
    रामचरित मानस से एेसे सैकड़ों िवषय िनकल सकते हैं। आशा है आप आगे भी िलखते रहेंगे।
    कभी फुरसत में हों, तो मेरे ब्लाग
    www.gustakhimaaph.blogspot.com
    पर भी पधारने का कष्ट करें।

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