हिंदी शोध संसार

शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

मेरा हिंदुस्तान

फिल्म का नाम याद नहीं.
अभिनेता का नाम याद है. वो थे कादर खान.
वो एक में सवार होकर उसे धकेले जा रहे थे.
ट्रैफिक पुलिस ने उन्हें रोक दिया.
रूको, कार का लाइसेंस दिखाओ, ट्रैफिक पुलिस ने कहा.
ले लीजिए, कादर खान साहब ने लाइसेंस देते हुए कहा.
पुलिस ने दो-चार बार इधर-उधर पलटा, फिर कहा, ये तो 1942 की लव स्टोरी भैया.
कादर खान तपाक से बोल, कार भी 1930 ही की है.
दिखाओ इसमें क्या है, कोई गैर-कानूनी चीज मिली तो जेल में ठूंस दूंगा, ट्रैफिक पुलिस ने रौब जमाते हुए कहा.
कादर साहब कहां पीछे रहने वाले थे, उन्होंने कहा, गैर-कानूनी क्या, इसमें तो कानूनी चीज भी नहीं है.
क्या कहा, ट्रैफिक पुलिस ने ताक-झांक करते हुए पूछा.
कुछ नहीं, मैं क्या कहूंगा, आप खुद ही देख लीजिए.
अरे, इसमें तो ईंजन है ही नहीं, ट्रैफिक पुलिस ने आश्चर्य से बोला.
हॉ, नहीं है, कादर खान ने कहा.
ईंजन, कहां है, ट्रैफिक पुलिस ने पूछा.
साहब, जब हमारे दादा ने गाड़ी खरीदी थी, उस वक्त पेट्रोल की कीमत दो रूपये लीटर रही होगी, अब तीस रूपये लीटर है(नए वेतनमान का अधिभार पड़ना बाकी है.). अब बेरोजगारी के मारे हाल ये है कि गाड़ी का ईंजन बेचकर, जब तक चला दाल-रोटी चलाए, कादर साहब कहते चले गए, ट्रेफिक पुलिस उनका हाले-दिल मुंह बाये सुनता रहा.
फिर पूछा, अब इस कबाड़ को काहे खींच रहे हो.
कादर साहब बोले, यही मेरा हिंदुस्तान है. अपना हिंदुस्तान. बाप-दादा की लोक-लाज, इज्जत मर्यादा, पूंजी, जो भी कह लीजिए. आखिर बाप दादा की इज्जत है तो ढोनी ही पड़ेगी न.
ट्रैफिक पुलिस कादर खान से सहमत हुए बगैर नहीं रह सका.

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