हृदयांजलि
बुधवार, 24 अक्टूबर 2007
आलस्य हि मनुस्यनाम शरीरस्थो महान रिपु
न हि उद्यमेन समो बंधू कृत्वा नावासिदाती
आलस्य के समान कोई शत्रु नहीं और परिश्रम के समान कोई मित्र नहीं, क्योंकि परिश्रम करके कोई दुखी नहीं रह सकता.
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